कोलम्बिया में ऐसा माना जाता है कि पायाबालो बेलो वह स्थान है जहां से पहाड़ शुरू होते हैं और आध्यात्मिक गुरु मामू को यहां सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है। पायाबालो बेलो प्राकृतिक नैसर्गिक चेतना का केंद्र है। आध्यात्मिक भाषा में इसका नाम मीना मुनिया है जिसे यहां लोग दुनिया के केंद्र में स्थित मानते है। इस जगह को बादलों का घर भी कहा जाता है।
मामू एक तरह से भगवान के सचिव जैसे होते हैं जो समाज को भगवान के साथ जोड़ने का काम करते हैं। यह भक्त और भगवान् के बीच की एक कड़ी है, जो भक्त को भगवान से जोड़कर रखती है। भक्तों के लिए काम करने की जिम्मेदारी मामू की होती है। सरकार तो समाज के लिए जीती है और समाज के लिए ही काम करती है। आध्यात्मिक गुरु मामू जनता को भावी संकट के बारे में बताते हैं।
यहां के आध्यात्मिक गुरू मामू ने तरी वारी (विचार मंथन) शुरू करहमें बताया कि आज जब कंपनियां ही पहाड़ों-जंगलों की मालिक बन रही हैं, यहां की जनता को यह मालूम नहीं है कि जब ये कंपनियां यहां आएंगी तो पहाड़ों को समाप्त कर जायेंगी, हमारी संस्कृति और सभ्यता का विनाश कर देंगी और सब कुछ व्यापार में बदल देंगी। व्यापारियों के लिए प्रकृति की महत्ता नहीं होती, वह तो सब कुछ लूटना चाहते है। लूटकर उसमें से कुछ दो-चार पैसे समाज के कल्याण के नाम पर झूठे खर्च करते हैं, समाज को भिखारी बनाते हैं। ये कंपनियां भ्रष्टाचारी समाज और भ्रष्टाचारी सरकार को पनपाती हैं।
मामू आगे कहा कि समाज में मूलतः बुराइयां नहीं होतीं, समाज में बुराइयां उनके लालच से आती हैं। यह लालच पैदा करने का काम ये सब कंपनियां ही करती हैं। “आज हम उस स्थान पर बैठे हैं, जहां से पूरी धरती, प्रकृति और पर्वतों का निर्माण हुआ है। इन पर्वतों के निर्माण में हमारी भूमिका समाज को बताने व चेतना जगाने की है। मैं इस जनजातीय ज्ञान को प्रकृति के साथ मानवीय जुड़ाव को बनाकर रखने की विधि पर काम करता रहता हूँ,” मामू ने बताया।
मामू ने आगे कहा, “कई बार दूसरे लोगों को दिखता है कि हम उत्सव कर रहे हैं। कभी लगता है कि हम प्रार्थना कर रहे हैं, और कभी लगता है, हम लोगों को बिना काम का बनाते हैं। पर हम कभी भी इंसान को उसके कर्म योग से नहीं हटाते। हम तो इंसान को कर्म योगी बनाने के लिए उसके अंदर शक्ति पैदा करते हैं, जिससे वह बड़ी से बड़ी व्यवस्था से लड़कर भी न्याय के लिए खड़ा हो। इससे प्रेरित होकर वह अपने लिए न्याय का सृजन करता है,” उन्होंने कहा।
मामू अपने जीने के लिए खुद कमाते हैं और अपनी कमाई से अपना जीवन चलाते हैं और किसी की भीख पर निर्भर नहीं रहते, इसलिए वह यहां के समाज को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए, इसे अन्याय, अत्याचार तथा व्यापार की लूट से रोकने और बचने के लिए काम कर रहे हैं।
मामू ने यहां उपस्थित सरकारी लोगों के सामने बहुत विस्तार से कहा कि, सरकारी लोग सरकार से वेतन लेकर समाज को सरकार के अधीन करते हैं। वे केवल सरकार के नौकर हैं, इंसानों के नौकर नहीं। ये सरकार के नौकर बनकर समाज को ही सरकार का गुलाम बनाने का काम करते हैं। “हम किसी के गुलाम नहीं होते, हम तो केवल भगवान और भक्त के बीच संबंध बनाने के लिए भगवान ने जो विधि रची है, उस विधि का समाज के सामने वर्णन करके, समाज को विधि के अनुरूप बनाने का प्रयास करते हैं,” उन्होंने कहा।
इस अवसर पर कार्यक्रम की संयोजक अति ने बोलते हुए कहा कि सरकार उसके घर के पास बहने वाली नदी का जो संगीत है, उस संगीत को छीनना चाहती है। “सरकार हमारी नदी की गति को छीनना चाहती है और समाज उसे छीनने दे रहा है। हम इस क्षेत्र के मामू और अन्य लोगों के साथ मिलकर सरकार से न्यायिक लड़ाई लड़ रहे हैं। हम सामाजिक लड़ाई लड़ने में अभी इतने सक्षम नहीं हैं, क्योंकि समाज अभी सरकार से डरता है। डरे हुए समाज के साथ काम करना बहुत मुश्किल होता है। डरे हुए समाज को यदि खड़ा करना है, तो प्रार्थना करनी पड़ती है; जिससे समाज में शक्ति का एहसास होता है,” उन्होंने बताया।
जो समाज इस देश को लूटकर धन संपदा एकत्रित कर चुका है, अब वह इन्हीं साधनों से गरीब को ब्याज से पाल रहा है। वह गरीबों को लूटना चाहता है, वह गरीब को बाजार में धकेल कर उसे बाजार के आधीन बनाना चाहता है। जब गरीब अपने हक ले लिए खड़ा होता है तो समाज ही उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। समाज को शक्ति विहीन बनाने का काम मध्यवर्गीय समाज कर रहा है। लेकिन परिवर्तन भी मध्यमवर्गीय समाज ही लाता है। अति ने कहा वह यहां क्रांति का काम इसलिए कर पा रही हैं क्योंकि उनके दादा ने उनके लिए अपने जीवन को चलाने के लिए जो कुछ इकट्ठा किया था, उसको वे अपने सत्य और श्रम के साथ खर्च कर रही हैं। उन्हें मरने का डर नहीं है।
“मुझे मालूम है कि सरकार ने जिस तरह से देश के दूसरे पर्यावरणविदो और प्रकृति प्रेमियों को मरवाया है वैसे ही एक दिन मेरी भी हत्या हो जाएगी। पर मुझे अपनी हत्या का डर नहीं है। यहां बहुत सारे मेरे जैसे काम करने वाले लोग मारे गए हैं। पैरामिलिट्री और गोरिल्ला दोनों ने मारा है। ये स्वार्थी और लालची हैं, ये प्रकृति का विनाश करने में जुटे हैं। हम बस यह चाहते हैं कि, प्रकृति को बचाने के लिए हम सब एक हो जाएं और एक होकर इस प्रकृति के रक्षण-संरक्षण का काम करने लगें। जब इस प्रकृति में रक्षण-संरक्षण का काम शुरू होगा, तो समाज अपनी गति से आगे बढ़ेगा,” उन्होंने कहा।
यहां उपस्थित लोगों का मानना था कि हमें कोलम्बिया की जनजातियों-आदिवासियों को बचाने के लिए सरकार पर नैतिक दबाव बनाना चाहिए।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक