प्लास्टिक कचरा बना शहरों में जलभराव का कारण
कोटा, बारां, और बूंदी सहित राजस्थान के कई शहरों और कस्बों में हाल की बारिश के बाद सड़कों पर पानी का तेज बहाव देखा गया, जिसे लोग अक्सर बाढ़ का नाम दे देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यह बाढ़ नहीं, बल्कि अवरुद्ध जल निकासी व्यवस्था और नालियों में जमा पॉलीथिन व प्लास्टिक कचरे का परिणाम है। कोटा, जो चंबल नदी के किनारे बसा है, में बाढ़ की संभावना न के बराबर है। चंबल पर बने चार बांधों—गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर, और कोटा बैराज—के माध्यम से पानी का प्रवाह नियंत्रित प्रक्रिया के तहत छोड़ा जाता है। डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पानी का फैलाव बाढ़ जैसा प्रतीत हो सकता है, लेकिन इसका मुख्य कारण नदियों से नहीं, बल्कि शहरों की नालियों और नालों में जमा कचरा है।
शहरीकरण के साथ पॉलीथिन और प्लास्टिक का उपयोग बढ़ा है। लोग इनका उपयोग कर बिना सोचे-समझे कचरे में फेंक देते हैं, जो नालियों को जाम कर देता है। परिणामस्वरूप, बारिश का पानी सड़कों पर दरिया की तरह बहने लगता है। स्थानीय प्रशासन के अनुसार, कोटा और बारां में कई नालियों की सफाई नियमित रूप से की जाती है, लेकिन नागरिकों द्वारा लगातार फेंके जाने वाले कचरे के कारण यह प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पॉलीथिन और सिंगल-यूज प्लास्टिक न केवल जल निकासी को बाधित करते हैं, बल्कि मिट्टी और जलस्रोतों को भी प्रदूषित करते हैं।
सरकार ने पॉलीथिन और प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर और कचरा प्रबंधन के लिए कानून बनाकर अपनी जिम्मेदारी निभाई है। नगर पालिकाएं कचरा संग्रहण और निपटान के लिए नियमित अभियान चला रही हैं। फिर भी, समस्या का समाधान तभी संभव है जब नागरिक स्वयं जागरूक हों और पॉलीथिन व प्लास्टिक का उपयोग कम करें। कोटा के कुछ मोहल्लों में स्थानीय लोगों ने स्वयं नालियों की सफाई और सड़कों के गड्ढों को भरने का कार्य शुरू किया है, जिसे प्रशासन ने सराहा है। बूंदी में भी नागरिक समूहों ने कचरा निपटान के लिए जागरूकता अभियान चलाए हैं।
इसके अतिरिक्त, शहरी क्षेत्रों में तालाबों और जलाशयों पर अतिक्रमण ने जलभराव की समस्या को और गंभीर किया है। सीमेंट-कंक्रीट की सड़कों के कारण बारिश का पानी जमीन में अवशोषित नहीं हो पाता, जिससे सड़कों पर पानी जमा हो जाता है। नदियों और जलाशयों की गहराई बढ़ाने के लिए रेत और पत्थरों का खनन किया गया है, जिससे बाढ़ का खतरा कम हुआ है, लेकिन शहरी जल निकासी व्यवस्था को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि जलभराव की समस्या से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। प्रशासन, नगर पालिकाएं, और नागरिकों को मिलकर कचरा प्रबंधन और जल निकासी की व्यवस्था को बेहतर करना होगा। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि पॉलीथिन के विकल्प जैसे कपड़े के थैले और बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग बढ़ाया जाए। कोटा के एक निवासी रामेश्वर मीणा ने कहा, “हम सरकार को दोष देने से पहले खुद की जिम्मेदारी समझें। अगर हम कचरा सही जगह डालें, तो आधी समस्या अपने आप हल हो जाएगी।”
*स्वतंत्र पत्रकार

