– मनीश वर्मा’मनु’
दो महिलाओं को वस्त्रहीन कर उनके साथ भीड़ के बर्ताव का वायरल वीडियो! मणिपुर में हो रहे हालिया घटनाक्रम को हम थोड़ा अपने दिल के करीब ला कर देखें – उन महिलाओं के साथ जो हुआ वो तो शर्मनाक ही नहीं बल्कि किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाला एक घिनौना कृत्य था। और उन लड़कियों का क्या हाल हो रहा होगा, उनकी क्या हालत हुई होगी यह सोचकर ही रूह कांप उठती है। आखिर क्यों नहीं इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद भी घटनास्थल पर एक भी आवाज़ इस शर्मनाक कृत्य के खिलाफ नहीं उठी? ज़्यादातर तो शायद तमाशबीन थे और कुछ लोग तो वीडियो भी ले रहे थे। आखिर यह सिर्फ एक तमाशा तो नहीं था। परन्तु क्या उनका मूक दर्शक बनना एक नपुंसक समाज की निशानी नहीं है? या फिर उनकी जात इंसानियत से ज्यादा बड़ी थी? वे मैतेई थे और महिलायें कुकी जनजाति की थीं | दोनों समाज में आपस में वर्षों से द्वेष पनप रहा है पर इस रंजिश को हैवानियत का अंजाम देना किसी भी सभ्य समाज की निशानी कदापि नहीं हो सकती।
क्या आपका दिल नहीं दहलता है? क्या आपकी भावनाएं आहत नहीं होती हैं? क्या आपकी आंखों के कोर आंसुओं से गीले नहीं होते हैं? क्या अमानवीय और हैवानियत से भरे व्यवहार आपको उद्वेलित नहीं करते हैं? अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो यकीनन मैं कह सकता हूँ कि आप इंसान नहीं हैं! आपका दिल एक मशीन की माफिक है जो सिर्फ और सिर्फ आपको जिंदगी देने के लिए धड़कता है। आप एक मशीन हैं। आपकी तुलना मशीन से तो की जा सकती है पर इंसान से कतई नहीं!
जड़ हो जातें हैं हम। प्रतिक्रिया विहिन एक स्पंदनहीन व्यक्ति। क्या प्रतिक्रिया दें।अब भी कुछ बचा है कहने सुनने को ? क्या हम उन्हें पहले की अवस्था में वापस ला सकते हैं? क्या उनका भरोसा वापस कर सकते हैं ? नहीं, बिल्कुल नहीं? यह मामला कानून व्यवस्था का तो है ही, परन्तु साथ ही यह मामला बिल्कुल ही सामाजिक स्तर पर है। अपराधी कोई भी हो, है तो इसी समाज का व्यक्ति। उसका भी परिवार है। बीबी है, बहन है, बच्चे हैं, मां बाप हैं। किसी ने भी उसे ऐसा करने से नहीं रोका! शायद उसने भी नहीं सोचा कि अगर खुदा ना करें ऐसी घटना उसके साथ या उसके परिवार के साथ घटी होती तो क्या होता! सोचकर ही दिल कांप उठता है। समय आ गया है ऐसी घटनाओं के लिए हम सभी मिलकर सामाजिक स्तर पर लड़ाई लड़ें। सिर्फ और सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलने वाला। समाज में जागरूकता फैलानी होगी। विक्टिम कोई भी हो। उसे सामाजिक सुरक्षा प्रदान करें। प्रजातंत्र में ऐसी घटनाएं कहीं से भी शोभनीय और उचित नहीं है।
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क्यों इस तरह की घटनाएं अमूमन महिलाओं के साथ ही घटती हैं। कहां तो हम अपने विरासत में महिलाओं को उच्च अधिकार देने की बातें करते हैं। देवी के रूप में उनकी पूजा करते हैं। क्या ये सारी बातें बेमानी हैं? आखिर औरतों को क्या समझ रखा है हमने? जब चाहा अपना गुस्सा अपना खीज उतार दिया उन पर। जैसा चाहा वैसा व्यवहार किया! हम तो जानवरों से भी गए गुजरे हैं। जानवरों में भी वर्चस्व की लड़ाई महिलाओं को लेकर होती है। वहां भी कोई इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाता है।
कोई अधिकार नहीं हमें महिलाओं को देवी के रूप में पूजने का जब हम उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते हैं। अगर समाज ने ठान लिया कि इन्हें सामाजिक सुरक्षा देनी है तो फिर किसी व्यक्ति की मजाल नहीं कि इन्हें कमजोर समझने की भूल कर इनके साथ अमानवीय व्यवहार करे। अफसोस होता है अपराधी के परिवार वाले और ख़ासकर महिलाओं ने भी इस तरह की घटनाओं को लेकर कभी कुछ नहीं कहा। अगर अपराधियों के ऐसे अमानवीय व्यवहार का विरोध घर से ही होने लगे तो शायद इस तरह की घटनाएं भविष्य में ना हो।
काश हम उस वक्त को दफन कर पाते जिस वक्त ने हमारे क्रोध और पीड़ा की पराकाष्ठा को झकझोर कर रख दिया है।