नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज विज्ञान भवन में आयोजित एक गरिमामय समारोह में प्रख्यात संस्कृत विद्वान और समाजसेवी जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने प्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार को भी इस पुरस्कार के लिए बधाई दी, जो स्वास्थ्य कारणों से समारोह में शामिल नहीं हो सके। राष्ट्रपति ने गुलज़ार के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की, ताकि वे कला, साहित्य और समाज के लिए अपनी रचनात्मक यात्रा जारी रख सकें। गुलज़ार के बारे में राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने दशकों से साहित्य -सृजन के प्रति अपनी निष्ठा को जीवंत बनाए रखा है। “यह कहा जा सकता है कि गुलज़ार साहब कठोरता के बीच कोमलता को स्थापित करने वाले साहित्यकार हैं। उनकी कला और साहित्य की साधना से इन क्षेत्रों में सक्रिय लोगों को शिक्षा और प्रेरणा लेनी चाहिए।”
मुर्मू ने अपने संबोधन में जगद्गुरु रामभद्राचार्य के असाधारण योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि दृष्टि बाधा के बावजूद, रामभद्राचार्य ने अपनी दिव्य अंतर्दृष्टि से संस्कृत साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य किया है। उनके 240 से अधिक ग्रंथ, जिनमें रामचरितमानस पर 80 से अधिक टीकाएँ और 50 से अधिक मौलिक रचनाएँ शामिल हैं, भारतीय साहित्य और संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। राष्ट्रपति ने उनके द्वारा स्थापित तुलसी पीठ और दृष्टिबाधित बच्चों के लिए स्कूल का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका जीवन साहित्य सृजन, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणा है।
राष्ट्रपति ने साहित्य की शक्ति पर जोर देते हुए कहा कि यह समाज को जोड़ता और जागृत करता है। उन्होंने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के ‘वंदे मातरम’ का उदाहरण दिया, जो 150 वर्षों से भारतीयों को प्रेरित कर रहा है। वाल्मीकि, व्यास, कालिदास से लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर तक के कवियों की रचनाओं में भारतीयता का जीवंत स्पंदन महसूस होता है। उन्होंने 19वीं सदी के सामाजिक जागरण और 20वीं सदी के स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों की भूमिका को याद किया, जिन्होंने जन-जन को एकजुट किया।
1965 से भारतीय भाषाओं के उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मानित करने वाली भारतीय ज्ञानपीठ की राष्ट्रपति ने प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि चयन समिति ने श्रेष्ठ साहित्यकारों का चयन कर इस पुरस्कार की गरिमा को बनाए रखा है। उन्होंने आशापूर्णा देवी, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, कुर्रतुल-ऐन-हैदर, महाश्वेता देवी, इंदिरा गोस्वामी, कृष्णा सोबती और प्रतिभा राय जैसी महिला रचनाकारों का जिक्र किया, जिन्होंने संवेदनशीलता के साथ भारतीय समाज और परंपरा को समृद्ध किया। उन्होंने युवा महिलाओं से इन रचनाकारों से प्रेरणा लेकर साहित्य सृजन में सक्रिय भागीदारी और सामाजिक सोच को और संवेदनशील बनाने का आह्वान किया।
रामभद्राचार्य के योगदान को रेखांकित करते हुए मुर्मू ने कहा कि उनके 22 वर्ष की आयु में आठ भाषाओं में महारत और 80 वर्ष की आयु तक 240 से अधिक ग्रंथों की रचना एक असाधारण उपलब्धि है। उनके द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस सटीक’ और अन्य कार्य संस्कृत साहित्य में नए आयाम जोड़ते हैं। समारोह में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने उनके जीवन को दृढ़ता और समर्पण का प्रतीक बताया।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, जो 1961 में स्थापित हुआ और 1965 से प्रदान किया जा रहा है, भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है। यह पुरस्कार हिंदी, संस्कृत, बंगला, मलयालम, कन्नड़, मराठी, गुजराती, उड़िया, तमिल, तेलुगु, असमिया, उर्दू, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, नेपाली, पंजाबी, संथाली, सिंधी और बोडो जैसी 20 भारतीय भाषाओं में साहित्यिक उत्कृष्टता को मान्यता देता है। इस वर्ष के पुरस्कार ने एक बार फिर साहित्य के माध्यम से समाज को प्रेरित करने की शक्ति को रेखांकित किया है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
