फूल की तरह जीना सीखें
फूल बोलता है,
भावना का अनुवाद कर देता है,
भावों की भाषा समझता है
शिक्षित नहीं है,
पदवी भी नहीं किसी विज्ञान की,
पर प्रकृति सौंदर्य का ताज है फूल।
वह प्रेम में उपहार बनता है,
श्रद्धांजलि में मौन साथी बनता है,
उत्सव में मुस्कान लाता है,
और वियोग में सांत्वना बनकर बिखर जाता है।
फूल सिखाता है कि ’मौन भी संवाद कर सकता है,
कि सौंदर्य में भी त्याग होता है
कि क्षणिक जीवन में भी अमर भावनाएँ बस सकती हैं।
कभी मौन गीत है फूल,
देख सकते हो उसे,
पर बाँध नहीं सकते,
अलग, फिर भी वही।
कली से गुलशन तक,
अंकुर से श्रृंगार तक,
जीवन की मधुर साँस है फूल।
एक फूल कभी नहीं कहता कि वह सुंदर है
वह बस खिलता है,
सोख लेगा सारे विकार-सारा दुःख
’’खुद मुरझाएगा, पर तुम्हें ताज़गी देगा।’’
उसे परवाह नहीं कि कौन उसे तोड़ेगा,
कौन उसकी प्रशंसा करेगा
वह तो बस देता हैः रंग, सुगंध, भावना, कोमलता, जीवनामृत और अर्थ।
फूल किसी धर्म का नहीं होता,
उसकी कोई जाति नहीं होती,
उसका कोई देश नहीं,
फिर भी वह हर पूजा में होता है,
हर प्रेम-पत्र में होता है,
हर विदाई में होता है।
सामग्री नहीं,
फिर भी हर उत्सव का केंद्र है फूल।
सभी का फूल,
फूल का कोई रंग नहीं
और हर रंग है,
भावों का स्रोत है फूल,
फूल का धर्म केवल फूल,
फूल का रंग केवल फूल,
फूल की जाति केवल फूल,
फूल का नाम केवल फूल।
फूल सिर्फ फूल नहीं होता,
वह संवेदना का भी प्रतीक होता है।
वह हमें याद दिलाता है कि, सुंदरता बाहरी नहीं, भावनाओं में बसती है।
तो आइए,
हम भी फूल की तरह जीना सीखें
कांटों में भी खिलना-मुस्कुराना सीखें
बिना शोर किए, दूसरों को खुशियाँ देकर,
और अंत में अपने रंग किसी और के जीवन में छोड़कर।

