वाराणसी: अयोध्या में राम लल्ला के प्राण प्रतिष्ठा के प्रतिरोध के बाद से शंकराचार्य और सरकार में तकरार जारी है । इसका ताजा उदाहरण आज देखने को मिला जब ज्ञानवापी की परिक्रमा करने जा रहे ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती को पुलिस ने आज “जबरन” रोक दिया। शंकराचार्य के मीडिया-प्रभारी संजय पाण्डेय के अनुसार पुलिस ने कारण बताए बिना ही शंकराचार्य महाराज को ज्ञानवापी जाने से रोका जब वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एसएसआई) की सर्वे रिपोर्ट में ज्ञानवापी में मूल विश्वनाथ मंदिर के प्रमाण मिल जाने के बाद उस स्थान पर पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शंकराचार्य घाट स्थित श्रीविद्या मठ से जाना चाह रहे थे ।
आज सुबह से ही प्रशासन ने भारी पुलिसकर्मियों के घेराबंदी कर और अवरोध लगाकर श्रीविद्यामठ को चारों तरफ से घेर लिया था।
ज्ञातव्य है कि 27 जनवरी 2024 को काशी पधारे शंकराचार्य ने मूल विश्वनाथ के परिक्रमा की इच्छा प्रकट की थी। अपने संकल्प के अनुसार आज जब वो श्रीविद्यामठ से मूल विश्वनाथ जाने के लिए तैयार हुए तो प्रशासन ने महिला पुलिसकर्मियों को आगे कर महाराज जी का रास्ता रोक दिया जिसपर मठ में मौजूद महिलाओं ने महिला पुलिस कर्मियों से काफी प्रतिवाद किया। मठ के पूर्वी द्वार पर ही पुलिस के अधिकारियों ने यह कहते हुए उन्हें रोक दिया कि वे ज्ञानवापी नहीं जा सकते। ज्ञानवापी की परिक्रमा करने की किसी नई परंपरा की शुरुआत नहीं होने दी जाएगी। इस पर शंकराचार्य ने कहा कि ज्ञानवापी की परिक्रमा उनके द्वारा पहली बार नहीं की जा रही है। पूर्व में भी वो ज्ञानवापी जाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि यही नहीं उनके पूर्व आचार्य भी समय समय पर ज्ञानवापी की परिक्रमा करते रहे हैं और इसके कई प्रमाण भी उनके पास हैं।
शंकराचार्य ने वहां उपस्थित प्रशासन के प्रतिनिधि एसीपी भेलूपुर एवं दशाश्वमेध से पूछा उन्हें क्यों रोका जा रहा है जब वे नियम के अंतर्गत मूल विश्वनाथ की परिक्रमा करना चाह रहे हैं? इसका जबाब देते हुए असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (एसीपी) भेलूपुर ने कहा कि “ऊपर से आदेश है आपको परिक्रमा करने की अनुमति नहीं है”। शंकराचार्य के पूछने पर कि अनुमति क्यों नहीं है तो एसीपी भेलूपुर ने कहा कि “बस आपको अनुमति नहीं है इसलिए हम आपको हम विन्रमता पूर्वक जाने नही देंगे”। शंकराचार्य ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि यदि वे धारा 144 के कारण उन्हें वहां जाने से रोक रहे हैं तो वो उनको विश्वास दिलाते हैं कि सिर्फ दो लोग ही ज्ञानवापी जाएंगे। ऐसा करने पर न तो कानून का उल्लंघन होगा और न ही कानून व्यवस्था को किसी प्रकार का खतरा होगा। “मैं स्वयं पुलिस और प्रशासन का सहयोग करना चाहता हूँ,” उन्होंने कहा। बावजूद इसके पुलिस अधिकारी यह कहते रहे कि जहां आप परिक्रमा करना चाहते हैं वह प्रतिबंधित क्षेत्र है। आप को वहां जाने की अनुमति नहीं है।
इसके उपरांत शंकराचार्य की ओर से ज्ञानवापी की परिक्रमा करने की अनुमति के लिए तत्काल एक पत्र अधिकारियों को दिया गया। “अधिकारियों ने पत्र तो ले लिया लेकिन अनुमति नहीं दी,” पाण्डेय ने बताया। उन्होंने कहा कि इससे पूर्व शंकराचार्य कार्यालय की ओर से पुलिस-प्रशासन को पत्र भेज कर अवगत कराया गया था कि 29 जनवरी को अपराह्न साढ़े तीन बजे वह ज्ञानवापी स्थित मूल विश्वनाथ मंदिर की परिक्रमा करने जाएंगे। शंकराचार्य कार्यालय की ओर से पत्र मिलने के बाद 28 जनवरी को ही पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारी श्रीविद्या मठ पहुंचे थे। शंकराचार्य महाराज से बातचीत में उन्होंने वहां धारा 144 लागू होने की बात कही थी। उस वक्त भी शंकराचार्य ने यह प्रस्ताव दिया था कि यदि ऐसी बात है तो वो अपने एक शिष्य के साथ ही परिक्रम कर लेंगे। “तब भी अधिकारी कुछ भी स्पष्ट किए बिना ही मठ से लौट गए थे,” पांडेय ने कहा।
शंकराचार्य ने कहा कि एएसआई के रिपोर्ट में यह स्पष्ट हो गया है कि ज्ञानवापी स्थित प्रांगण में मूल विश्वनाथ विराजे हैं। “हम सनातनधर्मियों के सर्वोच्च प्रतिनिधि होने के नाते और स्वयं सनातनधर्मी होने के नाते मूल विश्वनाथ मंदिर की परिक्रमा कर उनको प्रणाम करना चाहते हैं। हम यह परिक्रमा प्रतिबंधित क्षेत्र के बाहर से ही करना चाहते हैं। जहां से आमजन का आवागमन हो रहा है। हम सनातनधर्मियों के सर्वोच्च धर्मगुरु हैं। प्रशासन धारा 144 का हवाला दे कर हमको रोक रहा है। वहीं मुस्लिम पक्ष के सैकड़ों लोग प्रतिदिन वहां पर नमाज पढ़ रहे हैं उनके लिए धारा 144 नहीं है और हम कानून का पालन करते हुए केवल दो लोगों के साथ अपने आराध्य मूल विश्वनाथ की परिक्रमा करना चाह रहे हैं तो हमें अनुमति नहीं दी जा रही है,” उन्होंने कहा। “सौ करोड़ सनातनधर्मियों का इससे बड़ा और क्या अपमान होगा?” उन्होंने पूछा और आरोप लगाया कि डेढ़ वर्ष से मुकदमा चल रहा है और इस दौरान मूल विश्वनाथ को पूजा,राग-भोग से वंचित कर दिया गया है, जबकि यही स्थित अयोध्या में थी। वहां भी मुकदमा चल रहा था लेकिन वहां रामलला का निरन्तर पूजा,राग-भोग सुनिश्चित किया जाता था।
शंकराचार्य ने उपस्थित पत्रकारों को ध्यान दिलाया कि उच्च न्यायालय के आदेश में यह कहा गया है कि उक्त स्थल मन्दिर है अथवा मस्जिद इसका निर्णय न्यायालय करेगा। “अभी तक यह निर्धारित नहीं हुआ है कि उक्त स्थल हिन्दुओं का है अथवा मुस्लिमों का लेकिन प्रशासन द्वारा हम सनातनधर्मियों के धार्मिक एवं मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए हमें रोक रहा है,” उन्होंने कहा।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो