एक लोकतांत्रिक देश में एक ईमानदार पत्रकार रहता था। लेकिन तंत्र इतना भ्रष्ट हो चुका था की उसकी पत्नी और बच्चे तथा कुछ मित्रों को छोड़कर कोई उसे ईमानदार मानने के लिए तैयार ही नहीं था। ऐसे मे समाज के तरह-तरह के लोग कुछ उसे सनकी तो कुछ पागल तक कहने लगे थे। वह अपनी तरह से लोगों को तरह तरह से विश्वास दिलाता था कि वह जिस अखबार मे कामकरता है वहां उसे इतनी तनख्वाह मिलती है कि वह अपनी पत्नी और बेटी का खर्च किसी तरह चलाता है। उसकी पत्नी भी बुढ़ापे की तरफ बढ़ रही है पर वह आज भी एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाकर घर गृहस्थी के कार्यों मे हर तरह से सहयोग करती है।
यह सही है कि वह अपनी इकलौती बेटी को बहुत अच्छे स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़ा पाया। ना ही कभी उसे आन लाइन शापिंग ही करा पाया, और ना ही आये दिन अच्छे होटल में अच्छा लंच और अच्छा डिनर ही करा पाया। लेकिन वह मेधा और भाग्य की धनी थी। वह खूब पढ़ी और उसकी शादी बिना दहेज के एक कमाने वाले युवक से हो गईl वह ईश्वर की कृपा से बहुत खुश थी क्योंकि उसका पति उसका और अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखता था।
पत्रकार अपनी सीमित आमदनी के चलते अपनी पत्नी को, जिसे वह भीतर से बहुत-चाहता था, ना कभी अच्छी साड़ियाँ दिला पाता, ना ही अच्छे गहने।वे वर्षों किसी टाकीज मे फिल्में भी देखने नही जा पाते और घर पर ही टीवी में फिल्में और सीरियल देख कर अपना मनोरंजन करते। उसकी पत्नी इतनी संतोषी थी कि उसने कभी साड़ी, गहने ,कपड़े ,परफ्यूम,या कभी घूमने के लिए कभी लॉन्ग ड्राइव पर भी जाने की इच्छा नहीं रखीl इस बात की वह अक्सर अपने मित्रों में प्रशंसा करता।
उसकी पत्नी और उसके कुछ सच्चे मित्र अक्सर उसे समझाते कि इस भ्रष्ट तंत्र से लड़ने में कोई फायदा नहीं है तो वह सिर्फ सुन लेता। लेकिन 24 घंटे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहता और इसमें उसे खूब मजा आताल वह जब भी कभी चार लोगों के बीच बैठता तो पूछने पर बताता कि ‘देखो हम लोगों ने कभी आज तक किसी से कोई कर्ज नहीं लिया है जिससे जिंदगी स्वाभिमान और सुकून से चल जाती है। लेकिन मैं क्या करूं मेरे भ्रष्ट लोगों के खिलाफ लड़ाई लड़ने की इस आदत ने मेरी पत्नी मेरे बच्चे और मेरे मित्रों को बहुत परेशान कर रखा है।इस पर तुर्रा यह है कि समाज तमाम कुतर्की लोग उसे ईमानदार मानने से इनकार करते हैं।
उसके सामने तो नहीं लेकिन पीठ पीछे तमाम कुतर्की लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि वह पूरी तरह से ईमानदार है। कुछ कुतर्की लोग शर्त लगाकर कहते की भैया हम तो नहीं मानते कि वह ईमानदार है। पूछने पर कहते अच्छा बताओ कि उस ईमानदार के मुँह है कि नहीं है? वहां बैठे सभी लोग कहते हैं हाँ भाई मुंह तो है तब वह कुतर्की की कहता हैं lलो हो गई पूरी बात । देखो देखो उसके मुंह है ना तो भी एक साथ बोलते यह – हाँ भाई उसके मुँह तो है, तब वह कुतर्की पूरे अधिकार भाव से कहता है, देखो तुम सब यह मानते हो कि उसके मुंह है, तो स्वाभाविक सी बात है कि जब मुंह है तो कुछ तो खाता होगा कि नहीं?
आज के समय में यह प्रजाति दुर्लभ है। हमें अपने साथी पर नाज है।
एक शे’र याद आ रहा है ~
ये क्या कि सूरज पे घर बनाना और छाँव की तलाश करना
खड़े भी रहना दल-दल में और पाँव की तलाश करना।
● ऐसा दुर्लभ साथी है हमारा।
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