– रमेश चंद शर्मा*
तिब्बत
तिब्बत, जी हाँ तिब्बत
मैं तिब्बत ही तो कह रहा हूँ
बार बार कह रहा हूँ
दर्द सह रहा हूँ, दर्द कह रहा हूँ।
आपने क्यों नहीं सुना?
आप सुनना नहीं चाहते?
आज़ादी का कवच बुनना नहीं चाहते?
तिब्बत है, सचमुच है
दुनिया की छत है
सुंदर है, न्यारा है
दलाई लामा प्यारा है
शांति का दुलारा है
दुनिया का सितारा है।
आज क्षत विक्षत है
लिखता खत है
जो ठिकाने नहीं पहुँचता
कहाँ खो जाता है
रास्ते में सो जाता है।
कोई छुपाता है, मिटाता है
पर मिटा नहीं पाता है,
दर्द सामने आकर खड़ा हो जाता है
चिल्लाता है, चिंघाड़ता है
कहता है, सुनाता है
अहिंसा समझाता है।
अपना पड़ोसी है
सुरक्षा की गारंटी है
हम भी उदास हैं
मानसिकता के दास हैं
दूर रहकर भी लगते पास हैं।
अब उठना होगा, लेनी होगी अंगड़ाई,
हिम्मत से उठाने होंगे कदम
कोई कर नहीं सकता हजम।
हम हैं, तिब्बत है
है एक सच्चाई
ले रही अंगड़ाई
दलाई लामा की कमाई
दुनिया के काम आई।
आओ मिलकर जोर लगाएं
करुणा को जगाएं
हिंसा को हटाएं
आलस्य भगाएं
आतताई को भगाएं
आजादी है हक पाएं
तिब्बत में बस जाएं
मुक्त तिब्बत का गान गाएं।।
*विख्यात गाँधी साधक।
