रामभरोस मीणा
पर्यावरण कार्यकर्ता पर जान से मारने की धमकियां बेहद निंदनीय
अलवर: अलवर जिले के भोपाला गांव में पर्यावरण कार्यकर्ता रामभरोस मीणा को जान से मारने की धमकियां मिलने का आरोप एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसने पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वालों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह शहर, जो अपनी प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है, आज उन लोगों की वजह से चर्चा में है जो पर्यावरण को बचाने की कोशिशों को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं। रामभरोस मीणा, जो वर्षों से पेड़-पौधों, नदियों और जल संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं, अब कुछ प्रभावशाली लोगों के निशाने पर हैं। आरोप है कि इन लोगों को उनके पर्यावरण संरक्षण के कार्य रास नहीं आ रहे।
रामभरोस मीणा पिछले दो दशकों से पर्यावरण को बचाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। एल पी एस विकास संस्थान के तहत वे न केवल वृक्षारोपण और बीज बुवाई जैसे काम कर रहे हैं, बल्कि स्कूलों में बच्चों और गांवों में ग्रामीणों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं। उन्होंने स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के लिए काम करने वालों को सम्मानित करने और लोगों में प्रकृति के प्रति प्रेम जगाने का बीड़ा उठाया है। उनके इन प्रयासों को समाज का व्यापक समर्थन भी मिला है। लेकिन, अब उनके सामने एक ऐसी चुनौती खड़ी हो गई है, जो उनकी हिम्मत को तोड़ने की कोशिश कर रही है।
रामभरोस ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “आदरणीय बुजुर्गों, युवा साथियों, पर्यावरण प्रेमियों, शिक्षाविदों, आप सभी से निवेदन है कि मैंने अपने सीमित संसाधनों और मेहनत से पर्यावरण संरक्षण को अपना जीवन समर्पित कर दिया है। समाज, सरकार या किसी व्यक्ति ने मुझे आज तक कोई सहयोग नहीं दिया, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मगर पिछले एक सप्ताह से कुछ लोग मुझे मारने, पिटवाने, झूठे केसों में फंसाने और काम रोकने की सरेआम धमकियां दे रहे हैं। मेरे घर आकर मुझे मारने और पेड़ न लगाने की धमकी दी गई है।”
भोपाला गांव में हनुमान जी की डूंगरी, एक नंगी पहाड़ी जो कभी बंजर थी, आज रामभरोस के प्रयासों से हरी-भरी होने लगी है। वर्ष २०१७-१८ से उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के साथ इस ३.१८ हेक्टेयर की ग्राम पंचायत गुवाड़ा भोपाला और २.७० हेक्टेयर की ग्राम पंचायत गढ़बसई की गैर मुमकिन पहाड़ी पर वृक्षारोपण शुरू किया। यह क्षेत्र, जो राजस्व विभाग के अधीन अतिक्रमण-मुक्त है और ऐतिहासिक अशोक कालीन हनुमान जी के मंदिर के लिए जाना जाता है, अब करीब पांच हजार पेड़ों का घर बन चुका है। इन पेड़ों की ऊंचाई एक फुट से दस फुट तक है, और यह पहाड़ी अब हरियाली की मिसाल बन रही है।
लेकिन, जैसे ही रामभरोस ने इस सत्र (२०२५-२६) में बीज बुवाई और पर्यावरण जागरूकता के लिए स्लोगन लेखन का काम शुरू किया, उनके खिलाफ कथित तौर पर उत्पीड़न शुरू हो गया। आरोप है कि ११ जुलाई २०२५ को एक व्यक्ति ने उन पर पत्थर फेंके, जबकि एक महिला ने उन्हें गालियां दीं। इसके बाद, १४ जुलाई २०२५ को सुबह करीब ९:४० बजे एक व्यक्ति उनके घर आया और उन्हें जान से मारने, कहीं दूर पिटवाने, झूठे मुकदमों में फंसाने और बर्बाद करने की धमकियां दीं। रामभरोस ने बताया, “उन्होंने कहा कि अगर मैंने वीडियो बनाए, बीज बुवाई की या पेड़ लगाए तो मेरे पैर काट देंगे। वे बोले, ‘हमने जंगल खत्म कर दिया, यह तो जब चाहें खत्म कर देंगे।’ वे मुझे कहीं भी गूदा देने की धमकी दे रहे हैं। पेड़ लगाने के चक्कर में मैं क्यों मौत बुला रहा हूँ, ऐसा कहकर डराने की कोशिश की जा रही है।”
रामभरोस ने समाज से मदद की गुहार लगाते हुए कहा, “आप सभी से निवेदन है कि मेरे कार्यों को देखते हुए मेरा सहयोग करें। मुझे अंदेशा है कि मुझे खतरा हो सकता है। आप मुझे सुरक्षा और सहयोग प्रदान करें।” इन घटनाओं ने रामभरोस को मानसिक तनाव और डर में डाल दिया है। उन्हें अब अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता सता रही है।
राज्य के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, पुलिस महानिदेशक, जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को रामभरोस और उनके परिवार को सुरक्षा देनी चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वालों को डराने की कोशिश न केवल उनके हौसले को तोड़ती है, बल्कि समाज के लिए एक खतरनाक मिसाल भी कायम करती है।यह मामला न केवल रामभरोस मीणा की व्यक्तिगत सुरक्षा का सवाल है, बल्कि उन तमाम पर्यावरण कार्यकर्ताओं की आवाज है जो प्रकृति को बचाने के लिए हर दिन संघर्ष कर रहे हैं। अलवर की यह घटना एक चेतावनी है कि पर्यावरण संरक्षण का रास्ता आसान नहीं है, लेकिन इस रास्ते पर चलने वालों को समाज और प्रशासन का साथ मिलना चाहिए।
*वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद्।

