
हरियाणा सरकार द्वारा नीलगायों को मारने की अनुमति देने वाले नियम को रद्द करने की मांग बढ़ रही है और यह भी सुझाव दिए जा रहे हैं कि बायो फैंसिंग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस साल फरवरी की शुरुआत में हुई कैबिनेट बैठक में अनुमोदित नए हरियाणा वन्यजीव (संरक्षण) नियमों के तहत हरियाणा सरकार ने नर नीलगायों को मारने की अनुमति दी है।
इन जानवरों के किसानों के खेतों में घुसने और फसलों को नष्ट करने की समस्या को हल करने के लिए नीलगायों को गोली मारना न तो नैतिक और न ही स्थायी समाधान है। कई ग्रामीण लोग और किसान जो हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों से हैं, उन्होंने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि नीलगायों से अधिक, आवारा मवेशी कृषि फसलों के लिए एक गंभीर खतरा हैं।
आर.पी. बलवान, सेवानिवृत्त वन संरक्षक, साउथ सर्कल हरियाणा ने कहा कि हरियाणा सरकार का निर्णय उच्चत्तम न्यायलय के निर्देश का भी उल्लंघन है।
“21 जुलाई 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत’, ‘एहतियाती सिद्धांत’, ‘सतत विकास, और ‘संवैधानिक दायित्व’ के तहत; एक ट्रस्टी होने के नाते राज्य प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने के लिए बाध्य है। सुप्रीम कोर्ट के कई अन्य फैसलों में हमारे देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है,” उन्होंने कहा। “हम नहीं जानते कि राजनीतिक नेता शीर्ष अदालत के आदेशों की अनदेखी कैसे कर सकते हैं। नीलगाय हरियाणा के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग हैं, जो जैव विविधता में योगदान देते हैं और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं। कानूनी तौर पर उन्हें मारने की इजाजत देना न केवल इस नाजुक पारिस्थितिक संतुलन को बाधित करता है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन के लिए एक खतरनाक मिसाल भी कायम करता है और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की भावना के खिलाफ है,” उन्होंने बताया।
13 फरवरी 2025 को, पीपल फॉर अरावली समूह ने भी हरियाणा के मुख्या मंत्री नायब सिंह सैनी को संबोधित एक ज्ञापन भेजा है जिसमें नर नीलगायों को मारने की अनुमति देने के सरकार के फैसले पर दुख व्यक्त किया गया है और इस आदेश को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की गुजारिश की गयी है।
“हम सरकार से नर नीलगायों को मारने की अनुमति देने वाले नियम को रद्द करने और संरक्षणवादियों, पारिस्थितिकीविदों, सेवानिवृत्त वनवासियों, वन्यजीव विशेषज्ञों, किसान समूहों और अन्य ग्रामीण हितधारकों के साथ परामर्श के बाद राज्य में मानव-पशु संघर्ष से निपटने के लिए एक उचित प्रबंधन योजना लागू करने का आग्रह करते हैं,” नीलम अहलूवालिया, संस्थापक सदस्य, पीपल फॉर अरावली ने कहा।
हरियाणा के मुख्यमंत्री को भेजे गए अभ्यावेदन में कहा गया है कि यदि हरियाणा में किसी विशेष क्षेत्र में नीलगायों की अधिक आबादी है, तो इन जानवरों को हरियाणा या राजस्थान के नजदीकी रिजर्व में अन्य समान आवासों में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां नीलगायों की आबादी कम है और पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने के लिए उनके प्राकृतिक शिकारी मौजूद हैं।
“हरियाणा भर के गांवों में जहां बणी अभी भी मौजूद हैं, उन्हें कानूनी तौर पर सामुदायिक रिजर्व के रूप में स्वीकृत किया जाना चाहिए और नीलगायों और अन्य वन्यजीवों के लिए आश्रय के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। बणी की घेराबंदी की जानी चाहिए ताकि जानवर अंदर ही रहें।ग्रामीण समुदायों को हर गांव में शामलात देह, पंचायत, गौचरान भूमि पर बनियां विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए,” रोहतक के वन्यजीव शोधकर्ता राकेश अहलावत ने कहा।
अभ्यावेदन में, अखिल भारतीय जीव रक्षा विश्नोई सभा हरियाणा के राजकीय अध्यक्ष विनोद करवासरा की अगुआई में बीते कुछ वर्षों में फतेहाबाद जिले में लागू किए गए संरक्षण प्रयासों से सीख का उल्लेख किया है, जैसे सूरजमुखी घास और पैरेंथियम जैसी आक्रामक प्रजातियों वाली घास और खरपतवार को हटाना और स्थानीय पेड़ो, घासों और झाड़ियों को हरियाणा भर के बणियो में उगाना, जो कि काले हिरनों और नीलगायों जैसे जानवरों के लिए जरूरी है।
“ग्रामीण समुदाय बाड़ लगाने की तकनीक जैसे ‘चारा बंधी’ का उपयोग कर सकते हैं, जो रोक के रूप में कार्य करने के लिए खेतों के किनारों पर 5-6 फीट के झाड़ का निर्माण करके प्राप्त की जाती है और ‘सामूहिक तारबंधी’ जिसमें समुदाय द्वारा अपनी फसलों की रक्षा के लिए जानवरों को बाहर रखने के लिए बाड़ लगाने के सामूहिक प्रयास शामिल होते हैं। यदि फिर भी नीलगायों, अन्य जानवरों और आवारा मवेशियों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो किसानों को बीमा योजनाओं के माध्यम से समर्थन दिया जाना चाहिए और फसल के नुकसान के लिए समय पर मुआवजा दिया जाना चाहिए,” महेंद्रगढ़ जिले के किसान अजय यादव ने कहा।
“जब हमारी टीम ने हरियाणा के विभिन्न जिलों में ग्रामीण हितधारकों से बात की, तो उन्होंने सुझाव दिया कि गांव के कुछ लोगों को गार्ड के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जिन्हें नीलगायों, आवारा मवेशियों और अन्य जानवरों को डराने के लिए तेज आवाज करने वाला (गांवों में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला गैर-बुलेट उपकरण) ‘गंधक पोटाश’ रखना चाहिए। ग्रामीण लोगों को फसलों के रक्षक के रूप में उपयोग करने की इस गतिविधि को रक्षकों को भुगतान की सुविधा के लिए मनरेगा के तहत लाया जा सकता है, ” तन्नुजा चौहान, सदस्य, पीपल फॉर अरावली ने कहा।
“हरियाणा की समृद्ध वन्यजीव विरासत की रक्षा करना राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 48A के अनुसार “राज्य को पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना चाहिए और देश के जंगलों और वन्यजीवन का बचाव करना चाहिए,” पीपुल फॉर अरावली के युवा अधिवक्ता विश्वास तंवर ने कहा।
पता नहीं किसान वर्ग क्यों वन्यजीव हत्या की मांग करता है और वोटों के लालच में सरकार उनकी मांग मान लेती है। सीधा और सरल समाधान है कि किसानों को फसल बचाने के लिए अपने खेतों की बायोफैसिंग करानी चाहिए ।मतलब स्पष्ट है कि आप खेतों की मेड़ पर कांटेदार बोगनवेलिया,बेर या फल दार पेड़ भी लगा सकते हैं जिनसे खेत सुरक्षा के साथ कमाई का जरिया भी बन सकते हैं और देश के पर्यावरण में भारी सुधार का माध्यम भी बन सकते हैं कई जगह खेतों पर पॉपुलर के वृक्षों की बाढ़ लगी हुई है। देश में कई सरकारों ने मेड़ पर पेड़ का आव्हान भी किया है।
लेकिन इस पर गंभीरता से काम नहीं हुआ। किसानों ने भी रुचि नहीं ली। उत्तराखंड में मेड़ पर पेड़ लगे हैं। मध्य प्रदेश में भी देखने में आता है।ऐसा देखने में आता है और इससे पृथ्वी की सुंदरता भी बढ़ती है सरकारों को चाहिए कि इस कार्य के लिए किसानों को प्रोत्साहन दिया जाए और इस प्रकार की योजना चलाई जाए।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद् , सदस्य, राष्ट्रीय किसान समन्वय समूह।