– बृजेश विजयवर्गीय*
हमें क्यों चाहिए बार-बार टूटने वाली सड़कें? कोटा में यहां के सांसद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रशासन को वर्षा के बाद सड़कें सुधारने का निर्देश दिया है। सड़कें तो कुछ समय के लिए सुधर जाएंगी लेकिन वह बार-बार टूटने वाली ही होगी तो उनके सुधार का कोई मतलब नहीं है।
हमारे ही देश में प्लास्टिक वेस्ट से सड़कें बनने लगी हैं। सार्वजनिक निर्माण विभाग एवं नगरीय निकायें चाहे तो 10 साल तक नहीं टूटने वाली सड़कें बन सकती हैं। बेंगलुरु में इसका प्रदर्शन भी हो चुका है। बिरला को इन अधिकारियों से पूछना चाहिए कि जब इस तरह की तकनीकी हमारे ही देश में मौजूद है तो पुराने ढर्रे की डामर कंक्रीट की तकनीक या सीसी रोड की तकनीक से ही सड़कें क्यों बनाई जाए?
वर्षा ऋतु तो बार-बार आने वाली है लेकिन जब सड़कें बार-बार टूटती हैं तो ऐसा लगता है कि विकास का दर्पण ही दरक गया। इन सड़कों से गुजरने वाला हर व्यक्ति सरकार के लिए अपशब्द बोलता हुआ निकलता है। अब क्या यह समझा जाए की सड़क इंजीनियरिंग फेल है या इसका और कुछ कारण है या हम नए वैज्ञानिक मॉडल को अपनाना नहीं चाहते हैं।
मैं इस बात का गवाह हूँ कि पर्यावरणविद डॉ सुसेन राज कोटा एनवायरमेंटल सैनिटेशन सोसायटी से जुड़ने के बाद हमने 6 वर्ष पूर्व राजस्थान के तत्कालीन सार्वजनिक निर्माण मंत्री यूनुस खान को बेंगलुरु की प्लास्टिक वेस्ट से सड़क बनाने वाली कंपनी ने प्रेजेंटेशन दिया था। उस वक्त मंत्री महोदय ने सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों के साथ तकनीकी विशेषज्ञों की बैठक भी राज्य सचिवालय में करवा दी थी। सब ने इस बात पर सहमति जताई थी कि प्लास्टिक वेस्ट से सड़क बनाई जा सकती है और हम भविष्य में इसका अनुसरण करेंगे। स्टोन बेस्ट को सड़कों के निर्माण में इस्तेमाल करने की सरकार की नीति भी है। केंद्र सरकार की गाइडलाइन भी है कि डामर से सड़कें वही बनेगी जहां पर प्लास्टिक वेस्ट उपलब्ध नहीं है।
ऐसा कौन सा शहर गांव और कस्बा है जहां प्लास्टिक वेस्ट नहीं है यह बात समझने की आवश्यकता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री के तत्कालीन सलाहकार सी एस राजन भी इस तकनीक से सहमत नजर आए थे और उन्होंने तत्कालीन जिला रविकुमार सुरपुर को डंपिंग यार्ड के पास प्लास्टिक वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट लगाने में मदद करने का आग्रह भी किया था और कलेक्टर को यह भी निर्देश दिया था कि इसके लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए। इतनी अच्छी प्रक्रिया सरकारी लालफीताशाही में दब गई। और बात आई गई हो गई।
आजकल जब पुनः सड़के टूटना बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है और लोकसभा अध्यक्ष भी इससे चिंतित है हमारे केंद्रीय सार्वजनिक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भी टूटती सड़के और उखड़ते हाईवे आजकल बहुत परेशान कर रहे हैं। उनके सारे अच्छे प्रयासों पर पानी फिर जाता है जब यह सुनने को मिलता है कि फलां सड़क टूट गई।
हाल ही में जयपुर के मालवीय नगर में सड़क के बीचों-बीच एक बड़ा गड्ढा हो गया उसकी तस्वीर भी बहुत विचलित करने वाली रही। हमारा तो सरकार में बैठे जिम्मेदार नेताओं और अधिकारियों से यही अनुरोध है कि जब प्लास्टिक वेस्ट से दस दस साल तक नहीं टूटने वाली सड़क बन सकती है और प्लास्टिक वेस्ट की समस्या का स्थाई समाधान हो सकता है तो, क्यों नहीं इस पर तत्काल कार्रवाई की जाए और प्रशासन को निर्देश दिया जाए की प्लास्टिक वेस्ट को डामर में उपयोग कर सड़क बनाने में इस्तेमाल करें? इससे दौहरा लाभ होगा एक तो हमारी नदियां और जलाशयों को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी तथा सड़कों पर इधर-उधर मंडरा रहा प्लास्टिक पॉलिथीन का कचरा भी सड़क निर्माण में समाहित हो जाएगा।
*स्वतंत्र पत्रकार। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।
