राजस्थान विधान सभा चुनावों परिणामों पर व्यापक मंथन शुरू हो गया है। हार जीत के अपने अपने कारण रहे हैं । लेकिन चुनाव में बेहतर प्रबंधन भी बड़ा काम आता है उसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्टार प्रचारक और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अव्वल रहे। अब जब चुनावों में राजस्थान में जनादेश भाजपा को मिल ही गया है तो व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीदें आम जन को है। सत्ताएं तो पहले भी कई बार अदल बदल हुई लेकिन व्यवस्था जैसी की तैसी रही।
एक्जिट पोल के अधिकांश आंकलनों को नकारते हुए राजस्थान में भाजपा की सरकार बनने जा रही है जो कि सिर्फ और सिर्फ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति का ही परिणाम है। मोदी- शाह की ही रणनीति का परिणाम है कि भाजपा ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए बिना ही राजस्थान में चुनाव लड़ा। जिस प्रकार प्रदेश में गत पांच वर्षों में भाजपा संगठन की दुर्दशा थी उसकी बदौलत तो भाजपा का चुनाव हारना तय था और शायद इसी आत्म विश्वास ने राज्य में कांग्रेस की सरकार को डुबोया। मुख्यमंत्री ने अंतिम समय में जिस प्रकार से राहत के पिटारों के नाम से खजाने को लुटाना शुरू किया उससे तो सभी राजनीतिक पंडितों को लगता था कि इस बार तो रिवाज बदलेगा। रिवाज वही रहा और सिर्फ चेहरे बदलते हैं तो जनता से धोखा ही माना जाता है। अब भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने चुनौती है कि प्रदेश में सुशासन कैसे दिया जाए।
राजनीति में संजीदा माने जाने वाले अशोक गहलोत का गत कार्यकाल पिछले कार्यकालों की तुलना में काफी खराब रहा इसके संकेत को गहलोत क्यों नही समझ पाए या उनकी क्या मजबूरी रही ये कांग्रेस के विश्लेषकों के लिए भी अहम सवाल है। कहने को तो कोई इसे सचिन पायलेट फेक्टर बताए या और कुछ लेकिन गहलोत के मंत्रियों की कार्यप्रणाली जनता को रास नहीं आई। प्रदेश में महिला अत्याचार चरम पर थे तो पेपी लीक के मामलों में सरकार खुद कटघरे में आ गई। कांग्रेस के ही विधायक भरत सिंह हों या राजेंद्र गुढा ने भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया जबकि ये मुद्दा विपक्षी भाजपा को भी उठाना था। लाल गुढा की लाल डायरी ने गहलोत सरकार की बची खुची साख भी खत्म कर दी। राज्य में अवैध खनन और माफियाओं को खुला संरक्षण सरकार का मिल रहा था तभी तो आए दिन खननकर्त्ता पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों तक को कुचल रहे थे। सांप्रदायिक घटनाओं ने उदयपुर में कन्हैया लाल की नृशंस हत्या और बारां के छबड़ा और करौली के दंगों ने तुष्टीकरण से ग्रस्त कमजोर सरकार की पोल खोल दी। जयपुर बम ब्लास्ट के आरोपियों की मदद करने का भी सरकार पर आरोप जनता के मनो मस्तिष्क पर चस्पा हुआ। विकास कार्य भी खूब हूए लेकिन उनमें सरकार में बैठे लोगों के निहित स्वार्थ ज्यादा दिखे। ताबड़ तोड़ विकास विनाशकारी साबित हुआ उसका लाभ कांग्रेस को नहीं मिला।
कोटा में विकास को पागल भी बताया गया। कोटा व बारां में तो वहां के मंत्रीयों ने पूरी भाजपा व कांग्रेस को ही एक तरीके से बंधक बना कर रखा हुआ था। कोटा व बारां में व तो सरकार और विपक्ष का अंतर ही नहीं रह गया था।
जनता कांग्रेस सरकार से ही व्यथित नहीं थी विपक्षी भाजपा से भी व्यथित रही। भाजपा ने विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका का सही ढंग से निर्वाह नहीं किया। यदि किया होता तो प्रदेश में भाजपा 150 से अधिक सीटें जीतने की स्थिति में थी। भाजपा तो केवल इस बात का इंतजार कर रही थी कि कांग्रेस से नाराज लोग हमें बिना कुछ करे धरे ही जिता देंगे। प्रदेश में तो भाजपाईयों पर कांग्रेस से सांठगांठ तक के आरोप भी लगते रहे जो जन मानस को उद्धेलित कर रहे थे। किसी दल ने इसका खण्डन नहीं किया। भरत सिंह ने अपने घर के बाहर सांठ गांठ का बैनर भी लगा रखा था जो मुख्यमंत्री के अगमन पर ही उतरा। कांग्रेस के लोगों ने आंदोलन किए और भाजपा मुंह सिल कर बैठे रही। अब जब मोदी मैजिक और राष्ट्रीय स्वयंयेवक संघ की बदौलत प्रदेश में सत्ता में बदलाव हो गया है तो दरकार इस बात की है कि मुख्यमंत्री सर्वप्रिय और जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने वाला हो। जनता उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही है कि मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा का।
*स्वतंत्र पत्रकार