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पहलगाम आतंकी हमले की आग अभी भी भारत के दिल में धधक रही है, और पाकिस्तान की ढीठता ने उसे फिर से हवा दे दी है। 28 मई 2025 को लाहौर की सड़कों पर आतंकियों ने खुलेआम रैली निकाली। यह रैली कोई साधारण जलसा नहीं थी—यह पाकिस्तान की बेशर्मी का जीता-जागता सबूत थी। मंच पर आतंकियों के पोस्टरों के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना के प्रमुख, अब फील्ड मार्शल, मुनीर की तस्वीर सजी थी। स्थानीय सूबे के विधानसभा अध्यक्ष की मौजूदगी ने इस नजारे को और शर्मनाक बना दिया। ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकी 7 मई तक अपनी खोह में छिपे थे, लेकिन महज 20 दिन बाद, 28 मई को, सेना के भरोसे कि अब आतंकी सुरक्षित हैं, वे खुलेआम सड़कों पर उतर आए। पाकिस्तानी सेना ने इस रैली की सुरक्षा का जिम्मा बखूबी निभाया। आतंकियों ने भारत को जमकर कोसा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया और सिंधु जल समझौते पर खुली चुनौती दी। उन्होंने पाकिस्तानी जनता को भारत के खिलाफ भड़काने के लिए सब्जबाग दिखाए, और यह सब सेना की छत्रछाया में हुआ। यह दृश्य दुनिया को यह सवाल पूछने पर मजबूर करता है—पाकिस्तान में आतंक और सेना का गठजोड़ कितना गहरा है?
पाकिस्तान का सच अब किसी से छिपा नहीं। नेशनल इक्वलिटी पार्टी फॉर जम्मू कश्मीर गिलगिट-बाल्टिस्तान एंड लद्दाख के अध्यक्ष प्रोफेसर सज्जाद रज़ा का खुलासा चौंकाने वाला है। उनके मुताबिक, पाकिस्तान की 50 फीसदी से ज्यादा मस्जिदें आतंकियों का अड्डा बन चुकी हैं। इन मस्जिदों में हमलों के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है, और अपनी पहचान छिपाने के लिए आतंकी इन्हें ढाल बना रहे हैं। गुलाम जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) और पूरे पाकिस्तान में आतंकी शिविर आज भी सक्रिय हैं। रज़ा कहते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकियों और पाकिस्तानी सेना को सतर्क तो किया, लेकिन डर नहीं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सेना खुद मैदान में नहीं उतरती—वह कठपुतलियों को मौत के लिए भेजती है। यह सिलसिला आज भी थमा नहीं है।
पहलगाम आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया था, और इस जघन्य कांड के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों, लॉन्च पैड्स और वायुसेना अड्डों को तहस-नहस कर दिया। यह कार्रवाई न केवल पाकिस्तान के लिए एक करारा तमाचा थी, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत के आतंकवाद के खिलाफ अटल रुख को भी जबरदस्त समर्थन मिला। ब्रिटेन, फ्रांस, इजरायल, नीदरलैंड, ईरान, अफगानिस्तान, जर्मनी, जापान, पनामा, इटली, डेनमार्क, सिंगापुर, कतर, कांगो, मालदीव, अंगोला, गुयाना, कोलंबिया और सियेरालियोन जैसे देशों ने एक स्वर में भारत की कार्रवाई को जायज ठहराया। इन देशों ने पाकिस्तान को साफ चेतावनी दी कि वह अपनी जमीन पर आतंकी गतिविधियों पर नकेल कसे।
लेकिन पाकिस्तान की ढीठता का आलम यह है कि वह न सुधरा, न झुका है। पाकिस्तानी सेना न केवल आतंक को पनाह देती है, बल्कि वह देश की नीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर पूरी तरह हावी है। तकरीबन 54 से ज्यादा वाणिज्यिक कंपनियां उसके नियंत्रण में हैं। जब भी उसकी आंतरिक विश्वसनीयता कमजोर पड़ती है, वह भारत के साथ तनाव पैदा करती है। आतंकवाद का समर्थन तो वह बरसों से करती आ रही है, और अब उसने खालिस्तान आंदोलन को फिर से हवा देना शुरू कर दिया है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई, कनाडा में सिख फॉर जस्टिस के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू और अन्य खालिस्तानी आतंकियों के साथ मिलकर भारत में अशांति फैलाने की साजिश रच रही है। पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों में थानों, सेना और सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की योजना है। इस मुहिम को परवान चढ़ाने के लिए फरार खालिस्तानी आतंकियों को फिर से भारत बुलाया जा रहा है। इनका मकसद है आतंकी हमलों को बढ़ावा देना, हत्याएं करवाना, समाज में वैमनस्य और भेदभाव पैदा करना, वसूली करना और अस्थिरता फैलाना।
यह साजिश केवल आतंकी हमलों तक सीमित नहीं है। खालिस्तानी समर्थक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में घुसपैठ कर अपनी पैठ बनाने की कोशिश में हैं। वे चुनावी राजनीति में भी दखल देना चाहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में दो खालिस्तान समर्थकों की जीत इसका सबूत है। अमृतपाल सिंह अपनी अलग पार्टी बनाने की योजना बना रहा है, जो सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक संकेत है। इन लोगों का गैंगस्टरों से गठजोड़ भी सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का सबब है। नाभा जेल ब्रेक का आरोपी और 10 लाख का इनामी आतंकी कश्मीर सिंह, जो 9 साल बाद भारत लौटा और बिहार से गिरफ्तार हुआ, बब्बर खालसा इंटरनेशनल का आतंकी हैरी, जो चंडीगढ़ में हमला करना चाहता था और मनीमाजरा से पकड़ा गया, और अमृतपाल सिंह, कुलदीप सिंह नेहडूं, चरमपंथी खालिस्तानी परमजीत सिंह उर्फ पम्मा जैसे चेहरों को आईएसआई का समर्थन मिल रहा है।
वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष अभूतपूर्व रूप से मजबूत है। दुनिया के ज्यादातर देश मानते हैं कि आतंकवाद मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है। पश्चिमी देशों ने साफ कहा है कि भारत को आत्मरक्षा का पूरा हक है। नीदरलैंड ने तो कश्मीर को सौ फीसदी भारत का हिस्सा माना है। लेकिन पाकिस्तान की हकीकत अब जगजाहिर है—वह आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है। यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। वैश्विक देशों ने पाकिस्तान को नसीहत दी है कि वह अपनी जमीन को किसी दूसरे मुल्क पर हमले के लिए इस्तेमाल न होने दे। लेकिन चीन और तुर्की का पाकिस्तान को समर्थन भारत के लिए एक चुनौती बना हुआ है। यह एक बड़ी बाधा है, क्योंकि यह समर्थन पाकिस्तान को उसकी हरकतों को जारी रखने की हिम्मत देता है।
पहलगाम हमले के बाद भारत की जनता का गुस्सा सड़कों पर उमड़ा। देश एकजुट होकर पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा हुआ। विपक्ष और जनता ने स्वत: स्फूर्त प्रदर्शनों के जरिए साबित किया कि पाक प्रायोजित आतंकवाद के लिए यहां कोई जगह नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया है कि भारत आतंकियों और उनके समर्थकों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के लिए कटिबद्ध है। देश ने बरसों तक पाक प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेला है, और अब इस नासूर को जड़ से उखाड़ने का वक्त आ गया है। नीदरलैंड जैसे देशों का कश्मीर पर भारत के रुख का समर्थन इस बात का सबूत है कि दुनिया भारत के साथ है। पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर को वापस लेने का समय आ गया है, और इसके लिए युद्ध ही एकमात्र रास्ता हो सकता है। लेकिन यह जंग सिर्फ सीमाओं की नहीं है। यह उस मां की हिम्मत की जंग है, जिसने अपने बेटे को आतंक के हाथों खोया। यह उस परिवार के हौसले की जंग है, जो हर रात डर में जीता है। और यह उस देश की एकता की जंग है, जो अब और बर्दाश्त नहीं करेगा।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
