पर्यावरणविद् की याचिका: राजमार्गों पर हरियाली की पुकार
भोपाल/जयपुर/भीलवाड़ा: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के दौरान काटे गए लाखों विशालकाय पेड़ों के बदले पौधे लगाने में लापरवाही के गंभीर मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) सहित चार पक्षों से जवाब मांगा है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की सेंट्रल जोनल बेंच, भोपाल के न्यायाधीश शिवकुमार सिंह और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल की पीठ ने भीलवाड़ा के पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू की जनहित याचिका पर यह कदम उठाया है। जाजू ने अपनी याचिका में बताया कि एनएचएआई द्वारा राजमार्ग निर्माण के दौरान काटे गए पेड़ों के बदले नियमानुसार तीन गुना, पांच गुना और दस गुना पौधे नहीं लगाए गए। इसके अलावा, लगाए गए पौधों की प्रजातियां स्थानीय नहीं थीं और रखरखाव के अभाव में अधिकांश पौधे जीवित नहीं रहे।
जाजू ने याचिका में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा 2015 में जारी वृक्षारोपण, प्रत्यारोपण, सौंदर्यीकरण और रखरखाव नीति एवं पर्यावरण नीति दिशानिर्देश 2024 का हवाला देते हुए बताया कि एनएचएआई ने इन नीतियों का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि राजमार्ग परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण योजनाओं में एवेन्यू प्लांटेशन और लैंडस्केप सुधार के लिए आवश्यक भूमि पर विचार नहीं किया जाता, जिसके कारण वृक्षारोपण के लिए पर्याप्त जगह नहीं बचती। जाजू ने यह भी बताया कि वन मंत्रालय द्वारा मॉनिटरिंग मैकेनिज्म और ऑडिट के लिए वन विभाग को निर्देश दिए गए थे, लेकिन विभाग ने कोई प्रभावी मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित नहीं किया।
याचिका में यह भी उजागर किया गया कि राजमार्गों के दोनों ओर प्राणवायु प्रदान करने वाले और लंबी आयु वाले पेड़ लगाने के बजाय डिवाइडर में झाड़ियां रोपकर उनकी गिनती पेड़ों के रूप में कर ली गई। परिणामस्वरूप, काटे गए पेड़ों के बदले लगाए गए पौधों की जीवित रहने की दर बेहद कम रही, जिससे प्रदूषण की समस्या और गहरा गई है। जाजू ने जोर देकर कहा कि नियमानुसार अब 8.5 लाख से अधिक पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करने की जरूरत है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने इस मामले में एनएचएआई के चेयरमैन, राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, एनएचएआई के जयपुर क्षेत्रीय अधिकारी और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी।
पर्यावरण संरक्षण के लिए जाजू का यह प्रयास न केवल राजमार्गों पर हरे-भरे पेड़ों की वापसी की उम्मीद जगाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक व्यक्ति की आवाज प्रकृति के लिए कितना बड़ा बदलाव ला सकती है।
*स्वतंत्र पत्रकार

