
सैरनी का सूरज– 2: मलबे के पहाड़ों से समृद्धि की राह तक
करौली: सैरनी नदी के किनारे, जहाँ कभी खनन के धमाकों ने जंगलों को चीर दिया था, आज मिट्टी की सौंधी खुशबू और खेतों की हरियाली फैल रही है। यहाँ के क्वार्टजाइट्स और शिस्ट्स पत्थर, जो कभी डकैतों की बंदूकों की गूंज को गवाह बने, अब चेकडैम और तालाबों की नींव बन रहे हैं। सैरनी का 841 वर्ग किलोमीटर का जलागम क्षेत्र, जो खनन के मलबे के पहाड़ों और सूखे कुओं की त्रासदी से जूझता था, आज सामुदायिक मेहनत और जल संरक्षण की मिसाल बन चुका है। यह कहानी है चमन सिंह की, जिन्हें डकैतों ने जंगल में बंधक बनाया, फिर सम्मान के साथ छोड़ा; मुकेश और छाजूराम की, जिन्होंने गाँव-गाँव में जल संरक्षण की अलख जगाई; और उन अनगिनत ग्राम सभाओं की, जिन्होंने सैरनी को न केवल पुनर्जनन किया, बल्कि एक हिंसक अतीत को समृद्धि और शांति की धरती में बदल दिया।
सैरनी की यह यात्रा आसान नहीं थी। 1992 में तरुण भारत संघ ने जब इस क्षेत्र में पहला तालाब बनाया, तब गाँवों में पानी की एक बूँद भी उम्मीद की तरह दुर्लभ थी। कुएँ सूख चुके थे, और भूजल स्तर 2.25 मीटर तक गिर गया था। खनन ने नदी को बंजर और जमीन को उजाड़ दिया था। सिलिका सैंड, मेसनरी स्टोन, और चाइना क्ले के लिए खोदी गई जमीन ने मलबे के पहाड़ खड़े कर दिए, जो आज भी पर्यावरण के जख्मों की गवाही देते हैं। लेकिन सैरनी के लोग, जिन्हें खनन ने लाचार और बेकार बनाया था, ने हार नहीं मानी। उन्होंने तरुण भारत संघ के साथ मिलकर 160 जल संरचनाएँ बनाईं—ताल, पाल, झाल, और चेकडैम—जिन्होंने 48% वर्षा जल (201.6 मिलियन लीटर) को संरक्षित किया। औसत वार्षिक वर्षा 616 मिमी के साथ, इन संरचनाओं ने नदी को फिर से बहने का मौका दिया।
चमन सिंह इस बदलाव के नायक हैं। एक बार जंगल में डकैतों ने उन्हें तीन दिन तक बंधक बनाए रखा। लेकिन जब उन्हें पता चला कि चमन सिंह ने तालाब बनाकर गाँवों में पानी लौटाया है, तो उन्होंने न केवल उन्हें छोड़ दिया, बल्कि सम्मान भी दिया। चमन सिंह ने हँसते हुए बताया, “मैं डरा नहीं। मुझे पता था कि पानी की ताकत बंदूक से बड़ी है।” एक दूसरी घटना में, खिजुरा से रायबैली जाते वक्त चमन सिंह को 10-12 बंदूकधारियों ने रोका। उनके साथ एक परिचित ग्रामीण था, जिसने कहा, “आज रायबैली मत जाओ, वहाँ डकैत रुकेंगे।” चमन सिंह बिना बहस किए लौट आए। उन्होंने कभी डकैतों से टकराव नहीं किया, न ही उन्हें बंदूक छोड़ने के लिए उकसाया। लेकिन जब गाँवों में पानी लौटा, तो डकैतों ने खुद बंदूकें छोड़ दीं।
मुकेश, छाजूराम, और रणवीर सिंह जैसे जल योद्धाओं ने चमन सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। मुकेश ने गाँव-गाँव जाकर ग्राम सभाओं को संगठित किया, और लोगों को तालाब बनाने के लिए प्रेरित किया। छाजूराम ने कांजरी तालाब के निर्माण में दिन-रात मेहनत की, जिसने सैरनी को पुनर्जनन किया। रणवीर सिंह ने बाँसवारी जंगल के पास चेकडैम बनवाए, जिससे जंगली जीवों की वापसी शुरू हुई। इन लोगों की मेहनत ने सैरनी के जलागम क्षेत्र को नया जीवन दिया। आज नदी का जल स्तर 10 फीट पर स्थिर है, और भूजल भंडार, जो विंध्यान बलुआ पत्थर और शेल की सतही फ्रैक्चर से समृद्ध हैं, फिर से भरने लगे हैं।
सैरनी की भू-संरचना इस बदलाव की रीढ़ है। क्षेत्र में क्वार्टजाइट्स और शिस्ट्स जैसे पत्थर मिलते हैं, जिनमें पानी कम रुकता है। लेकिन ऐलूवियम और तालुस सैक्री की असंगठित संरचनाएँ पानी को रोकने में मदद करती हैं। इनफ्लो 9 से 32 मीटर गहरा है, और पानी का रिचार्ज नाइग्रेट को स्थिर कर रहा है। यह तकनीकी चमत्कार सैरनी को शुद्ध और सदानीरा बनाए रखता है। लेकिन यह केवल तकनीक की कहानी नहीं है। यह उन ग्राम सभाओं की ताकत है, जिन्होंने जल संरक्षण को अपनी जिम्मेदारी माना।
ग्राम सभाएँ और पंचायतें पहले जल संरक्षण को प्रतिद्वंद्वी मानती थीं। उन्होंने मिट्टी तो खोदी, लेकिन बिना समझे काम नहीं किया। तरुण भारत संघ ने उन्हें प्रशिक्षित किया, और सैरनी संसद ने नीति निर्माण को गति दी। 2017 में बनी यह संसद गाँवों को एकजुट करती है। इसने फसल-चक्र को वर्षा-चक्र से जोड़ा, और कम पानी वाली फसलों—जैसे बाजरा, तिल, और मूंग—को बढ़ावा दिया। ग्राम सभाएँ अब वृक्षारोपण और हरियाली बढ़ाने में सक्रिय हैं। वे जंगल नहीं काटने और जमीन नहीं बेचने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह सामुदायिक जल प्रबंधन का ऐसा मॉडल है, जो बिना बाहरी संस्थाओं पर निर्भर हुए गाँवों को आत्मनिर्भर बनाता है।
खनन ने सैरनी को गहरे घाव दिए। 90 सालों में सिलिका सैंड, मेसनरी स्टोन, और चाइना क्ले के उत्खनन ने जमीन को बंजर और नदी को सूखा दिया। मलबे के पहाड़ों ने मिट्टी की संरचना को बिगाड़ दिया, जिसमें पुराना ऐलूवियम (2.88%), लिथोसोल्स और रेगोसोल्स (46.82%), और हाल का ऐलूवियम (25.35%) शामिल है। खनन ने काँटेदार झाड़ियों को छोड़कर हरियाली छीन ली। 1955 से पहले बड़े पैमाने पर खनन हुआ, और तरुण भारत संघ की उच्चतम न्यायालय में याचिका के बाद भी यह कुछ समय तक चला। लेकिन जल संरक्षण ने वन भूमि पर खनन को रोका, और पर्यावरण में सुधार शुरू हुआ। फिर भी, मलबे के पहाड़ आज भी सैरनी की सेहत को चुनौती देते हैं।
खनन ने सामाजिक ताने-बाने को भी तोड़ा। इसने लोगों को खेती से दूर कर बंदूक की राह पर धकेला। 1970 में जब कुएँ सूखने लगे, तो 1990 तक खेती नगण्य हो गई। लोग लाचार, बेकार, और बीमार होकर बागी बन गए। गाँव खाली होने लगे, और पलायन बढ़ गया। लेकिन जल संरक्षण ने इस प्रवृत्ति को पलटा। खेती की जमीन दोगुनी हो गई, और अब 100-300 मन बाजरा, 200-400 मन गेहूं और सरसों की पैदावार हो रही है। मछली पालन और सिंघाड़े की खेती ने नया आर्थिक आधार दिया।
जल संरक्षण की लागत इसकी ताकत है। पहले 1 रुपये प्रति किलोलीटर का खर्च था, जो अब 3.20 रुपये तक पहुँचा। लेकिन यह निवेश एक साल में ही अन्न, चारा, दूध, घी, और मछली से कई गुना मुनाफा देता है। यह आर्थिक लाभ गाँवों को आत्मनिर्भर बना रहा है। लोग अब घी, दूध, और सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं, और खर्च कम हो गया। बच्चे स्वस्थ हैं, और महिलाएँ सामाजिक कार्यों में हिस्सा ले रही हैं।
सैरनी की जीवनशैली बदल गई। पहले कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति यहाँ नहीं मिलता था। अब बच्चे स्कूल जाते हैं, और लड़कियाँ पढ़ाई में रुचि ले रही हैं। जल, जंगल, और जमीन साक्षरता बढ़ी है। गाँवों में अब बाहरी पर्यटक आते हैं। लंदन की लूसी जैसे लोग बिना डर के गाँवों में घूमते हैं। पहले बागियों का डर था, लेकिन अब सैरनी अपराध-मुक्त है। लोग बाहरी लोगों को रोजगार दे रहे हैं, और उनकी भावनाशीलता उनकी ताकत है।
तरुण भारत संघ के मौलिक सिसोदिया और इंदिरा खुराना ने इस बदलाव को दस्तावेजीकृत किया। डी.जी.पी. शांतनु कुमार और पुलिस अधीक्षक मित्तल जैसे अधिकारियों ने सहयोग दिया। लेकिन असली ताकत सैरनी के लोगों की थी। उन्होंने कभी जलपुरुष से कुछ नहीं माँगा, सिवाय पानी के। उनकी यह सादगी और मेहनत सैरनी को न केवल एक नदी, बल्कि एक प्रेरणा बनाती है।
सैरनी की यह कहानी मलबे के पहाड़ों से समृद्धि की राह तक की यात्रा है। यह ग्राम सभाओं, जल योद्धाओं, और सामुदायिक जल प्रबंधन की जीत है। यह साबित करता है कि जब लोग एकजुट होकर अपनी धरती की रक्षा करते हैं, तो वे न केवल पानी, बल्कि शांति और सम्मान भी वापस लाते हैं। सैरनी की धरती आज इस संदेश को गूँज रही है—पानी की ताकत बंदूक से बड़ी है।
क्रमश:
*लेखिका जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ से एनवायर्नमेंटल साइंस में डॉक्टरेट कर रही हैं और सैरनी नदी में जल संरक्षण से जैवविविधता संवर्द्धन उनके शोध का विषय है।