कोटा: कोटा के सड़कों और फुटपाथों पर बिछी कंक्रीट की इंटरलॉकिंग ने पेड़ों को लगाने की हर संभावना को कुंद कर दिया है। यह कंक्रीट की चादर न केवल वर्तमान में हरे-भरे पेड़ों की राह में रोड़ा बन रही है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हरियाली का सपना छीन रही है।
कोटा शहर, जो अपनी शिक्षा नगरी की पहचान के लिए मशहूर है, इस वजह से आज एक गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है। चंबल संसद और कोटा एनवायरमेंटल सैनिटेशन सोसाइटी ने इस मुद्दे को लेकर नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें शहर को फिर से हरा-भरा बनाने की जोरदार मांग उठाई गई।
चंबल संसद के समन्वयक और कोटा एनवायरमेंटल सैनिटेशन सोसाइटी के अध्यक्ष बृजेश विजयवर्गीय ने गहरी चिंता जताते हुए कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कोटा में ग्यारह लाख पेड़ लगाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, लेकिन कंक्रीट से ढके इस शहर में पेड़ लगाने की जगह ढूंढना टेढ़ी खीर है। सड़कों के किनारे, डिवाइडरों पर, हर जगह सीमेंट-कंक्रीट ने पेड़ों की सांसें रोक रखी हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर सरकार इस लक्ष्य को लेकर गंभीर है, तो कोटा विकास प्राधिकरण और नगर निगम को एक ठोस कार्ययोजना बनानी होगी, जिसमें कंक्रीट की जकड़न को तोड़कर पेड़ों को सांस लेने की जगह दी जाए।
वरिष्ठ पर्यावरण कार्यकर्ता विनोद चतुर्वेदी ने बताया कि पिछले तीन सालों में विकास के नाम पर कोटा में एक लाख से ज्यादा पेड़ों की बलि चढ़ चुकी है। नए पौधे तो लगाए जा रहे हैं, लेकिन वे पेड़ बनने में दशकों लगेंगे। पुराने, छायादार पेड़ों को बचाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। उन्होंने अफसोस जताया कि इस मुद्दे पर जिला कलेक्टर को कई बार ज्ञापन सौंपे गए, लेकिन स्थानीय प्रशासन में पेड़ों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दिखती। सड़कों पर लगी कंक्रीट इंटरलॉकिंग और डिवाइडरों की संरचना ऐसी है कि बड़े पेड़ लगाने की गुंजाइश ही नहीं बची। चंबल संसद ने सुझाव दिया कि सड़कों के किनारे कंक्रीट हटाकर मिट्टी की पट्टियां बनाई जाएं, ताकि पेड़ों की जड़ें फैल सकें और डिवाइडरों को इस तरह डिजाइन किया जाए कि उनमें बड़े, छायादार पेड़ लगाए जा सकें।
इसी ज्ञापन में कोटा चिड़ियाघर को बचाने की मांग भी जोर-शोर से उठाई गई। विनोद चतुर्वेदी ने बताया कि चिड़ियाघर के स्थान पर खेल संकुल बनाने की योजना है, जिससे वहां मौजूद सैकड़ों प्रजातियों के पेड़ खतरे में हैं। यह चिड़ियाघर न केवल वन्यजीवों के लिए रेस्क्यू सेंटर है, बल्कि शहर का एकमात्र हरा-भरा फेफड़ा भी है। इसे नष्ट करना पर्यावरण के साथ खिलवाड़ होगा। उन्होंने नगरीय विकास मंत्री से इस योजना पर पुनर्विचार करने और चिड़ियाघर को संरक्षित करने की अपील की।
चंबल संसद और कोटा एनवायरमेंटल सैनिटेशन सोसाइटी ने नगरीय विकास मंत्री से मांग की है कि कोटा विकास प्राधिकरण, नगर निगम और वन विभाग संयुक्त रूप से एक ऐसी कार्ययोजना बनाएं, जो पेड़ों को लगाने और पुराने पेड़ों को बचाने पर केंद्रित हो। स्वायत्त शासन मंत्री से इस दिशा में तत्काल हस्तक्षेप की अपील की गई है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि कोटा को हरा-भरा बनाने के लिए सिर्फ नारे और लक्ष्य काफी नहीं हैं। जरूरत है ठोस कदमों की, जिसमें कंक्रीट की जकड़न को तोड़कर पेड़ों को सांस लेने की जगह दी जाए। कोटा, जो शिक्षा का केंद्र है, उसे पर्यावरण के लिहाज से भी एक मिसाल बनना चाहिए।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
