प्री-बजट बैठक में स्वामीनाथन फॉर्मूला फिर उठा
पंचवर्षीय कृषि नीति व 42 हजार मंडियों पर जोर
नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने आगामी वित्तीय वर्ष 2026-27 के बजट के लिए आयोजित प्री-बजट परामर्श बैठक में भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) और पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने सबसे प्रमुख मांग रखी कि कृषि क्षेत्र के लिए आवंटित कुल राशि को चालू वर्ष के 1,37,756 करोड़ रुपये की तुलना में कम से कम दोगुना किया जाए। 20 नवंबर को कृषि भवन में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक और चेयरमैन अशोक बालियान ने विस्तृत मांगपत्र प्रस्तुत किया।
संगठनों ने तर्क दिया कि चालू वर्ष में कृषि मंत्रालय को पिछले वर्ष के 1,32,470 करोड़ रुपये से केवल 5,286 करोड़ रुपये अधिक मिले हैं, जो मुद्रास्फीति, बढ़ती उत्पादन लागत और जलवायु जोखिमों के मद्देनजर अपर्याप्त है। उन्होंने 2014 के बाद कृषि बजट में निरंतर वृद्धि के लिए भारत सरकार को धन्यवाद देते हुए भी कहा कि अब क्षेत्र की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के लिए दोगुनी राशि अनिवार्य है।

इसके साथ ही संगठनों ने दो दशक पुरानी उस सिफारिश को फिर से प्रमुखता से उठाया जिसे पिछले बीस वर्षों से हर किसान आंदोलन की धुरी बनाया जाता रहा है। कृषि वैज्ञानिक प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 2004 में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने अक्टूबर 2006 में अपनी अंतिम रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सभी 23 फसलों पर उत्पादन की पूरी लागत (सी-2) के ऊपर कम से कम 50 प्रतिशत लाभ देकर तय किया जाए। वर्तमान में सरकार मुख्यतः केवल नकद खर्च और परिवार की मजदूरी (ए-2 + एफएल) को आधार बनाती है, जबकि स्वामीनाथन आयोग ने सभी वास्तविक खर्चों – जमीन का किराया, पूंजी पर ब्याज, उपकरणों का मूल्यह्रास – को शामिल करते हुए सी-2 लागत पर डेढ़ गुना मूल्य देने की सिफारिश की थी। संगठनों ने जोर दिया कि यह सिर्फ मूल्य निर्धारण की बात नहीं, बल्कि इसे कानूनी गारंटी बनाना भी जरूरी है ताकि हर किसान को हर फसल पर यह मूल्य मिलना बाध्यकारी हो।
इसी क्रम में उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की अन्य प्रमुख सिफारिशों को भी दोहराया – अमेरिकी फार्म बिल की तर्ज पर पांच वर्षीय स्थिर कृषि नीति, छोटे किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शून्य प्रीमियम और बाजार मूल्य गिरावट (राजस्व हानि) को भी कवर करने के साथ न्यूनतम 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान, कृषि उपकरण, खाद, बीज, कीटनाशक, पशु आहार और मुर्गी दाना पर जीएसटी पूरी तरह हटाना, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अलग 20,000 करोड़ रुपये का विशेष कोष, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के लिए चालू वर्ष से दोगुनी राशि, हर पांच किलोमीटर पर एक मंडी बनाकर कुल लगभग 42,000 नई आधुनिक मंडियां स्थापित करना, नहर आधारित बड़ी सिंचाई परियोजनाएं और बाढ़ के पानी का संरक्षण, किसानों को पेंशन, आयुष्मान भारत और दुर्घटना बीमा में शामिल करना, मुख्य निर्यातक फसलों के लिए अलग बोर्ड, युवा किसानों के लिए 5 करोड़ तक का स्टार्टअप फंड, किसान उत्पादक संगठनों को प्रसंस्करण इकाई के लिए 100 करोड़ तक ब्याजमुक्त ऋण, डिजिटल खेती के लिए अलग बजट और कृषि विस्तार प्रणाली में आमूल सुधार।
संगठनों ने याद दिलाया कि 1 फरवरी 2025 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट में कृषि को “विकसित भारत का पहला इंजन” घोषित करते हुए प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना के तहत 100 कम उत्पादकता वाले जिलों में फसल विविधीकरण, उन्नत सिंचाई और भंडारण सुविधाओं की घोषणा की गई थी, जिससे संभावित रूप से 1.7 करोड़ किसानों को लाभ होने का अनुमान है। दालों में आत्मनिर्भरता के लिए छह वर्षीय मिशन, राष्ट्रीय उच्च पैदावार बीज मिशन, कपास उत्पादकता मिशन, बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना, किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा को 3 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करना, कृषि अनुसंधान के लिए 10,466 करोड़ रुपये, कृषि अवसंरचना कोष के लिए 900 करोड़ रुपये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 12,242 करोड़ रुपये जैसे कई सकारात्मक कदम जरूर उठाए गए थे।
फिर भी संगठनों ने स्पष्ट किया कि उनकी सबसे प्रमुख मांगें – बजट राशि में दोगुनी वृद्धि, स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले पर आधारित बाध्यकारी एमएसपी कानून, पंचवर्षीय स्थिर नीति, जलवायु कोष, 42,000 नई मंडियां और किसानों की सामाजिक सुरक्षा – बजट में पूरी नहीं हुई हैं। उन्होंने इन मांगों को आगामी बजट 2026-27 में प्राथमिकता के साथ शामिल करने का आग्रह किया। बैठक के अंत में मंत्रालय की ओर से सभी प्रस्तुत सुझावों पर गंभीरता से विचार करने और जहां संभव हो उन्हें समावेश करने का आश्वासन दिया गया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
