
खूबसूरत धरती हमारा ग्रह, जहाँ हम रहते हैं। पृथ्वी दिवस पर जब बात होती है तो जल, जंगल, नदी, पहाड़, खेत, खलिहान, रेगिस्तान, बर्फीले चोटियों की तस्वीर सामने आती है। धरती को माँ के रूप में पूजने वाले समाज को भी पृथ्वी दिवस मनाने की जरूरत पड़ रही है। धरती पर चारों ओर संकट को समझते हुए पृथ्वी दिवस पर सार्थक संवाद की जरूरत है। धरती पर वो सब रहते हैं जो इसको माँ मानकर सम्मान देते हैं और वे भी जो इसका भोग ही नहीं, दोहन और शोषण भी कर रहे हैं। कुछ लोगों को लगता है कि धरती का दोहन नहीं होगा तो विकास कैसे होगा। विकास कार्य ठप हो जाएँगे तो अर्थव्यवस्था का क्या होगा, आदि आदि तर्कों के साथ अपनी बात को जायज ठहराने का प्रयास करते हैं।
ऐसे विकास पर लोगों को एक नई सोच अपनाने की जरूरत है। हिंदू परंपरागत चिंतन और भारतीय संविधान स्पष्ट कहते हैं कि प्रकृति का शोषण वर्जित है। संविधान में सभी प्रकार के जीव-जंतु, वनस्पति, जल, वायु, और भूमि की रक्षा मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक तत्व, और मौलिक कर्तव्यों एवं हिंदुत्व के आधारभूत तत्वों में शामिल है।
राम और कृष्ण की लीलाएँ प्रकृति के प्रति प्रेम सिखाती हैं। राम और उनके पुत्रों लव और कुश ने अपने जीवन का बहुत बड़ा भाग वनों एवं वन्य प्राणियों के बीच बिताया। भगवान राम का वन वास्तु सर्व विधि थे कि उन्होंने सीता हरण की अपनीअपनी व्यथा पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, जटायु, और वानरों के साथ बाँटी। जटायु और वानर ही सीता की खोज में सहायक बने।
इसी प्रकार श्री कृष्ण की बाल लीलाओं में यमुना नदी गौ माता गोवर्धन पर्वत आदि के सभी प्रसंग में प्रकृति का बहुत ही सुंदर चित्रण हमारे धर्म ग्रंथो में मिलता है। प्रकृति के प्रमुख पांच तत्व धरती,वायु सूर्य, अग्नि और पानी से ही संपूर्ण प्रकृति है जिसमें “भगवान” का दर्शन विद्यमान है। पीपल, बरगद, अमला, तुलसी शमी आंकड़ा आदि तक पवित्र पक्ष माने जाते हैं जो धरती का सिंगार कहलाते हैं । इनको काटना तो बहुत दूर की बात है रात्रि के समय छेड़ना भी हमारे शास्त्रों में वर्जित है। वेदों और पुराणों में भी प्रकृति को पूजनीय माना है। फिर क्या कारण है कि हमें धरती दिवस मनाने के लिए एकत्र होना पड़ता है?
प्रकृति के शोषण को जब अर्थ प्राप्ति का जरिया माना जाता है, तो जंगली पशु-पक्षी, वन, और वन्य जीव, पानी का अस्तित्व संकटग्रस्त हो जाता है। हाल ही में उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए प्रख्यात हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास के जंगल को सरकार ने रात के अंधेरे में बेदर्दी से काट दिया। इसके खिलाफ वहां के छात्रों ने आवाज़ उठाई और सुप्रीम कोर्ट ने प्रसंज्ञान लिया। छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी जंगलों की कटाई के परिणाम स्वरुप जलवायु परिवर्तन की विभीषिका सामने खड़ी है। उत्तराखंड में तो कहीं बड़ी-बड़ी विद्युत परियोजनाओं को भी बाढ़ के पानी में बहते हुए देखा है।हर शहर में कचरे के पहाड़ खड़े हो रहे हैं।
पर्यावरण चेतावनियों को नजरअंदाज करने का परिणाम हम विकास के साथ-साथ देख रहे हैं। प्रकृति के नियोजित दोहन जो कि अब शोषण में बदल चुका है हमारे शिक्षण संस्थान भी इसी तरह की शिक्षा विद्यार्थियों को दे रहे हैं जो आने वाले समय के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।शायद ही कोई नदी स्वच्छ बची हो।
सभी पर्वतमालाएं चाहे वह हिमालय हो या अरावली विंध्याचल सतपुड़ा , सह्याद्रि अनियंत्रित खनन की मार से कांप रहे हैं। भूगर्भ जल उलेचने के लिए धरती के सीने में करोड़ों छेद कर दिए गए हैं जिनमें से अधिकांश जगह पानी नहीं हवा निकल रही है। बढ़ता तापमान हर साल अपना ही रिकॉर्ड तोड़ता जा रहा है भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर ताप घात से त्रस्त हैं, दिन और रात का तापमान एक-सा हो रहा है। तमाम दावों के बावजूद आईटी हब के रूप में विख्यात बेंगलुरु पानी के संकट से त्राहि त्राहि कर रहा है और देश की राजधानी दिल्ली में यमुना के बावजूद पानी के टैंकर चल रहे हैं। अनियोजित शहरीकरण से गाँव के गाँव समाप्त हो रहे हैं, तो धरती कैसे नहीं कराहेगी?
यही हाल चंबल के किनारे के गांव और शहरों का है ।चंबल के किनारे गाँव और शहर संकट में हैं। राजस्थान में तो चंबल के जल पर संपूर्ण राजस्थान की निगाह है।
राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के लिए प्राकृतिक दीवार बनने को सोचा है यह राहतभरा संकेत है।अरावली को प्राकृतिक दीवार बनाने की योजना राहत देती है। पर संविधान, कानून, सरकारी विभाग, तकनीकी विशेषज्ञों की फौज के बावजूद पर्यावरण विनाश रुकता नहीं। शिक्षा संस्थान विकास सिखाते हैं, पर प्रकृति शोषण की शिक्षा भी दे रहे हैं, जो भविष्य के लिए खतरनाक है। पृथ्वी दिवस हमें सिखाता है—नदियाँ स्वच्छ करें, जंगल बचाएँ, शिक्षा बदले। गंगा की पुकार सुनें, धरती को बचाएँ। समय कम है।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद्