प्लास्टिग्लोमेरेट की खोज सबसे पहले 2006 में हवाई के कामिलो बीच पर हुई थी।फोटो सोर्स: oceantoearth.com
— प्रशान्त सिन्हा*
हर मिनट एक ट्रक प्लास्टिक समुद्र में
2050 में मछली कम, प्लास्टिक ज्यादा
समुद्र… नीला, विशाल, रहस्यमयी… जो धरती का 71 प्रतिशत हिस्सा है, जो जीवन की अनगिनत प्रजातियों का घर है, जो हमें ऑक्सीजन देता है, भोजन देता है, मौसम को संतुलित रखता है… आज उसी समुद्र को हम इंसान एक धीमे जहर से मार रहे हैं। वह जहर है प्लास्टिक।
अब तो भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर, तमिलनाडु के कूडलोर जैसे इलाकों में, “प्लास्टिक की चट्टानें” (प्लास्टिग्लोमरेट्स) बनने लगी हैं — ये वे स्थायी चट्टानें हैं जो पिघले हुए प्लास्टिक (पॉलीएथिलीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पीवीसी आदि) और रेत-सीपियों के मिश्रण से बनती हैं। जून 2024 के शोध में तमिलनाडु के चार समुद्र तटों पर 16 ऐसी संरचनाएँ मिलीं — इनमें सैकड़ों जहरीले रसायन (फथैलेट्स, बिस्फेनॉल-ए, भारी धातुएँ) भरे हैं जो धीरे-धीरे पानी में घुल रहे हैं। इन पर बार्नाकल्स, ब्रायोजोआन्स जैसे जीव चिपक कर मर जाते हैं। ये चट्टानें अब भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड बनने जा रही हैं — मानव सभ्यता का स्थायी निशान। समुद्र की गहराई में पहले से ही करीब 1 करोड़ 10 लाख टन प्लास्टिक जमा हो चुका है।
जरा सोचिए: अगर बड़ी संख्या में प्लास्टिक के टुकड़े समुद्र की सतह पर तैरते दिखें तो क्या हम इसे पानी का समुद्र कह पाएँगे या अब इसे प्लास्टिक का समुद्र कहना पड़ेगा? आज दुनिया के 40 प्रतिशत समुद्र किसी-न-किसी रूप में प्लास्टिक की चपेट में आ चुके हैं। अगर अभी की रफ्तार यही रही तो साल 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। जी हाँ, मछलियाँ कम और प्लास्टिक ज्यादा। हमने समुद्र को पानी का नहीं, प्लास्टिक का डस्टबिन बना दिया है।
विज्ञान और तकनीक ने जहाँ एक ओर जीवन को सुविधाजनक बनाया, वहीं दूसरी ओर प्लास्टिक का अत्यधिक प्रयोग और बेतरतीब निपटारा प्रकृति के सामने एक भीषण संकट बनकर खड़ा हो गया है। समुद्री सतहों पर, तटों पर और गहराइयों में जमा यह प्लास्टिक केवल समुद्री जीवों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को विनाश की ओर धकेल रहा है। यह समस्या न केवल समुद्री जीवन के लिए खतरनाक है बल्कि मानव स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति के लिए भी एक बड़ा खतरा बन चुकी है।
हर साल करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा नदियों, नालों और बारिश के पानी के साथ समुद्र में समाता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 192 देश मिलकर यह गंदगी पैदा कर रहे हैं — यह मात्रा इतनी भयानक है कि हर मिनट एक पूरा ट्रक भर प्लास्टिक समुद्र में डाला जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय शोध बताते हैं कि समुद्र में पहुँचने वाला 80 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा जमीन पर ठोस कचरे के कुप्रबंधन का नतीजा है, जो भूमि से जुड़े समुद्री मार्गों के जरिए समुद्र तल तक पहुँच रहा है, बाकी 20 प्रतिशत सीधे तटीय बस्तियों से आता है।
हमारी रोज़मर्रा की छोटी-छोटी चीज़ें — एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लेटें, पानी की बोतलें, थैले, मछली पकड़ने के जाल — इस्तेमाल के बाद बिना किसी रोक-टोक के समुद्र में पहुँच जाती हैं। तटीय इलाकों में रहने वाली प्रजातियाँ — कछुए, सील, मछलियाँ और पक्षी — अक्सर प्लास्टिक को भोजन समझकर निगल लेती हैं। कछुए प्लास्टिक बैग को जेलीफिश समझकर खा जाते हैं। सील और डॉल्फिन फिशिंग नेट्स में फँसकर दम तोड़ देते हैं। पक्षी चमकदार प्लास्टिक के टुकड़े भोजन समझकर अपने बच्चों के मुँह में ठूँस देते हैं। नतीजा एक ही — पेट में प्लास्टिक भरता जाता है, भूख मर जाती है, और मौत धीरे-धीरे, तड़प-तड़प कर आती है।
लेकिन खतरा यहीं खत्म नहीं होता। प्लास्टिक टूट-फूटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है — इतना बारीक कि आँख से दिखाई भी नहीं देता। ये सूक्ष्म कण मछलियों, झींगों, शंख-सीपों के शरीर में घुस जाते हैं, फिर खाद्य श्रृंखला के रास्ते हमारे प्लेट में पहुँचते हैं। आज हम जिस मछली को बड़े चाव से खाते हैं, उसमें प्लास्टिक का जहर पहले से मौजूद होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये माइक्रोप्लास्टिक अब इंसानी खुराक तक पहुँच रहे हैं और कैंसर, हार्मोनल असंतुलन, जन्मजात विकृतियाँ जैसे गंभीर रोग बढ़ा रहे हैं। प्लास्टिक की उम्र हजारों साल होती है। एक बार समुद्र में गया प्लास्टिक कभी पूरी तरह खत्म नहीं होता। वह बस छोटा होता जाता है, फैलता जाता है, और हर बार किसी न किसी जीव की जान लेता है।
सूर्य की गर्मी और लहरों की रगड़ में प्लास्टिक से जहरीले रसायन पानी में घुलते रहते हैं। ऑक्सीजन घटती है, डेड ज़ोन बनते हैं — ऐसे इलाके जहाँ कोई जीव जिंदा नहीं बचता। जब ये रिक्त स्थान बढ़ते हैं तो पूरी खाद्य श्रृंखला खतरे में पड़ जाती है। समुद्र हमारी पृथ्वी का फेफड़ा है। अगर ये फेफड़े बंद हो गए तो हम भी नहीं बचेंगे।
समाधान मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। हमें सिर्फ तीन काम करने हैं —
– अनावश्यक प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करना,
– सिंगल-यूज़ प्लास्टिक को हमेशा के लिए अलविदा कहना,
– हर प्लास्टिक कचरे का जिम्मेदारी से निस्तारण करना।
एक व्यक्ति, एक परिवार, एक शहर अकेले नहीं लड़ सकता। सरकार व समाज को मिलकर कानून और जागरूकता अभियानों के माध्यम से ठोस प्रयास करने होंगे। पूरी दुनिया को एकजुट होकर इस महासंकट का हल ढूँढना होगा। समुद्र ने हमें जीवन दिया है। अब हमारी बारी है कि हम समुद्र को उसका जीवन वापस दें।
क्या आप आज से प्लास्टिक मुक्त समुद्र के लिए एक कदम बढ़ाएँगे?
*लेखक पर्यावरण मामलों के पत्रकार हैं।

दूरदर्शी लेख जो एक अनोखी अनदेखी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करता है जो मानवता के के अस्तित्व लिए एक गंभीर चुनौती प्राकृतिक असुंतलन के रूप में खड़ी होने वाली है