विश्लेषण: दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे
– डॉ एस के गुप्ता
दिल्ली: दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के आज घोषित हुए नतीजे के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जो सत्ता में थी वह अपनी सत्ता गंवा चुकी है। जनता को इससे क्या लाभ होने वाला है? आइए गहराई से विवेचना करते हैं।
अगर आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ देखें तो उनको इस इलेक्शन में 134 सीटों पर विजय प्राप्त हुई है वो पूर्ण बहुमत में है और अब सरकार बनाने की स्थिति में है, उनका मनोबल बहुत ऊंचा है। उनके लिए ये एक प्रतिष्ठा का प्रश्न भी था क्योंकि पिछली दो बार से दिल्ली सरकार में रहते हुए भी वह एमसीडी में अपना बहुमत नहीं सिद्ध कर पा रहे थे। इसलिये आपियों के लिए यह एक विन विन सिचुएशन है।
अगर भाजपा की तरफ देखें तो हम पाते हैं कि उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल एमसीडी के इलेक्शन से पहले काफी गिरा हुआ था, इस इलेक्शन के दौरान भाजपा के सभी बड़े नेताओं का सारा ध्यान गुजरात या हिमाचल प्रदेश के इलेक्शन में लगा था। कोई भी राष्ट्रीय स्तर का नेता एमसीडी के इलेक्शन मे बड़ी सभा करने के लिए आगे नहीं आया।
सभी एग्जिट पोल में भाजपा को लगभग 60 से 70 सीट मिलने की उम्मीद दर्शाई गई। लेकिन उनको रिजल्ट में मिली 104 सीट। जो कि उनके लिए अपने आप में एक बड़ी विन विन सिचुएशन है।
पिछले 15 साल भाजपा का एमसीडी की सत्ता में रहने के बाद एन्टी इंक्यूमबेंसी का एक बहुत बड़ा फैक्टर उनके खिलाफ काम कर रहा था, अगर वह 104 सीट बचाने में कामयाब रहे हैं, तो वह निश्चित रूप से ही अपनी पीठ थपथपा सकते हैं।
और एक दूसरी बड़ी बात भाजपा लिए यह है कि वह अपना वोट प्रतिशत ना केवल बनाए रखने में कामयाब हुए हैं बल्कि उन्होंने अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया भी है।
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी जिसका वोट प्रतिशत 2020 के इलेक्शन में लगभग 54% के करीब था, इस इलेक्शन में लगभग 42% पर आ गई है। जबकि भाजपा 2020 के 38% से बढ़ कर 39% वोट बटोरने में कामयाब हुई है। भाजपा का वोट पिछले चुनाव के मुकाबले 0.6% बढ़ा लेकिन 77 सीटें कम हो गईं.
अगर अब दिल्ली की जनता की बात करें तो सच्चे मायनों में यह इलेक्शन जनता के लिए एक फायदे का सौदा साबित होगा। पिछले 8 सालों से एमसीडी में बैठे हुए सत्ताधारी बार-बार इस बात का रोना रोते रहे कि केजरीवाल सरकार उनको फंड नहीं दे रही है, और उनके पास जनता के काम करने के लिए पैसे नहीं है।
पहले एमसीडी जो है तीन भागों में बटी हुई थी लेकिन अभी केंद्र सरकार के द्वारा उसका एकीकारण कर दिया गया है जिससे दिल्ली के पिछड़े इलाके जिनके अपने फंड कलेक्शन बहुत अच्छे नहीं होते हैं उनको भी विकास का मौका मिलेगा।
एमसीडी और दिल्ली सरकार के अंदर एक ही सत्ताधारी दल का बहुमत में होना जनता के लिए एक फायदेमंद स्थिति है। एमसीडी के पास अब अरविन्द केजरीवाल की सरकार होने के कारण इस बात का बहाना नहीं रहेगा दिल्ली सरकार उनके साथ सहयोग नहीं कर रही है। केजरीवाल सरकार सत्ता में बने रहने के लिए और जनता का दिल जीतने के लिए कुछ ना कुछ काम अवश्य करेगी। और इसका फायदा आम नागरिकों को होने की पूरी संभावना है।
अभी तक तो केजरीवाल सरकार शीला दीक्षित द्वारा किए गए दिल्ली विकास के कार्यों पर अपनी पीठ थपथपाती रही है और दिल्ली में हो रही कमियों के का ठीकरा या तो एमसीडी के ऊपर या केंद्र सरकार पर फोड़ती रही है, पर एमसीडी में उनका बहुमत आ जाने से अब कम से कम ये बहाना नहीं चल पाएगा।
एमसीडी के सामने कई चुनौतियां हैं जैसे कि भ्रष्टाचार। आगे वाला आने वाला समय बताएगा कि दिल्ली की जनता पैबंद वाली सड़कों से निजात पाती है? क्या एक शुद्ध हवा में सांस ले पाती है? क्या प्रवासी मजदूरों की समस्या का कोई हल निकलता है? क्या रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की समस्याओं को सुना जाता है? क्या दिल्ली वासियों को ट्रैफिक और पार्किंग की समस्या से छुटकारा मिल पाएगा? क्या हाउस टैक्स की प्रॉब्लम्स को हम सॉल्व कर पाते हैं? क्या दिल्ली के अंदर जो अवैध और निर्माण चल रहे हैं उनको केजरीवाल सरकार रोक पाती है?
चुनौतियां बहुत हैं और जनता की आशाएं एमसीडी और केजरीवाल से और भी ज्यादा। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी केजरीवाल सरकार को अगर आगे भी सत्ता में रहना है तो उसे काम करके दिखाना ही होगा।