पर्यावरण: मेरी इजिप्ट यात्रा
– डॉ राजेंद्र सिंह*
मैं इजिप्ट 2 नवंबर 2022 को सुबह पहुंच गया था। यहां सुबह पहुँचते ही रेड सी में मेरी विश्व जल प्रार्थना से दिन के कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। यहां दिन भर दुनिया के 80 से ज्यादा लोग सभी महाद्वीपों से आए थे। उनके साथ संस्कृति, आस्था और अध्यात्म में प्रकृति और पर्यावरण का जोड़ कैसे संभव है? मानव अपने को प्रकृति का नियंता जो इस तकनीक, इंजीनियरिंग और आधुनिक विज्ञान से मान बैठा, वह अब अपने आपको प्रकृति का अंग कैसे माने? प्रकृति का अंग बनने के लिए मनुष्य के मन में प्रकृति के लिए प्रार्थना, आरती और उत्सव में प्रकृति का प्यार, सम्मान से मिलने वाली समता और सादगी कैसे आए?
इन सभी विषयों पर दिन भर बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद रात 9 बजे सभी लोगों ने सिनाई पर्वत की यात्रा शुरू की थी। यह यात्रा रैड सी पैराडाइज से शुरू हुई और सिनाई पर्वत पर सुबह सूरज की पहली किरण निकलने से पहले यहां पहुंच गए थे। वहां तीन घंटे प्रार्थनाएं की गयीं जिसमें सभी लोगों ने अपने अपने तरीके और मूल ज्ञान से प्रार्थना की थी। मैने भी भारतीय मूल ज्ञान तरीके से गणेश, ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी का स्मरण किया था। प्रकृति को नमन करके, जल की प्रार्थना करवाई। इस प्रकार सभी ने अपने अपने धर्मों की प्रार्थना की थी। 3 घंटे के बाद फिर वापस यात्रा आरंभ हुई। यात्रा वापस पहुंचते-पहुंचते फिर दूसरे दिन की शाम हो गई थी। हम लोग बहुत थक चुके थे। आते ही बिना कुछ खाए, गर्म पानी में स्नान करके सो गए थे।
अगले दिन सुबह फिर जल्दी उठे और रैड सी में जाकर सभी धर्मों की प्रार्थना में शामिल हुए। इस प्रकार पांच दिन बीत गए थे। इस दौरान दुनिया के बाढ़ और सुखाड़ की समझ रखने वाले लोगों से मुलाकात की थी। यहां साउथ अफ्रीका के संचार मंत्री जय श्री नायडू से खास बातचीत हुई थी। यह बहुत उम्र के इंसान हैं लेकिन ज्ञान की बहुत गहराई है। इन्होंने हमारे बाढ़ -सुखाड़ विश्व जन आयोग का कमिश्नर बनना स्वीकार किया है।
यहां से अधिकतर लोग कॉप 27 में चले गए थे, लेकिन मैं फिर से सिनाई पर्वत के उत्तर दिशा में स्थित स्ट्रीम पर काम करने के लिए मोना के साथ गया था। यहां इन लोगों को बताया कि यहां काम कैसे कर सकते हैं। यहां कुछ साइट सिलेक्शन की जगह ढूंढी और पानी का काम शुरू करवाया। यह बाढ़ – सुखाड़ मुक्ति के लिए प्रत्यक्ष काम की शुरुआत हुई है।
अगले दिन वहां से हबीबा पहुंचे। यहां के साथियों के साथ खेती का काम देखा, समझा। यहां 4 दिन रहे थे। इसी बीच मादे के साथ कॉप 27 में डॉ विनीता ने बाढ़ – सुखाड़ विश्व जन आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। इस प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए मैने कहा था कि भारत का सुखाड़ मुक्ति का 7 हजार साल पुराना अनुभव है और बाढ़ का 5 हजार साल पुराना अनुभव है । राजा जनक के जमाने में अकाल और कृष्ण के जमाने में बाढ़ आई थी। इनका समाधान भारत की जनता ने ही किया था। तभी से बाढ़ – सुखाड़ मुक्ति के कार्य में हम सभी लगे हुए हैं।
फिर भी इस आधुनिक शिक्षा ने बाढ़ – सुखाड़ को बढ़ा दिया है । आधुनिक शिक्षा ने भारतीय ज्ञान तंत्र को तोड़ मरोड़ के पीछे हटा दिया है। इसलिए यह आधुनिक ज्ञान, शिक्षा है। ज्ञान व्यक्ति स्वेच्छा से लेता है और शिक्षा को कोई देने वाला होता है। जो देने वाला होता है उसका अपना तरीका और लक्ष्य होता है,इसी के अनुसार अपनी शिक्षा देता है। शिक्षा देकर वह काम करवाता है । शिक्षा शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण सिखाती है और विद्या प्रकृति का पोषण सिखाती है। यह विद्या समता, सादगी से आती है, शिक्षा ऊंच नीच का भेदभाव बढ़ाती है । इसलिए शिक्षा और विद्या पर मैंने बहुत गहनता से समूह के साथ बातचीत की थी। पूरी विमर्श के बाद निष्कर्ष की संस्तुति बनी कि भारतीय मूल ज्ञान मतलब विद्या जो हमे पोषण देती है। शिक्षा हमे शोषण सिखाती है ।
इसके बाद हम इजिप्ट के शर्म अल-शेख में कॉप 27 में पहुंचे थे। यहां वर्ल्ड बैंक के पैनल पर मैंने कहा था कि अब वर्ल्ड बैंक को केवल सरकारों के भरोसे नहीं बल्कि सामुदायिक विद्या से समाज के साथ मिलकर कुछ काम करने की जरूरत है। वर्ल्ड बैंक, विश्व का बैंक है। इसे विश्व की जनता और प्रकृति के हित में भी काम करना चाहिए। हम जानते हैं कि जिस देश का पैसा है, वह अपनी मर्जी से आम करेगा। फिर भी एक नीति होनी चाहिए जो समाज के हित में साझा काम करे। समाज और प्रकृति का सब की भलाई का काम करना चाहिए।
सरकारों में बहुत सारा पैसा केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर खर्च हो जाता है, जबकि समुदाय साझे भविष्य को सर्वोपरि मानकर, सबके भले के लिए साझा काम करता है। अंत में वर्ल्ड बैंक के ग्लोबल पॉलिसी डायरेक्टर ने कहा कि हम राजेंद्र सिंह की बात का समर्थन करते हैं और हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।
इसके बाद कॉप के ब्लू जोन में एक नदी का सृजन करते हुए कहा कि नीर, नारी और नदी को आगे बढ़ाने की जरूरत है। यदि धरती को बचाना है तो इसके रक्षण संरक्षण का काम स्त्री भाव से शुरू होगा। इसलिए हम नीर, नारी और नदी को नारायण मानते है। तभी यह दुनिया बेहतर बन सकेगी।
इसके बाद अपने बाढ़ – सुखाड़ विश्व जन आयोग हेतु सदस्यों, जनरल कमिश्नर, सलाहकार के साथ बैठक हुई। इसमें सभी के काम निर्धारित करने का विचार हुआ। उसके उपरांत 16 नवंबर को रात 10 बजे मुझे इजिप्ट से विदाई दी गई थी। इस प्रकार यह पूरी इजिप्ट की यात्रा संपन्न हुई थी।
इजिप्ट में कॉप 27 के श्वेत पत्र की भी मांग रखते हुए कहा था कि यह कॉप नहीं, एक सर्कस है। इस सर्कस में हंटर चलाने वाला रेफ्री इसमें किसी का पहले तो एग्रीमेंट नहीं होने, एग्रीमेंट हो जाए तो फिर उसे एग्ज़ेक्यूशन नहीं होने देता। इसलिए कॉप को इस प्रक्रिया को बंद करना चाहिए, क्योंकि यह शिक्षा पर भी आधारित है। शिक्षा तो गैर बराबरी लाती है। इस कारण दुनिया में हमें नए कॉप, जो विद्या से आरंभ हो और विद्या को आगे बढ़ाएं, ऐसे कॉप को चलाएंगे। इस कॉप की स्थापना हेतु शर्म अल-शेख में मैने शिवलिंग को स्थापना करके, दुनिया भर के लोगों को संकल्प दिलाया कि हमें एक ऐसा कॉप आरंभ करने की जरूरत है, जिसमें समता, सादगी और बराबरी से सभी के हित को बात की जा सके।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।