मीरा, दिल्ली में एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता थी। मीरा को सामाजिक कार्यों में बचपन से ही रूचि थी। उसकी शादी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हो गयी। यहाँ पर भी उसके ससुराल वालों का बड़ा रूतबा था। रायपुर में आने के बाद भी मीरा अक़्सर ही सामाजिक कार्यक्रमों में आया-जाया करती थी। रायपुर में कोई भी कार्यक्रम हो, मीरा और उसके परिवार को न्यौता आ ही जाया करता था। धीरे-धीरे मीरा यहाँ भी कई सामाजिक संगठनों से जुड़ गई। ज्यादातर संगठनों में पुरूषों का ही बोलबाला था।
मीरा, पढ़ी-लिखी और समझदार महिला थी और सामाजिक संगठनों के माध्यम से समाज के लिए कुछ करना भी चाहती थी। लेकिन कई बार ऐसा अनुभव होता था कि कार्यक्रम की संरचना से लेकर उसके क्रियान्वयन तक महिलाओं की कुछ भूमिका होती ही नहीं थी। सामाजिक संगठनों में ज्यादातर पुष्पगुच्छ भेंट करना एवं अतिथियों के स्वागत की जिम्मेदारी ही महिलाओं को दी जाती थी। मीरा, को यह अच्छा नहीं लगता था। वह कुछ सार्थक कार्य करना चाहती थी। लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। मीरा लिंग केंद्रित प्रश्नों के जाल में उलझी रहती थी और कई बार कुछ भी समाधान न पाने के कारण कुंठित भी हो जाती थी।
अभी कल भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक जाने माने सामाजिक संगठन ने अपना वार्षिकोत्सव रखा। दूर-दूर से नामी-गिरामी लोगों को बुलाया गया। मीरा को एक पावरफुल प्रस्तुतिकरण करना था। जिसकी तैयारी वह लगभग पिछले 1 महीने से कर रही थी। अचानक ही तय प्रस्तुतिकरण को रद्द कर दिया गया और कहा गया कि समय का अभाव है। जबकि नृत्य के कार्यक्रमों को कम नहीं किया गया। मीरा ने विरोध भी किया, सुनवाई नहीं हुई। उसे लगा कि जैसे अभी महिला सशक्तिकरण में कुछ कसर बाकी है। अभी इस सशक्तिकरण के लिए भूमि तैयार नहीं हुई है। पुरूष मानस भी तो स्त्री सशक्तिकरण के प्रति गम्भीर नहीं है। परिवारों के साथ-साथ समाज भी स्त्री की विद्धवता को स्वीकार नहीं करता। इसी तरह अपने से बात करते हुए मीरा घर पहुंची और अनमने मन से टीवी लगा लिया।
अरे! यह क्या? नारी शक्ति वंदन अधिनियम -विमेंस’ रिजर्वेशन बिल- पारित हो गया। 2023 में सरकार में बैठे हुए लोकसभा और राज्यसभा सदस्य पूर्ण रूप से नारी शक्ति को सहभागी बनाने को उत्सुक हैं। अब शायद समाज के मानस में परिवर्तन अवश्य आएगा। बेटियों ने विज्ञान, समाजशास्त्र, अध्ययन और अध्यात्म में अपनी उल्लेखनीय छवि बनाई है। पर यह राजनीति में 33 प्रतिशत की भागीदारी पूरे महिला समाज को आनंदित करने वाली है। संवेदनशीलता की प्रतिमूर्ति, भारत की नारी, पुरूषों के साथ देश-विदेश की कूटनीति पर अब न केवल बात करेगी बल्कि अपनी लेखनी से हस्ताक्षर कर उसे लागू करेगी। वास्तव में यह निर्णय साधारण महिला को भी शिखर तक पहुंचाने की यात्रा है।
मीरा खुशी से फूली नहीं समा रही थी। सत्ता के गलियारों में आवाज पहुंचाने के लिए संघर्ष करती हुई नारी अब देश को चलाएगी। यह स्वप्न पूरा हो जाएगा, यह तो मीरा ने कभी सोचा भी नहीं था। महिला कल्याण से लेकर महिला द्वारा संचालित राष्ट्र के इस सफर ने मूर्त रूप ले लिया। यह मीरा ने कभी सोचा भी नहीं था।
विश्वभर में आज भी नेतृत्व करने का अवसर ज्यादातर पुरूषों को ही मिलता है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा और लोकसभा में 33 प्रतिशत की महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है। 2029 में हमारा यह सपना फलीभूत होगा। पहले जनगणना और उसके पश्चात परिसीमन होगा।
इस अमृत काल में भारत को विश्वगुरू बनाने हेतु नारी का विकास, सशक्तिकरण और भागीदारी अपरिहार्य है। मीरा, देश की आधी आबादी यानि पुरूषों को अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित कर रही है। जब नारी जाति शिक्षित, समर्थ और उन्नत होती है तो वह सबसे पहले अपने परिवार को उन्नत करने का प्रयास करती है। अतएव, पुरूष वर्ग के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण, उनके परिवार के सशक्तिकरण के लिए नींव का पत्थर है। मीरा का पुरूषों से भी यह अनुरोध है कि खुले मन से महिलाओं की भागीदारी को स्वीकार करें।
*डॉ. शोभा विजेंदर दिल्ली स्थित एनजीओ, संपूर्णा की संस्थापिका और अध्यक्षा हैं, जिसकी स्थापना 1993 में हुई थी।