
सैरनी का सूरज-4: विस्थापन की धूल से विश्वास की नींव तक
करौली: सैरनी नदी के किनारे, जहाँ कभी खनन की धूल ने गाँवों को उजाड़ दिया था, आज सामुदायिक विश्वास की नींव पर समृद्धि की इमारत खड़ी हो रही है। यहाँ की धरती, जिसमें नौ प्रकार के पत्थर—सिलिका सैंड से लेकर मेसनरी स्टोन तक—छिपे हैं, अब केवल मकान नहीं, बल्कि एक नया समाज गढ़ रही है। सैरनी का 841 वर्ग किलोमीटर का जलागम क्षेत्र, जो पिछले सौ साल में दो बार विस्थापन की त्रासदी से गुजरा, आज ऐसी मिसाल पेश कर रहा है, जहाँ पानी पर कभी डकैती नहीं हुई। यह कहानी है उन गाँवों की, जो डकैतों के साथ आमने-सामने आए, फिर भी विश्वास की डोर थामे रहे; उन फसलों की, जो खरीफ और रबी के चक्र में सैरनी की धरती को रंगीन बना रही हैं; और उस सामुदायिक मॉडल की, जो दुनिया को दिखा रहा है कि पानी सिर्फ जीवन नहीं, बल्कि बदलाव का आधार है।
सैरनी की यह गाथा सौ साल की उथल-पुथल से शुरू होती है। एक शताब्दी में इस क्षेत्र ने दो बड़े विस्थापन देखे। पहले सहरिया जनजाति, जिनकी धरोहर नदी और जंगल थे, खनन के बारूदी धमाकों से डरकर बारां जिले के जंगलों में चली गई। उनकी जगह गुर्जर और मीणा आए, जो जंगल और पशुपालन छोड़कर खेती की ओर मुड़े। फिर, खनन और सूखे ने इन समुदायों को भी उजाड़ दिया। गाँव खाली हो गए, और लोग शहरों में मजदूरी की तलाश में भटकने लगे। लेकिन सैरनी की सबसे अनोखी बात यह थी कि इसके पानी पर कभी डकैती नहीं हुई। न किसी ने इसकी धारा लूटी, न ही इसके तालाबों पर कब्जा किया। यह शुद्धता सैरनी को आज भी खास बनाती है।
तरुण भारत संघ ने इस शुद्धता को आधार बनाया। 1992 में शुरू हुआ उनका जल संरक्षण का काम 2019 के बाद रफ्तार पकड़ गया। 160 जल संरचनाओं—ताल, पाल, झाल, और चेकडैम—ने 48% वर्षा जल (201.6 मिलियन लीटर) को संरक्षित किया। इस पानी ने खेतों को सींचा, और गाँवों को फिर से आबाद किया। लेकिन यह बदलाव आसान नहीं था। सैरनी के लोग डकैतों के साथ कई बार आमने-सामने आए। एक बार खिजुरा से रायबैली जाते वक्त तरुण भारत संघ के कार्यकर्ता चमन सिंह को 10-12 बंदूकधारियों ने रोका। एक परिचित ग्रामीण ने चेतावनी दी, “आज रायबैली मत जाओ, वहाँ डकैत रुकेंगे।” चमन सिंह ने बिना टकराव के वापसी की। उन्होंने कभी डकैतों को चुनौती नहीं दी, लेकिन पानी की ताकत ने उन्हें बदल दिया। एक ग्रामीण ने कहा, “पानी ने हमारा भरोसा जीता। हमने बंदूक छोड़ दी, क्योंकि खेतों में अब जिंदगी थी।”
यह विश्वास निर्माण सैरनी की सबसे बड़ी ताकत बना। तरुण भारत संघ के कार्यकर्ता श्रवण शर्मा ने गाँव-गाँव जाकर लोगों को एकजुट किया। जब गुर्जर और मीणा समुदायों ने पहली बार तालाब बनाने का फैसला किया, तो डर और अविश्वास का माहौल था। लेकिन श्रवण ने धैर्य से उनकी बात सुनी, और उन्हें जल संरक्षण की ताकत दिखाई। उनकी मेहनत ने ग्राम सभाओं को मजबूत किया, जो आज सैरनी संसद का आधार हैं। यह संसद गाँवों को नीति निर्माण में सक्रिय करती है, और फसल-चक्र को वर्षा-चक्र से जोड़ती है।
सैरनी की फसलें इस बदलाव का रंगीन चेहरा हैं। खरीफ में ज्वार, बाजरा, तिल, अरहर, उड़द, और मूंग, और रबी में गेहूं, जौ, चना, सरसों, और मटर ने खेतों को जीवंत किया। पहले केवल बाजरा और तिल जैसी पारंपरिक फसलें होती थीं, लेकिन जल संरक्षण ने नई फसलों—जैसे मछली पालन और सिंघाड़े—को जन्म दिया। यह फसल-चक्र वर्षा-चक्र के साथ तालमेल में है, जो गाँवों को आत्मनिर्भर बनाता है। एक किसान ने गर्व से कहा, “पहले एक मन बाजरा भी मुश्किल था। अब 300 मन बाजरा और 400 मन गेहूं होता है।” यह कृषि विविधता सैरनी की आर्थिक रीढ़ बन गई।
सैरनी की धरती अपने पत्थरों के लिए भी जानी जाती है। यहाँ नौ प्रकार की चट्टानें—सिलिका सैंड, मेसनरी स्टोन, चाइना क्ले, व्हाइट क्ले, और साधारण मिट्टी—मिलती हैं। स्थानीय लोग इनसे मकान बनाने में माहिर हैं। लेकिन खनन ने इन पत्थरों को लूटकर क्षेत्र को बंजर बना दिया। मकान बनाने वाले पत्थरों का उत्खनन ने मिट्टी की संरचना को बिगाड़ा, और काँटेदार झाड़ियों को छोड़कर हरियाली छीन ली। तरुण भारत संघ ने इस लूट को रोका, और आज ये पत्थर फिर से गाँवों की नींव बन रहे हैं। एक कारीगर ने कहा, “हमारे पत्थर अब मकान बनाते हैं, न कि मलबे के पहाड़।”
सैरनी मॉडल की वैश्विक प्रासंगिकता इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन का यह मॉडल न केवल राजस्थान, बल्कि दुनिया के सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए प्रेरणा है। यह दिखाता है कि कम लागत—3.20 रुपये प्रति किलोलीटर—से पानी संरक्षित किया जा सकता है, जो एक साल में अन्न, चारा, और दूध से कई गुना मुनाफा देता है। यह मॉडल ग्राम सभाओं की ताकत पर टिका है, जो बिना बाहरी निर्भरता के गाँवों को आत्मनिर्भर बनाता है। एक कार्यकर्ता ने कहा, “सैरनी ने हमें सिखाया कि पानी सिर्फ प्यास नहीं बुझाता, बल्कि समाज को जोड़ता है।”
सामाजिक बदलाव का मनोवैज्ञानिक प्रभाव सैरनी की अनकही कहानी है। यहाँ के लोग, जो कभी बागी कहलाते थे, आज रचनात्मक कार्यकर्ता हैं। पहले वे अपनी पहचान छुपाते थे, और बागी होने की बात स्वीकार नहीं करते थे। लेकिन पानी ने उन्हें भयमुक्त किया। एक पूर्व बागी ने कहा, “पहले हम डर में जीते थे। अब हम सच बोलते हैं, और सम्मान के साथ जीते हैं।” यह भयमुक्ति सैरनी को अपराध-मुक्त बनाने का आधार बनी। गाँवों में अब हँसी और उमंग है। बच्चे खेलते हैं, और बूढ़े अपनी कहानियाँ सुनाते हैं।
सैरनी का यह सफर विस्थापन की धूल से विश्वास की नींव तक की यात्रा है। यह उन ग्रामीणों की जीत है, जिन्होंने डकैतों के सामने हार नहीं मानी। यह उन फसलों की जीत है, जिन्होंने बंजर धरती को रंगीन किया। और यह उस मॉडल की जीत है, जो दुनिया को दिखाता है कि पानी, विश्वास, और मेहनत मिलकर चमत्कार कर सकते हैं। सैरनी की धारा आज यह गूँज रही है—जब समाज एकजुट होता है, तो कोई त्रासदी उसे तोड़ नहीं सकती।
क्रमश:
*लेखिका जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ से एनवायर्नमेंटल साइंस में डॉक्टरेट कर रही हैं और सैरनी नदी में जल संरक्षण से जैवविविधता संवर्द्धन उनके शोध का विषय है।