
क्या इस वर्ष का कुम्भ 144 वर्षों के पश्चात आया है? सरकारी विज्ञप्तियों की माने तो हाँ। परन्तु शायद यह महाकुम्भ वह नहीं है जिसका प्रचार हो रहा है और जिस वजह से करोड़ों लोग प्रयागराज पहुँच रहे हैं, और हाल ही में वहां मचे भगदड़ में कइयों ने अपनी जान गँवा दी है।

2001 के महाकुम्भ को भी तब अखबारों ने 144 वर्षों बाद होने वाला महाकुम्भ बताया था। प्रयागराज निवासी वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार सेन ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक द डिवाइन कुम्भ (नियोगी प्रकाशन) में भी इस का हवाला दिया है और लिखा है: “महाकुंभ 12 ‘पूर्ण कुंभ’ मेलों के बाद आयोजित किया जाता है, जो हर 144 साल में एक बार गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम पर होता है। वर्ष 2001 में 144 वर्षों के बाद प्रयाग में महाकुंभ मेले का आयोजन किया गया था। कुंभ, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा मेला कहा जाता है, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की विशिष्ट राशि स्थिति के आधार पर इन स्थानों पर आयोजित किया जाता है। अगले कुंभ मेले के लिए स्थान का चयन सबसे पवित्र समय पर किया जाता है, ठीक उसी समय जब ये राशि चक्र संबंधी शर्तें पूरी होती हैं।”
यह एक गंभीर विषय है कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस ऐप चाट जीपीटी पर इस प्रश्न का जवाब 2013 का कुम्भ है।
तो फिर कौन तय करेगा कि वास्तव में 144 वर्षों बाद आने वाला कुम्भ 2001 में आया था या फिर अब 2025 में आया है?
Read this article in English: Has the Kumbh Mela of this year truly occurred after a span of 144 years?
यह विषय जटिल लगता है और उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ने आज प्रयागराज में चर्चा भी की कि पर्व, तिथि की सर्वमान्य समरूपता की ज़रुरत है। यही नहीं उन्होंने परमधर्मसंसद् १००८ में धर्मादेश पारित करते हुए कहा कि पर्व, तिथि की सर्वमान्य समरूपता हेतु एक हिन्दू व्रत पर्व निर्णय समिति का गठन करती है जो पूरे देश के विषय-विशेषज्ञों से मिलकर, सबसे चर्चा कर, सब के अभिमत लेकर शास्त्रीय निर्णय हिन्दू जनता के सामने उद्घोषित करेगी और धर्म निर्णयालय के माध्यम से यह कार्य निरन्तर करती रहेगी।

शंकराचार्यों को सनातन धर्म का संरक्षक भी माना जाता है। स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ने कहा, “हिन्दू समाज में अनेक सम्प्रदाय और गणना के भेद हैं, जिनके कारण कभी-कभी एक ही पर्व दो या तीन दिन पञ्चाङ्ग में लिखे जाते हैं। ऐसे में स्वयं के सम्प्रदाय के ज्ञान की अनभिज्ञता और सम्प्रदाय में गणनाविधि की स्वीकार्यता के सन्दर्भ में जानकारी न होने के कारण सामान्य हिन्दू जब भ्रम में पड़ जाते हैं तब ऐसे में उनका मार्गदर्शन आवश्यक हो जाता है।”
स्वामिश्री: के अनुसार समय का एक अपना ही महत्व है और वह परमात्मा का ही स्वरूप है। इसके दो रूप नित्य और जन्य बताए गए हैं। इनमें से नित्य साक्षात् परमेश्वर ही हैं। श्रौत-स्मार्त कर्मोपयोगी वर्ष-मासादि के रूप में गिना जाने वाला समय जन्य कहा गया है। यह जन्यकाल वत्सर, अयन, ऋतु, मास, पक्ष और दिवस के रूप में छः प्रकार का कहा गया है।।
“कोई-कोई कालखण्ड ऐसे होते हैं जो बहुत ही लाभदायक होते हैं। इसलिए हमारे पूर्वजों-ऋषियों ने शुभ कार्यों को करने के लिए उन्हीं विशिष्ट काल खण्डों की खोज ‘मुहूर्त’ आदि के रूप में की है। दैव और पितृकर्म में उचित काल का विचार कर अनुष्ठान करने के लिए काल विचार किया जाता है।हमारे पञ्चाङ्ग इस बारे में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, उन्होंने कहा।
यह भी पढ़ें: Several killed at Maha Kumbh; devotees resume holy dip
परमधर्मसंसद् १००८ में आज कुम्भ महापर्व में दब कुचलकर भगदड़ में मरे लोगों के लिए तीन बार शान्ति मन्त्र का उद्घोष कर श्रद्धाञ्जलि समर्पित की। अब ज़रुरत है पर्व तिथि की सर्वमान्य समरूपता की क्योंकि यह करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रश्न भी है। इससे इस बार के और पूर्व कुम्भ में हुई त्रासदी की पुनरावृति को भी रोकने में मदद मिलेगी।