दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में कचरे को लेकर जो स्थिति बन रही है, वह बेहद भयावह है। अब जब दिल्ली में विधान सभा चुनाव आ गए हैं तो बीते दिनों कूडे़-कचरे के पहाड़ को लेकर मछली बाजार से लेकर गाजीपुर तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं द्वारा पूर्व केन्द्रीय मंत्री विजय गोयल के नेतृत्व में पदयात्रा निकाली गयी। पदयात्रा के दौरान नेताओं ने आरोप लगाया कि देश की राजधानी में पिछले दस सालों से काबिज आम आदमी पार्टी की अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने कूड़े की समस्या को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के ही पूर्व सांसद और मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी और कोच गौतम गंभीर ने अपने कार्यकाल के दौरान बड़े बड़े पोस्टरों में गाज़ीपुर के कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई को कम करने के बड़े बड़े दावे किये थे।
कूड़े की बाबत मौजूदा भयावह हालात यह है कि दिल्ली नगर निगम गाजीपुर और भलस्वा लैंडफिल में रोजाना 3,400 टन से ज्यादा कचरा डालता है। कचरे की समस्या के उचित निष्पादन के अभाव के चलते ही लैंडफिल के आसपास रहने वाले लोग अस्थमा, सांस और दूसरी जानलेवा बीमारियों के शिकार होकर अनचाहे मौत के मुंह में जा रहे हैं। इसके पीछे नगर निगम द्वारा कचरा प्रबंधन को लेकर बरती जा रही लापरवाही पूरी तरह जिम्मेदार है। निगम बरसों से बार-बार कूड़ा निस्तारण की क्षमता बढ़ाने का दावा करता रहा है। अभी हाल में निगम ने वेस्ट टू ऐनर्जी प्लांट की रिसाईकिल करने की क्षमता बढ़ाने की योजना लागू करने की घोषणा की है लेकिन इसकी फिलहाल उम्मीद कम ही है। कारण इस परियोजना की 2027 के आखिर तक भी पूरे होने की उम्मीद कम ही है।
मौजूदा दौर में निगम के अनुसार हर दिन आठ हजार मीट्रिक टन कूड़े का निस्तारण किया जा रहा है। निगम नरेला,गाजीपुर और बवाना में वेस्ट टू ऐनर्जी प्लांट लगाने का दावा करता रहा है जिससे रोजाना 5 हजार मीट्रिक टन कूड़े को संशोधित किया जा सकेगा।लेकिन हालात इसकी गवाही नहीं देते। इसके ही मद्देनजर ही बीते महीनों में देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली में ठोस कचरा प्रबंधन के खराब क्रियान्वयन पर टिप्पणी करते हुए चिंता व्यक्त की और कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में 3000 टन से अधिक अशोधित कचरे से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति आ सकती है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली नगर निगम ( एम सी डी) को इस बाबत फटकार लगाते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में रोजाना 11 हजार टन से भी ज्यादा ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जबकि निगम द्वारा लगाये गये शोधन संयंत्रों की क्षमता केवल 8,073 टन रोजाना की ही है। शीर्ष अदालत की जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि एम सी डी के हलफनामे के मुताबिक दिल्ली में रोजाना पैदा होने वाले 11 हजार टन ठोस कचरे के निपटान के लिए साल 2027 तक अतिरिक्त शोधन संयत्रों की स्थापना की कोई संभावना नहीं है।
गौरतलब है कि जब इस मुद्दे पर न्याय मित्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ से कहा कि इन हालातों से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति पैदा हो सकती है क्योंकि देश एवं विदेशी जर्नल्स के आंकड़ों की मानें तो देश में प्रदूषण के चलते होने वाली मौतों में दिन-प्रति-दिन इजाफा ही हो रहा है। असलियत में दिल्ली की प्रदूषण की स्थिति भयावहता की सीमा पार कर चुकी है। इस पर पीठ ने कहा कि इस स्थिति से हम चिंतित हैं। राजधानी में 2016 के नियमों की यह स्थिति है जहां हम रोजाना 3000 टन से ज्यादा अशोधित ठोस कचरा पैदा कर रहे हैं और प्रतिदिन इसमें और इजाफा ही होगा। एम सी डी के हलफनामे को देखते हुए आशा की कोई किरण दिखाई नहीं देती। क्योंकि यदि मान भी लिया जाये कि उसमें दी गयी समय सीमा का पालन भी होगा तो भी 2027 तक दिल्ली में रोजाना 11,000 टन ठोस कचरे के शोधन की क्षमता स्थापित होने की कतई कोई उम्मीद नहीं है। न्यायालय न्याय मित्र के इस कथन से सहमत था कि इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति पैदा हो जायेगी। पीठ ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि वह मसले का तत्काल समाधान निकालने के लिए एमसीडी और दिल्ली सरकार के अधिकारियों की बैठक बुलाएं। पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को उन तात्कालिक उपायों के बारे में रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश के साथ आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की ओर से अलग से दाखिल हलफनामे का भी जिक्र किया। इस बारे में पीठ ने कहा कि एम सी डी ने ठोस कचरा प्रबंधन परियोजनाओं से जुड़ी पांच करोड़ से अधिक की दरों और एजेंसियों से अनुबंधों को मंजूरी देने के लिए निगम को वित्तीय शक्ति सौंपने हेतु दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है। पीठ ने दिल्ली सरकार को इस बाबत निर्देश दिया कि वह तत्काल प्रस्ताव पर विचार करे जो ठोस कचरा प्रबंधन से जुड़ी परियोजनाओं से संबंधित है और इससे तुरंत उचित फैसला ले। पीठ ने इसके साथ ही गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा में ठोस कचरा प्रबंधन के मुद्दे पर भी विचार करते हुए कहा कि वहां भी स्थिति इतनी ही खराब है। गुरुग्राम में 1,200 टन रोजाना ठोस कचरा उत्पन्न होता है लेकिन शोधन क्षमता मात्र 254 टन रोजाना की है। फरीदाबाद में रोजाना 1,000 टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है जबकि वहां केवल 400 टन की ही शोधन क्षमता है। पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि वह इसका शीघ्र समाधान निकालें।
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दिल्ली में कचरे का मुद्दा नया नहीं है। यह बरसों पुराना है लेकिन दुखदायी यह है कि आज तक इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है। लोकसभा चुनावों से पहले दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल स्थित कचरे के पहाड़ पर लगी आग का मुद्दा काफी लम्बे समय तक चर्चा का विषय बना था। उसके धुंए ने आसपास के इलाके के लोगों की सांसें अटका दी थीं। वायु प्रदूषण और लैंडफिल साइट की दुर्गंध तो बरसों से उनकी नियति बन चुकी है जिसकी मार के चलते दिल्ली जार-जार रो रही है। कूड़े के पहाड़ का मसला तो दिल्ली वासियों की जिंदगी का अभिशाप बन गया है। फिर कचरे के पहाड़ पर आग तो हर महीने लगती ही रहती है। इसको नियंत्रित करने के आज तक कोई कारगर कदम नहीं उठाये गये हैं। पिछले बीस सालों से कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के दावे किये जा रहे हैं लेकिन ठोस कार्यवाही न होने का खामियाजा यहां के लोगों को उठाना पड़ रहा है। इससे वहां रहने वालों का जीना दूभर हो गया है। सबसे ज्यादा परेशानी तो बच्चों और बुजुर्गों को है। वैसे कूडे़-कचरे के पहाड़ के मामले में अभी तक दिल्ली और मुंबई महानगर सबसे ज्यादा चर्चित थे लेकिन अब तो गुरुग्राम ने भी इस सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया है। यहां बंधवाडी़ लैंडफिल साइट पर रोजाना फरीदाबाद और गुरुग्राम का 2300 टन कचरा पहुंच रहा है। वहां भी पिछले 30 मार्च से लगातार आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। यहां फिलहाल तकरीबन लाखों टन कूडा पड़ा है। असलियत यह है कि लैंडफिल साइट के पास लोगों का रहना काफी मुश्किल होता जा रहा है। लोग खून-पसीने की कमाई से बनाये मकान छोड़ नहीं पा रहे हैं। वे लोग बरसों से दिल, सांस, गले में खराश, दिमाग में सूजन आदि रोगों के चंगुल में हैं। खासतौर पर बच्चों, गर्भवती महिलाओं, हृदय और सांस के रोगियों के लिए यह स्थिति जानलेवा है।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।