– सुंदरम् तिवारी*
काँस को घास समझने की भूल न करें। कहीं यह ज्योतिषी ज्ञान को अपने मे समेटे है, तो कहीं औषधीय ज्ञान को। इसकी चमचमाती खूबसूरती के आगे तो सब फेल हैं। काँस ग्रामीण क्षेत्रों में मिलने वाली एक आम घास है, जितने आम रूप से यह मिल जाती है, उससे कहीं खास हैं इसके उपयोग!
शास्त्रों में कुशा के 10 प्रकारों का वर्णन मिलता है उनमें से एक काँस भी है। अतः कुशा की अनुपस्थिति में इसका प्रयोग कुशा के स्थान पर किया जा सकता है। भारतीय संस्कृति और त्यौहारों में तो इसकी छाप अमिट है। मूत्र रोगों की तो जैसे रामबाण औषधि है यह।
इसके औषधीय गुणों की चर्चा करेंगे लेकिन पहले तीज त्यौहारों की बात कर लें। ऐसा कौन होगा जिसने काँस के उड़ते हुये बीजों से हवा में उड़ान बाजी नही की होगी? हलषष्ठी, ऋषिपंचमी, हरितालिका तीज, ग्यारस आदि सभी ग्रामीण शैली के तीज त्यौहार काँस के बिना अधूरे से लगते हैं। फुलैरा सजाने की बात हो और काँस न हो तो फिर काहे की सजावट? सफेद रंग की सादगी और खूबसूरती में अगर काँस के इर्द गिर्द भी कोई टिकता हो तो बतायें।
मिट्टी के कटाव को रोकने में जितनी मजबूती से यह घास टिकी है, उतना मजबूत शायद ही कोई पेड़ या पौधा हो। इसकी जड़ें भूमि में बहुत अधिक गहराई तक जाती हैं, इसी कारण भीषण से भीषण गर्मी में भी यह जीवित बची रहती है। इसके रनर नाम के रेंगने वाले तने इसे अल्पावधि में पूरे घास के मैदान या खेत मे फैल जाने में मदद करती हैं। अदरक की तरह भूमिगत राइजोम इसे पूरी तरह सूख या जल जाने के बाद भी पुनर्जीवन प्रदान करने का कार्य करता है।
कृषि कार्यो में भी काँस की उपयोगिता कम नही है। हमारे क्षेत्र में तो आज भी काँस की रस्सियों से गेंहूँ कटाई के समय बंडल पूरे बनाये जाते हैं। खेत से घर आते समय किसान इनसे ही घास के पूरे गठ्ठे बांध कर लाते हैं। इसी तरह काँस वाली घास के मैदान तीतर, बटेर सहित जंगली खरगोश, सियार आदि को उपयुक्त आवास प्रदान करता है।
मूत्र संबंधी रोगों जैसे पेशाब में जलन, श्वेत प्रदर, ठनका लगना आदि पीड़ादायक रोगों के उपचार के लिये काँस की जड़ को पीसकर रस निकाल लें और दूध में मिलाकर सेवन करें। पुराने समय मे गोली दवाओं की ज्यादा जानकारी नही थी, तब यही इलाज अपनाया जाता था।
साहित्य भी काँस की महिमा से अछूता नही रहा है। हिंदी साहित्य के जाने माने कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी कविता में काँस के साथ ऋतु परिवर्तन के संकेत का बड़ा ही हृदय स्पर्शी विवरण लिखा है:
वर्षा विगत शरद ऋतु आई।
फुले कास सकल मही छाई।।
इसी तरह गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में काँस के फूल को वर्षा की समाप्ति का संकेत मानकर लिखा है:
फूले कांस सकल मही छाई जनु वर्षा तजु प्रगट बुढ़ाई।।
*पर्यावरण यात्री जो पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने के लिए 2021 से देश भर में साइकिल से यात्रा कर रहे हैं।