केरल का ओनम एक ऐसा त्योहार है, जो न केवल उत्साह और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि संस्कृति और परंपरा का अनमोल खजाना भी है। ओनम के दिन केरल का हर कोना रंग-बिरंगे फूलों, नृत्यों, और स्वादिष्ट पकवानों से सराबोर हो जाता है। यह पर्व खेती-किसानी से गहराई से जुड़ा है, जो फसलों की समृद्धि और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। 1981 से ओनम को राजकीय पर्व का दर्जा प्राप्त है, और इसके लिए चार दिन की छुट्टियाँ भी निर्धारित की गई हैं।
केरल का अपना अनूठा कैलेंडर है, जिसमें पहला माह ‘चिंगम’ (सिंह) कहलाता है। ओनम ‘अथं’ नक्षत्र से शुरू होकर ‘थ्रिरुवोनम’ नक्षत्र तक दस दिनों तक चलता है, और हर दिन की अपनी खासियत है। पहले दिन, अथं, तैयारियों का जोश शुरू होता है। दूसरे दिन, चिथिरा, फूलों का खूबसूरत कालीन ‘पुक्कलम’ बनाया जाता है। तीसरे दिन, चोधी, पुक्कलम में नई परतें और फूल जोड़े जाते हैं। चौथा दिन, विशाकम, विभिन्न प्रतियोगिताओं की शुरुआत करता है। पाँचवाँ दिन, अनिज्हम, ‘वल्लमकली’ यानी स्नेक बोट रेस का रोमांच लाता है। छठे दिन, थ्रिकेता, से चार दिन की छुट्टियाँ शुरू होती हैं। सातवाँ दिन, मूलम, मंदिरों में विशेष पूजा का अवसर है। आठवाँ दिन, पूरादम, घरों में राजा महाबली और वामन की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। नौवाँ दिन, उथ्रादीम, राजा महाबली के धरती पर आगमन का प्रतीक है। और दसवाँ दिन, थ्रिरुवोनम, ओनम का मुख्य उत्सव, जब सारा केरल उमंग और उत्साह से झूम उठता है।
कोच्चि के थ्रिक्कारा मंदिर में इस दौरान रौनक अपने चरम पर होती है। ओनम के मौके पर 26 तरह के स्वादिष्ट पकवान केले के पत्तों पर परोसे जाते हैं, जिन्हें ‘ओनम सद्या’ कहते हैं। दान और त्याग इस पर्व का मूल मंत्र है, जो इसे और भी खास बनाता है। थिरुवातिराकली, कुम्भातिकाली, पुलिकाली, और कथककली जैसे नृत्य ओनम की शोभा बढ़ाते हैं।
ओनम के पीछे राजा महाबली की प्रेरक कथा है। महाबली, जो असुर राजा हिरण्यकश्यप के वंशज और भक्त प्रहलाद के पोते थे, अपनी दानशीलता और प्रजा-प्रेम के लिए विख्यात थे। उनकी बढ़ती शक्ति से घबराए देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से सहायता माँगी। विष्णु ने वामन अवतार लिया और महाबली से तीन कदम भूमि माँगी। असुर गुरु शुक्राचार्य की चेतावनी के बावजूद, दानवीर महाबली ने वामन की माँग स्वीकार की। विष्णु ने दो कदमों में धरती और आकाश नाप लिया, और तीसरे कदम के लिए महाबली ने अपना सिर झुका दिया। पाताल लोक जाने से पहले, उन्होंने प्रजा से मिलने के लिए वर्ष में एक बार धरती पर आने की इच्छा जताई, जो स्वीकार हुई। यही कारण है कि ओनम को केरल में इतने हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
दस दिनों तक केरल रंगों, नृत्यों, और उत्सवों की मस्ती में डूबा रहता है। अंत में वामन और महाबली की मूर्तियों का विसर्जन और पुक्कलम की सफाई के साथ यह उत्सव समाप्त होता है। ओनम केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि केरल की आत्मा का उत्सव है, जो एकता, प्रेम, और समर्पण का संदेश देता है।
हमारा भारत उत्सवों का अनमोल रंगमंच है, जहाँ हर कोना अपनी सांस्कृतिक धुन पर थिरकता है। यहाँ का समाज त्योहारों का दीवाना है, और हर पर्व पुरानी परंपराओं का जीवंत रंग बिखेरता है। हर क्षेत्र, हर प्रदेश, हर समुदाय की अपनी अनूठी रौनक है, जो सहजता और उत्साह से झलकती है। चाहे गाँव हो, बस्ती हो, या परिवार, हर जगह के अपने खास उत्सव हैं, जो दिलों को जोड़ते हैं। पंजाब में बैसाखी की धूम, गुजरात में गरबों की मस्ती, और असम में बीहू का जोश—हर त्योहार अपनी अलग पहचान लिए चमकता है।
दीपावली की जगमगाहट, होली का रंगबिरंगा उल्लास, ईद की मिठास भरी सेवइयाँ, क्रिसमस का तारा, और गुरुपर्व का पवित्र कड़ा प्रसाद—हर पर्व अपनी अनूठी छटा बिखेरता है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण—हर दिशा में उत्सवों की बहार है। हमारे राष्ट्रीय पर्व जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, अहिंसा दिवस, शिक्षक दिवस, और बाल दिवस देश को एकजुट करते हैं। कुछ पर्व जैसे योग दिवस और पर्यावरण दिवस तो वैश्विक मंच पर भी गूंजते हैं।
इन सबके बीच केरल का रंग-बिरंगा ओनम भी फूल, नृत्य और सद्या का ऐसा ही अनूठा संगम है। महाबली का प्रेम उत्सव ओनम में सारा केरल झूमता है।

