
जीवन है पानी
जल ही जीवन, जीवन है पानी
पंचतत्व की यह गजब कहानी
जल थल नभ का गहरा नाता
जल है देवता, नदियां हैं माता
जल के सूखने लगे जब स्रोत
हर तरफ नाचने लगती है मौत
गांव, जंगल, डूंगर, खेती-बाड़ी
उजड़ गई क्षेत्र की सभी पहाड़ी
कुएं, तालाब, जोहड़, नदी सूखी
जीवन रूखा क्षेत्र की जनता भूखी
गांव क्षेत्र जवानों से हो गया खाली
जल की सूध किसी ने नहीं संभाली
क्षेत्र घोषित हुआ डार्क जोन
कानून, सरकार, जनता थी मौन
जयपुर से चला युवकों का दल
गांव का बदलेंगे आज और कल
जोश-ए-जवानी का अपना सपना
गांव क्षेत्र के लिए है हमको खपना
भीखमपुरा किशोरी अनजान स्थान
नई बस्ती, नहीं कोई जान पहचान
मंदिर में बीताए दिन और रात
लोगों से प्रारंभ हुई कुछ बात
गीत हर कोई बस यह गाता
बादल पानी नहीं बरसाता
आकर हमारा मन ललचाता
धरती का पेट नहीं भर पाता
सूखे जल स्रोत, जंगल, खेत खलिहान
पशु-पक्षी जीव-जंतु बचाएं कैसे जान
गांव में आने से शरमाते मेहमान
पीने की तंगी, कहां खाना, स्नान
खत्म खेती-बाड़ी, काम-धंधे, रोजगार
गांव खाली कर भागे नौजवान बेकार
कस्बे शहर में खाए धक्के, ढूंढें काम
बिन पानी के सूना क्षेत्र हुआ बदनाम
शिक्षा-व्यवस्था का काम चलाया
गांव गंवाड को नहीं मन भाया
युवा दल कुछ समझ नहीं पाया
मांगू काका बोले सुन सीख
बिन पानी के इंतजाम मांगेंगे भीख
करना है तो करो पानी का काम,
इसी के दम जगेगा गाम का राम
दो दिन में दिया ऐसा प्रकृति ज्ञान
जीवन भर के लिए हो गया भान
युवा के मन को यह खूब भाया
साथियों को पर कम समझ आया
कुछ साथ तो कुछ हुए उदास
कुछ ने छोड़ा क्षेत्र और साथ
श्रम संस्कार बनाएगा भाल
युवा के हाथ तसला-कुदाल
मिट्टी खोदो-डालो, बनाओ पाल
यही करेगा क्षेत्र में नया कमाल
गोपालपुरा का जोहड़ तैयार
जिसने खोला हजारों का द्वार
जोहड़ बना करके मेहनत
जिसने लिख दी नई सनद
भाग्य से उस साल आई वर्षा
क्षेत्र जिसके लिए सालों तरसा
वर्षा ने कुएं में जलग्रहण बढ़ाई,
सबके चेहरों पर नई रौनक छाई
सबने मिलकर खुशी मनाई
मेहमानों संग दावत खाई
चल पड़ा तालाब जोहड़ का काम
गांव-गांव बना स्वैच्छिक श्रम धाम
कुओं में जब पानी झांका
डार्क जोन डरकर के भागा
जोहड़ तालाब छोट-छोटे बंध
पानी चला धरती की नसों के संग
नदियों में जब पानी आया
पुनर्जीवन का गीत सुनाया
अरवरी, सरसा, जहाजवाली, रुपारेल
भगाणी- तिलदेह, शेरनी का देखो खेल
अरवरी नदी की बनी संसद
नियम बने जो सबको पसंद
राष्ट्रपति खुद हमीरपुर पधारे
क्षेत्र सम्मानित, युवा के सहारे
विश्व में दो, यहां तीन प्रकार के पानी,
भू-जल, सतही, मरुस्थल में रेजानी
इसकी है अद्भुत आकर्षक कहानी
सुनाते हमको दादा-दादी,नाना-नानी
गांव-गांव में लौटने लगी जवानी
जब आ गया क्षेत्र में भरपूर पानी
खिले खेत-खलिहान, हरियाली आई
पहाड़ियों पर हरी-भरी वनस्पति छाई
जल चक्र के घटक में आया बदलाव
वर्षण, अन्तः स्यनदन, वाष्पन, अपवाह
वाष्पोत्सर्जन हरदम करता काम
सतत सक्रियता कभी नहीं आराम
यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं का ऐसा जाम
सागर से उठा, धरा-बहा, सिंधु में आराम
प्रवाह के सुनो अलग-अलग कितने बहाव
सतही, आन्तरिक, सीधा, अधोभूमि प्रवाह
सल धरती में सीधी तिरछी आड़ी मान
जिनसे पेड़-पौधे वनस्पति की हो पहचान
पानी गिरा, गति रोको, बहना सिखाओ
बहते जल को धरती के पेट में बिठाओ
वक्त पड़े जब आए सबके काम
नहीं तो रहता हरदम निज धाम
चंबल के लोगों की पुकार
वहां भी जाने को हुए तैयार
कहीं नहीं मिली मजदूरी
अवैध खनन बनी मजबूरी
क्षेत्र में कंधे पर बंदूक आई
डर से लोगों ने शुरू की कमाई
अपहरण का जोखिम उठाया
मन फिर भी नहीं घबराया
पानी का शुरू हुआ काम
खेती-बाड़ी बन गया धाम
सैरनी की पुनः बही धार
जीवन में रौनक, घर में प्यार
पशुधन हुआ गजब निहाल
दुध दही घी की बढ़ी संभाल
रोजगार आया जब हाथ
बंदूक का छूटा तब साथ
सैरनी का रखा ख्याल
क्षेत्र हो गया मालामाल
घर में रहने लगे लोग
खत्म हुआ डर का रोग
डौला गांव के दो ओर पानी
बचपन की भी सुनो कहानी
युवा का डौला है जन्म स्थान
यमुना में दादी संग करता स्नान
स्कूल में करता था जब पढ़ाई
सत्तर के दशक की बात है भाई
दिल्ली से रमेश गांव में आया
अपने संग कुछ सपने लाया
बाल युवाओं को खिलाता नए-नए खेल
शिक्षा, स्वास्थ्य वाचनालय से बढ़ाता मेल
प्रौढ़ शिक्षा, सेवा, शिविर, श्रमदान सफाई
काम हेतु ग्राविस नाम की संस्था बनाई
एक नया सा भवन बनाया
जिसका मन में सपना सजाया
गांधी विचार की धुनी रमाई
युवा के मन यह बहुत भाई
बदलने लगे चाल-चलन, रंग-ढंग
घूमें फिरे रहने लगे अधिकतर संग
अस्सी का जब आया दशक
दोनों के गांव से उठे कदम
युवा बन गया जयपुरिया
जयपुरिया से भीकमपुरिया
इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार
क्षेत्र में पानी की भरपूर बहार
कोस कोस पर बदले पानी
पांच कोस पर बदले वाणी
विविधता हमको है अपनानी
सफल जीवन की है कहानी
पुरस्कार पास दूर से आए
झोली भर-भर कर पाए
धरती पर जारी है काम
नहीं करेंगे हम आराम
श्रम साधना स्वाभिमान
इसी में छुपा है सबका राम।