कोच्चि: केरल में पानी का निजीकरण एक गंभीर मुद्दा बन कर उभरा है। 7 अक्टूबर 2024 को यहां केरल के लोगों द्वारा एक संयुक्त पानी पंचायत सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें यहां की सभी राजनैतिक पार्टियों के नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद मौजूद रहे। इस सम्मेलन का विषय ‘‘केरल में जल के निजीकरण को रोकना’’ था। इस विषय पर सभी राजनैतिक पार्टी के लोगों ने एक मत होकर कहा कि कोच्चि में पर्याप्त जल है; इसलिए जल का निजीकरण करने हेतु एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से बैंक लोन लेकर स्वेज कंपनी को देना बिल्कुल भी उचित नही है।
कंपनियों को काम देने के लिए भारत के लोगों को कर्ज में दबाना, भारत के भविष्य को सही रास्ता नहीं दिखाता। कोच्चि का पानी, उसका स्वयं का पानी है, इसे केवल पूर्ति के प्रबंधन के लिए कर्ज में डुबोना और फ्रांस की स्वेज कंपनी को पैसा पहुंचाना, बिल्कुल भी टिकाऊ या सनातन काम नहीं है।
पानी की कंपनियां पानी का ऐसा सप्लाई सिस्टम बनाती है जिसके कारण अपना पानी ही बाद में इन कंपनी के नियंत्रण में चला जाता है। केरल जैसे राज्य में जहां 3 मीटर वार्षिक वर्षा होती है, वैसी जगह पर निजी कंपनियों को पानी का काम देना अपमान जनक है। केरल में स्वराज तभी कायम होगा, जब समाज स्वयं अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सक्षम बन जाता है। यदि केरल जैसा राज्य अपना पानी खरीद कर पियेगा तो बहुत अनुचित है।
पहले भी केरल की सरकारें ऐसी गलतियां कर रही थी। कन्नूर जैसी जगह पर वह डीसलीनेशन प्लांट लगा रही थी, तब सरकार के साथ बातचीत करके इस काम को रुकवा दिया गया था।
जल निजीकरण रोकना इसलिए आवश्यक है क्योंकि निजीकरण करने से हमारी जल, अन्न, और जलवायु की सुरक्षा नहीं रहती। हम यदि इस संकट का समाधान निजीकरण में ढूंढते हैं तो वह समाधान सनातन नहीं है।
केरल को यदि पानीदार, इज्जतदार और समझदार बनाना है, तो केरल का जल प्रबंधन, केरल के समुदाय द्वारा विकेंद्रित रूप में किया जाना चाहिए। जब केरल का सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन होगा तो सबको पानी मिलेगा। लेकिन बाजारू बनाके सबको पानी पिलाना है, संभव नहीं। सब लोग पानी को खरीदकर नहीं पी सकते। इसलिए सामुदायिक विकेंद्रित प्रबंधन करके बेपानी समाज को पानीदार बनाने की जरूरत है। केरल समाज के पास पर्याप्त पानी है, लेकिन यदि हमेशा पानीदार बने रहना है तो सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन की तरफ सब का रुझान करना जरूरी है।
पेरिस में 150 साल पहले जल निजीकरण शुरू हुआ था। उन शुरू के दिनों में निजीकृत जल का जो भाव था, वो अब सैकड़ों गुना बढ़ गया है। अब वहां जो सहकारी कंपनी पानी का काम कर रही है, जिनका प्रबंधन वहां के समाज के हाथ में है, वो ही प्रबंधन बहुत सस्ता है। इसलिए सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन आवश्यक है।
केरल एक शिक्षित पानीदार राज्य है, इसे विदेशी कंपनी को पानी देना उचित नहीं है। कोच्चि को यदि पानीदार बनना है तो उसके लिए सबसे पहली पानी को समझना, सहेजना और फिर पूरे समाज को जल साक्षरता के द्वारा समझना बहुत ही आवश्यक है। इस आवश्यक काम के द्वारा ही हम सब पानीदार बन सकते हैं।
कोच्चि की इस पंचायत में सभी ने अपने-अपने बात रखते हुए जल के निजीकरण को रोकने का प्रस्ताव पारित किया और फैसला सुनाया कि, हम केरल में पानी का निजीकरण नहीं होने देंगे। यहां को मीडिया ने इसे जल के निजीकरण को रोकने के शुभारंभ माना।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक