– अनिल शर्मा*
दिल्ली/लखनऊ: महाराष्ट्र राजनीति में यह परंपरा रह है कि यदि कोई वरिष्ठ नेता का निधन हो जाता है तो उस सांसद (खासदार) या विधायक (आमदार) का यदि अपने कार्यकाल के बीच में निधन हो जाता है तो वहां होने वाले उपचुनाव में उस खासदार या आमदार की विधवा या अन्य परिजन जो चुनाव लड़ता है तो कोई भी अन्य पार्टी अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है।
इसका ताजा उदाहरण अंधेरी के शिवसेना प्रत्याशी ऋतुजा लटके के खिलाफ भाजपा ने प्रत्याशी खड़ा किया था। लेकिन नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के राष्ट्रीय नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से प्रत्याशी हटाने की अपील की। बाद में भाजपा और शिवसेना विद्रोही गुट के नेता व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से इन दोनों पार्टी के करीबी तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे ने अपील की, तब जाकर भाजपा ने अपना प्रत्याशी हटाया।
उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी के शलाका पुरुष और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन पर रिक्त हुई मैनपुरी सीट से उनकी पुत्रवधू और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं, महाराष्ट्र राजनीति के इस मॉडल ने राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित किया है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष व पूर्व सांसद ब्रजलाल खाबरी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रांतीय नेता कैलाश पाठक, यूनाइटेड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (यूसीपीआई) के प्रांतीय नेता रामकृष्ण शुक्ला, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव राजवीर सिंह जादौन, सामाजिक न्याय एवं किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेश निरंजन भैयाजी, बुंदेलखंड किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विमल शर्मा, इन सभी नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया है।महाराष्ट्र के इस मॉडल को आधार बना अब वे भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि मैनपुरी में भी नैतिकता के आधार पर भाजपा को स्वर्गीय मुलायम सिंह की पुत्रवधू डिंपल यादव के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारना चाहिए था। यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस, बसपा ने कोई प्रत्याशी यहां नहीं उतारा है।
विभिन्न राजनैतिक दलों और अराजनैतिक दलों के नेता अब कह रहे हैं कि महाराष्ट्र जैसी परंपरा उत्तर भारत में भी राजनैतिक में एक संवेदनशीलता तथा सौहार्द का भाव पैदा करेगी। ये नेता अब यह भी याद दिला रहे हैं कि वर्ष 2019 में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संसद में कहा था कि (प्रधान मंत्री नरेंद्र) मोदीजी आप जातिपात से ऊपर उठकर देश की भलाई का काम कर रहे हैं। आज लोकसभा के आखिरी सत्र में आपको यह आशीर्वाद दे रहा हूँ कि आप वर्ष 2019 के चुनाव में पूरे बहुमत से वापस आए। इसके बाद नेताजी के निधन पर मोदी ने उन्हें रूंधे गले से याद किया था।
लेकिन जब उपचुनाव की बात आयी तो उन्होंने मैनपुरी में अपने दल का प्रत्याशी पूर्व संसद रघुराज सिंह शाक्य को चुनाव मैदान में उतारने से गुरेज नहीं किया। परन्तु यह भी सत्य है कि नरेंद्र मोदी ने मैनपुरी में उपचुनाव में एक भी चुनावी सभा नहीं की। राजनैतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि मुलायम सिंह से गहरी आत्मीयता के चलते ही इस तरह मुलायम सिंह की बहू डिंपल यादव को रिटर्न गिफ्ट दिया है।
उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह के प्रेम और आशीर्वाद से मोदी इतने भावुक थे कि गुजरात के विधानसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा में सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी अच्छाइयों का खूब बखान किया। तो फिर चुनावी राजनीती के के महाराष्ट्र मॉडल को उत्तर प्रदेश में लागू करने में उनकी पार्टी को गुरेज़ क्यों है?
*वरिष्ठ पत्रकार
यह राजनीति में एक तरह की काॅलेजियम व्यवस्था की तरह है। इसे नैतिकता के नाम पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। प्रजातंत्र की गरिमा अक्षुण्ण बनाए रखना बहुत जरूरी है