
प्रयागराज: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित ‘‘कुंभ की आस्था और जलवायु परिवर्तन’’ सम्मेलन में ‘जलपुरुष’ डॉ राजेंद्र सिंह द्वारा लिखित तरुण भारत संघ (तभासं) के जमीनी कार्यों के पांच दशकों पर आधारित “पानी पंचायत “ पुस्तक के पांच अध्यायों का विमोचन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन मनोज कुमार सिंह, मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार, श्री राजेंद्र रत्नू, आईएएस, कार्यकारी निदेशक, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम),श्री सुशांत शर्मा, सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश , नालंदा प्रकाशन के अध्यक्ष नीरज कुमार ने किया। इस सम्मेलन का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया जिसमें देश भर से विद्वानों, पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता, संतो, विधायक, सांसद आदि ने भाग लिया।

सम्मेलन में मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित डॉ राजेंद्र सिंह ने पुस्तक के बारे में बताते हुए कहा कि, ब्रह्माण्ड का सृजन करने वाला ’पानी’ और उसके पंचपरमेश्वरों की पंचायत प्रक्रिया ही इस पुस्तक में है। इसमें पंचायत को शुरू करने की प्रक्रिया, साध्य, साधन, साधना और सिद्धि को समझ सकते हैं। पानी पंचायत जल संकट से जूझते, उजड़ते लोगों को सचेत और स्वावलंबी बनाने के लिए भारतीय ज्ञानतंत्र को ही मुख्य मानती है। इसमें पंच परमेश्वर सर्वोपरि हैं। पंच परमेश्वर के दिखाए रास्ते पर चलना निरापद माना जाता है। तभासं ने इसी रास्ते का अनुसरण किया है। इस प्रक्रिया में बापू, विनोबा, जयप्रकाश नारायण को मानने वाली जमात की ही मुख्य भूमिका रही है। जो जल संकट से जूझ रहे हैं, वे सभी इसके हिस्से हैं। वैसे भी इस प्रक्रिया में सभी बराबर के भागीदार रहे हैं। पानी पंचायत प्रक्रिया में केवल वादी-प्रतिवादी और न्यायमूर्ति के निर्णय ही सभी कुछ नहीं है। यह तो समाज को समग्रता से जोड़कर समता की तरफ बढ़ाने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में लोगों को स्वयं अपनी समस्या का समाधान खोजना सिखाने का प्रयास किया गया है। देशज ज्ञान से काम करके स्वावलंबी एवं स्वाभिमानी बनकर श्रमनिष्ठा से काम करने की प्रक्रिया पानी पंचायत ने चलाई है। इस प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों को जोड़ा गया है। पानी पंचायत से तभासं ने उजड़े हुए लोगों को पुनः बसाया है। बंदूकधारियों को पानीदार, समझदार, इज्जतदार और सुसम्पन्न बनाया है। उस काम की जानकारी इस पानी पंचायत में है।
पानी पंचायत के पांचों अध्याय पढ़ने पर तभासं की संपूर्ण जानकारी मिलेगी। दूसरी पानी पंचायत के अध्याय में पंचायत में जमीनी अनुभव पढ़ने को मिलेंगे। यह अध्याय जल, प्रदूषण, विकास का विस्थापन, बिगाड़ और विनाश से बचाव, भारतीय विद्या द्वारा समाधान खोजने के प्रयास की शुरूआत है। दूसरे अध्याय में समाधान और जमीनी स्तर पर समय सिद्धि से काम हुआ है। प्रकृति को बचाने की प्रत्यक्ष लड़ाई की जीत का अगला अध्याय है। दूसरे में प्रत्यक्ष काम देखने-सीखने का अवसर भी पाठक को मिलेगा। इस काल में अरावली का सिंहनाद हुआ। सरिस्का का खनन रुका। अरावली की अट्ठाइस हजार खदानें बंद कराके, अरावली पर्वत शृंखला का संरक्षण एवं पुनर्जीवन किया है। पानी पंचायत ने इसी काल में विकास के नाम पर हुए विनाश को भी जाना है। विनाश के घाव वृक्ष सम्पदा से भरे जा सकते है। अतः इस क्षेत्र की वृक्ष संपदा एवं सरिस्का बाघ परियोजना पर छाया, शिकारियों का दबदबा, व वन में खनन से मुक्ति दिलाने हेतु तभासं की उच्चतम न्यायालय की लड़ाई भी इसमें वर्णित है। दुनिया का जल संकट और इससे हुए विस्थापन, किसानों का गाँव छोड़कर शहरों में आना, खेती, पानी वजवानी (युवा वर्ग) के संकट और समाधान भी इसी अध्याय में है।
तीसरा अध्याय तभासं और समाज के गंगा-यमुना नदी सत्याग्रह की सफलता को विस्तार देता है। राजस्थान से अपने काम को पूरे देश में जल बिरादरी द्वारा फैलाता है। यह अध्याय सामुदायिक जलाधिकार की लड़ाई में विजय दिलाने वाला रहा है। ‘लावा का वास’ सामुदायिक बाँध से जल स्वराज्य पाने में विजय मिली। नीमी गाँव जल क्रांति की सफलता है।
चौथे अध्याय में सरकार व संयुक्त राष्ट्र की नीतियों को लोकोन्मुखी एवं प्रकृति अनुकूल बनवाने की संघर्ष-भरी कहानी है। इस काल में सामुदायिक जल संरक्षण, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और लोक विज्ञान से किए गए तभासं के कार्यों को वर्ष 2015 में ‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’ से सम्मानित किया गया।
पाँचवाँ अध्याय तभासं के कार्यों को दुनिया में प्रयोग करके देखना और सफल सिद्ध होने पर उन्हें अपनाना है। यह कार्य विश्व जल शांति यात्रा द्वारा पूरी दुनिया में काम आ रहा है। सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग द्वारा तभासं का अनुभव दुनिया में पहुँचा है। विश्व शांति वर्ष 2024 में तीन हजार बागियों को विश्व शांति जल दूत पुरस्कार से सम्मानित करने का अध्याय है। अतः पानी पंचायत के पाँचो अध्याय पढ़ने से पाठक तभासं और पानी पंचायत प्रक्रिया को समझ सकेंगे।
जलपुरुष ने बताया कि जल संरक्षण का दर्शन लोक परम्परा और भारतीय ज्ञानतंत्र की मूल आत्मा है। यही दर्शन पानी पंचायत ने तभासं को दिया। इसे समझकर देशज अभियांत्रिकी सजग, संदेवनशील प्रौद्योगिकी, आध्यात्मिक और प्राकृतिक स्वभाव का विज्ञान ही तभासं ने काम में लिया है। प्राकृतिक शोषण के विरुद्ध एवं जल बाजारीकरण को रोकने के लिए निजीकरण के खिलाफ मोर्चा खोला गया है। पानी पंचायत के निर्णय से तभासं ने अपने काम का रास्ता चुना है।
इस पुस्तक को लिखने में डॉ. इंदिरा खुराना, प्रो. राणा प्रताप सिंह, रमेश शर्मा का भी योगदान रहा है। जल विशेषज्ञ स्वर्गीय अनुपम मिश्र एवं प्रो. जी.डी. अग्रवाल के विचारों को भी अध्यायों में समाहित किया गया है।
नालंदा प्रकाशन के अध्यक्ष नीरज कुमार के कहा कि, इस पुस्तक में दर्शाता है कि पानी पंचायत सवालों का समाधान है। तभासं इस प्रक्रिया को आगे ले जाने वाला साधन मात्र है। तभासं टीम की साधना ही पानी पंचायत है। तभासं लोक परम्परा में विश्वास रखता है। भारतीय ज्ञानतंत्र तभासं के काम का आधार है। इसलिए पानी पंचायत के निर्णय ही तभासं को रास्ता दिखाते हैं। लोक विज्ञान और देशज जीवन पद्धति तभासं टीम का जीवन मूल्य बन गया है। जीवन को मूल्यवान बनाने में सदैव सभी कुछ स्मरण कराने हेतु महात्मा गांधा का जीवन संदेश साथ रहता है। बापू तीर्थ की तरह तभासं तीर्थाटन करा रहा है। इसके पाँच अध्याय, पांच दशक है। सभी को सब कुछ का दर्शन तो पूरे पाँचों अध्यायों से ही होगा। साध्य सिद्धि हेतु साधना और साधन बहुत अलग-अलग है। पूरे पाँच अध्याय पढ़ने से ही पाठक भी सिद्धि प्राप्त कर सकेगा, ऐसा ही पानी पंचायत का संदेश है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो