
न्यूजीलैंड के माओरी समुदायों में प्रकृति के साथ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गहराई का रिश्ता है। उनकी परंपराएं, कापा हाका नृत्य, हांगी भोजन, रोंगोआ चिकित्सा और मानाकी आतिथ्य, उन्हें एक अनोखी और समृद्ध सांस्कृतिक पहचान प्रदान करती हैं। इस समुदाय का जीवन दर्शन संपूर्णता से प्राकृतिक संतुलन, सम्मान और प्रकृति की समग्र देखभाल पर आधारित है; इससे ही यह अपनी विरासत को मजबूत बनाए रखते थे। 7 मार्च 2025 को यात्रा सिडनी से मैं न्यूजीलैंड में इनके बीच पहुंचा। माओरी केवल एक समुदाय नहीं है; बल्कि 70 समुदायों का एक समूह है।
माओरी की अंग्रेजो के साथ 6 फरवरी 1840 को ट्रीटी (वेटांगा संधि) करने से पहले इन सभी समुदायों की अपनी भाषा, बोली, विविध प्रकार का रहन-सहन, प्रकृति के अनुकूल, विविधतापूर्ण जीवनशैली थी।
अपनी-अपनी विविधताओं तथा प्रकृति को जैव विविधता का सम्मान करने वाले ये समुदाय अपना परिचय देते हुए जिस नाव आते हैं, उस नाव का नाम, पर्वत, नदी ,तालाब, पूर्वजों, दादा, दादी, माता, पिता और मराओ (सामुदायिक) भवन का नाम लेकर अपनी पहचान कराते हैं। यह परिचय करने का तरीका इनके मूल प्राकृतिक संबंधों को दर्शाता है। इनकी जीवन में संपूर्णता और समग्रता रहती लेकिन अंग्रेजों ने ट्रीटी (वेटांगा संधि) करने के बाद समुदायों की जमीनों व प्राकृतिक संसाधनों पर पर बड़े पैमाने पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजों सरकार के नियम लागू हुए लेकिन जल, जंगल, जमीन सभी प्राकृतिक संसाधनों को अपना बनाकर रखा।
अंग्रेज ट्रीटी (वेटांगा संधि) को तोड़कर बराबर कब्जा करते रहे लेकिन माओरी समुदाय ने भी अपनी लड़ाई जारी रखी हुई है। इन्होनें अपनी संस्कृति, प्रकृति और अध्यात्म को बचाकर रखा है जबकि अंग्रेजो ने अपनी ही ट्रीटी(वेटांगा संधि) की अवहेलना करके माओरी की बोली, भाषा रहन – सहन चिकित्सा पद्धति पर रोक लगाने का काम किया, जिससे एक समय तो इनकी मूल बोली और भाषा खत्म होने के कगार पर थी।

हाना-राविती करियारिकी माईपी-क्लार्क (जन्म 2002) जो न्यूजीलैंड की एक राजनेता हैं और 2023 के न्यूजीलैंड आम चुनाव के बाद से संसद सदस्य के रूप में ते पाति माओरी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।
अंग्रेजों ने ट्रीटी (वेटांगा संधि) करने के बाद सभी समुदायों पर अपनी शिक्षण पद्धति, चिकित्सा पद्धति को थोपा। जबकि माओरी समुदायों की अपनी अलग-अलग शिक्षण विधियां रोंगोआ – मानुका ( घाव भरने और त्वचा के संक्रमण के इलाज हेतु), हराकेके (पौधे का रस त्वचा रोगों में फायदेमंद), कुमाराहौ (फेफड़ों और श्वसन समस्याओं के इलाज हेतु) को अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित होने पर इसे जीवित रखा हुआ है। अंग्रेजों ने कहा कि यह कोई इलाज का तरीका नहीं है और एक कानून बनाकर अंग्रेजों ने इस चिकित्सा पद्धति पर रोक लगा दी।
माओरी संस्कृति का आध्यात्म प्रकृति, पूर्वजों से जुड़ी हुई। माओरी की तापु और नोआ मान्यता के अनुसार कुछ चीजें पवित्र होती हैं और उनका सम्मान किया जाता है। मौरी मान्यता के अनुसार प्रत्येक जीव और वस्तु की ऊर्जा या जीवन शक्ति निहित है। वैरुआ मान्यता के अनुसार आत्मा मृत्यु के बाद पूर्वजों के पास चली जाती है। इनके आध्यात्मिक और चिकित्सीय विशेषज्ञ, जो समुदाय का मार्गदर्शन करते हैं उन्हें तोहुंगा कहा जाता है। इन सभी मान्यताओं पर अंग्रेजो ने बहुत प्रहार किया लेकिन इसकी जड़ें अभी मौजूद हैं।
माओरी संस्कृति में मानाकी शब्द भी बहुत प्रचलित है जिसका अर्थ है सम्मान, उदारता और सामुदायिक देखभाल। यह मूल्य दर्शाता है कि किसी भी मेहमान या जरूरतमंद व्यक्ति का स्वागत गर्मजोशी से किया जाना चाहिए। माओरी समाज में किसी को भोजन और रहने की जगह देना सम्मान की बात मानी जाती है। बुजुर्गों और कमजोर लोगों की देखभाल करना एक सामाजिक जिम्मेदारी समझते हैं।
माओरी संस्कृति के जीवन को चलाने वाले भोजन हांगी (मिट्टी के गड्डे के भीतर पत्थरों की गर्मी में पकाया जाता), कुमारा (शकरकंद की एक विशेष किस्म), कौउरा (माओरी झींगा), पिपी और तूआतु (समुद्री शंख) रीवा रीवा (पारंपरिक आलू) को नष्ट करने का प्रयास अंग्रेजों द्वारा किया गया।
माओरी की संस्कृति और गहरी अध्यात्मिकता समुदाय और प्रकृति से जुड़ी हुई है जो अपनी प्राकृतिक पारिस्थितिकी पर्यावरणीय प्रवाह के साथ प्रवाहित रहती थी। इनके जीवन में प्रमुख मूल्यों में वहाकापापा (पूर्वजों और पारिवारिक इतिहास का सम्मान करना), मानाकी (आतिथ्य, दया और दूसरों की देखभाल करना),कोताहीतान्गा (एकता और सामूहिक जीवनशैली रखना),काइतिआकितान्गा ( प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना), तापु और नोआ (पवित्रता और सांसारिकता का संतुलन बनाना) है, जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने हर क्षण तोड़ने की कोशिशें की थी। अंग्रेजो ने ही न्यूजीलैंड के मूल नाम आओटेआरोआ को बदलकर न्यूजीलैंड किया था।
अब 21 वीं शतब्दी में न्यूज़ीलैंड (आओटेआरोआ) में तीन विश्वविद्यालय- ते वानंगा ओ आओतेआरोआ , ते वानंगा ओ रौकावा और ते वानंगा ओ आहू, स्वयं माओरी समुदाय संचालित कर रहा है। इन विश्वविद्यालयों में माओरी संस्कृति ,प्रकृति, आरोग्य पद्धति, जीवन की विद्या के सभी आयामों को विद्या प्रदान की जाती है। इसलिए अब न्यूजीलैंड माओरी समुदाय की अपनी प्रकृति, संस्कृति, अध्यात्म को पुनर्जीवित करने में जुटा है। यह तीनों विश्वविद्यालय आधुनिक शिक्षा के ऊपर यहां मूल विद्या को पुनर्जीवित कर रहे है।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।