पितृ दिवस की सार्थकता का सवाल
आज पितृ दिवस है। पितृ दिवस, यानी वह खास दिन जब हम अपने पिता के उस अनमोल योगदान को याद करते हैं, जो उन्होंने हमारे जीवन को संवारने में दिया। यह दिन, जिसे दुनिया फादर्स डे के नाम से जानती है, केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक भावना है—पिता के प्रेम, त्याग और मार्गदर्शन के प्रति कृतज्ञता जताने की। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम इस दिन की सार्थकता को सचमुच समझते हैं? भारत में, जहां परिवार और संस्कारों की जड़ें गहरी रही हैं, वहां भी आधुनिकता की आंधी में कई बार यह भावना कहीं पीछे छूट जाती है। पिता, जो अपनी संतान के लिए दिन-रात मेहनत करता है, जीवन के अंतिम पड़ाव में बस थोड़ा सा स्नेह और साथ चाहता है। मगर आज की तेज रफ्तार जिंदगी में कितने लोग इस चाह को पूरा कर पाते हैं?
दरअसल पितृ दिवस कहें या फादर्स डे कहें का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि हम अपने पिता जो हमारे पहले शिक्षक ही नहीं,मार्गदर्शक और संरक्षक होते हैं, को उनके प्यार, सहयोग,त्याग और समर्पण के लिए उनका हृदय से धन्यवाद दें और उनके जीवन पर्यन्त आभारी रहें। पिता की संतुष्टि ही पितृ दिवस की सार्थकता है। पिता हमेशा संतान की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता है लेकिन वही संतान उसकी सेवा तो दूर उससे हर क्षण मुक्ति की कामना करती है। ऐसी संतान ढूंढने के लिए आपको कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, वह विलक्षण क्षमता युक्त प्राणी आपको अपने आस-पास ही मिल जायेंगे। बढ़ते वृद्धाश्रम इसके जीवंत प्रमाण हैं।
भारतीय सांख्यिकी विभाग के 2021 के आंकड़े बताते हैं कि देश में वृद्धाश्रमों की संख्या पिछले दो दशकों में दोगुनी हो चुकी है। दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रहने वाले 78 वर्षीय रामेश्वर प्रसाद की कहानी दिल को छू जाती है। वह बताते हैं, “मैंने अपने बेटे के लिए सबकुछ किया। उसकी पढ़ाई, उसका करियर, उसका घर—सब मेरी मेहनत से बना। लेकिन आज वह महीनों में एक बार भी मुझसे मिलने नहीं आता।” रामेश्वर जैसे हजारों पिता आज अपने बच्चों के स्नेह के लिए तरस रहे हैं। यह आंकड़ा और यह कहानी आज के समाज की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, जहां संतानें अपने सुख और ऐश्वर्य की खोज में पिता की जरूरतों को भूल जाती हैं।
यह विचारणीय है कि पिता जिसने संतान के सुख की खातिर अपना सर्वस्व होम कर दिया, उसे अपने जीवन के अंतिम दौर में संतान के स्नेह और समय की आकांक्षा रहती है लेकिन संतान पिता के सुख-दुख की चिंता से परे उनकी अवस्था को जानते-समझते हुए अपने सुख और ऐश्वर्य भोग की यात्रा में ही लिप्त रहती है और पिता अपनी शय्या पर लेटे-लेटे ईश्वर से शीघ्र मुक्ति की प्रार्थना करता है। यह मौजूदा दौर की कड़वी हकीकत है। ऐसे विरले सौभाग्यशाली पिता होते हैं जिन्हें सेवाभावी संतान प्राप्त होती है। वे पिता धन्य हैं और वह संतति स्तुति योग्य। ऐसी संतति के लिए हर दिन पितृ दिवस है। इसलिए पितृ दिवस को किसी दिवस विशेष की सीमा में बांधना न्यायोचित नहीं है।
लेकिन इस अंधेरे में कुछ रोशनी की किरणें भी हैं। बेंगलुरु के 32 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनिल कुमार की कहानी इसका जीवंत उदाहरण है। अनिल, जो अपने पिता को अपने साथ रखते हैं, कहते हैं, “मेरे पिता ने मेरे लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। अब मेरी बारी है कि मैं उनकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल रखूं।” यह बयान अनिल ने 12 जून 2025 को बेंगलुरु में आयोजित एक सामुदायिक कार्यक्रम में दिया, जहां वे अपने पिता के साथ सामाजिक कार्यों में भाग लेने आए थे। उनकी यह भावना न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी सिखाती है कि पितृ दिवस का असली मतलब एक दिन की औपचारिकता नहीं, बल्कि हर दिन अपने पिता के प्रति कर्तव्य निभाना है।
दिल्ली के एक अन्य उदाहरण में, 65 वर्षीय रिटायर्ड शिक्षक सुरेंद्र सिंह अपनी बेटी ममता के साथ रहते हैं। ममता, जो एक स्कूल टीचर हैं, बताती हैं कि उनके पिता ने उन्हें पढ़ाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी। आज ममता अपने पिता की हर जरूरत का ध्यान रखती हैं, चाहे वह उनकी दवाइयां हों या सुबह की सैर। ममता कहती हैं, “मेरे लिए पितृ दिवस हर दिन है।” इसलिए पितृ दिवस को किसी दिवस विशेष की सीमा में बांधना न्यायोचित नहीं है।
यह सही है कि अनिल और ममता जैसे लोग समाज में कम ही हैं, लेकिन उनकी कहानियां हमें प्रेरित करती हैं। पितृ दिवस को केवल एक कैलेंडर की तारीख तक सीमित करना इसकी भावना के साथ अन्याय है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पिता का सम्मान, उनकी देखभाल और उनके प्रति कृतज्ञता एक जीवन भर का कर्तव्य है। आज जब हम पितृ दिवस मना रहे हैं, तो आइए एक संकल्प लें कि हम अपने पिता को वह स्नेह, समय और सम्मान देंगे, जिसके वे असली हकदार हैं। क्योंकि एक पिता की मुस्कान से बड़ा कोई तोहफा नहीं हो सकता।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद

