हाल के विधान सभा चुनावों के बाद विजयी तीन राज्यों में जातीय समीकरण के साथ मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनवाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व ने विपक्षी दलों की राज्यों से उठी जातीय जनगणना की आवाज के मुद्दे पर बाजी पलट सी दी है और वहीं आगामी लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दे को भी मजबूत बनाने का प्रयास किया है।
मध्य प्रदेश में 18 साल से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की गद्दीपर काबिज रहे शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की दो दो बार मुख्यमंत्री रही रानी वसुंधरा राजे को जिस तरीके से बेदखल किया गया उसने राजनीति के पंडितों को भी चौंका दिया है। सही बात तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसको इन राज्यों का मुख्यमंत्री बनाएंगे इसे पत्रकार तो क्या सत्ता में जुड़े हुए लोग भी नहीं जान पाए यह भी चौंकाने वाली बात रही।
जातीय समीकरण को समझते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने संघ के शीर्ष नेतृत्व की सलाह मानकर छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाया। भाजपा ने पहली बार छत्तीसगढ़ में किसी आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री बना एक इतिहास भी रच दिया क्योंकि आदिवासी नेता के रूप में पहली बार मुख्यमंत्री बने अजीत जोगी का सर्टिफिकेट फर्जी पाया गया था। इस प्रकार सही ढंग से पहली बार विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बने हैं। दूसरी तरफ ओबीसी नेता अरुण साव को उपमुख्यमंत्री तथा सवर्ण ब्राह्मण नेता विजय शर्मा को दूसरा उपमुख्यमंत्री और पूर्वमुख्यमंत्री डा रमन सिंह को स्पीकर बनाकर जहां प्रदेश में जाति समीकरणों को ठीक किया वहीं विपक्षी दलों को चौंका दिया।
इसी तरह मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्य मंत्री बना भाजपा और संघ नेतृत्व ने दूसरा धमाका कर दिया। मध्य प्रदेश में भी दलित नेता जगदीश देवड़ा और श्रवण ब्राह्मण नेता राजेंद्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्री बनाकर जबकि पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बनाकर जातीय समीकरण के कील कांटों को काफी दुरुस्त कर दिया। राजस्थान में भी पहली बार के विधायक बने संघ के करीबी भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर सभी को चौंका दिया। राजघराने की राजपूत बिरादरी की नेता दीया कुमारी को तथा अनुसूचित जाति के नेता प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाकर तथा सिंधी समाज के नेता वासुदेव देवनानी को स्पीकर बनाकर जातीय समीकरण अच्छे से साधने का काम किया है।
वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व पश्चिम बंगाल में जातीय जनगणना को लेकर कांग्रेस-इंडिया गठबंधन के नेताओं ने जिस तरह से ओबीसी को अपने पाले में लाने की कोशिश की थी और वह मुद्दा अभी उभर ही रहा था कि भाजपा ने विपक्षी दलों के ओर से जातीय जनगणना के मुद्दे की 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले ही हवा निकल दी।
मालूम हो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शीर्ष नेतृत्व पिछले 50 वर्षों से भी अधिक समय से देश में हिंदुत्व के मुद्दे को हिंदुओं के बीच स्थापित करने के लिए जी जान से लगा हुआ था। इसमें सफलता संघ को तब मिली जब विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेता अशोक सिंघल की अगुवाई में चले राम जन्मभूमि आंदोलन पूरे देश में भाजपा और संघ के पक्ष में वातावरण बनाने का काम किया, चाहे शिला पूजन हो, गंगाजल वितरण हो या फिर विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद पर कर सेवा की बात हो। कार सेवा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर कार्य सेवकों पर चलाई गई पुलिस की गोलियों ने भाजपा और संघ को हिंदू समाज में धीरे-धीरे पैठने का अवसर दे दिया। इसके पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ मंदिर से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा ने पूरे देश के हिंदू जनमानस को आंदोलित किया और फिर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल में अयोध्या में विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद को कार सेवकों द्वारा ढहा दिया था।
हाल में ओबीसी में भाजपा और संघ की बढ़ती पैठको देखते हुए पिछले दिनों बने इंडिया गठबंधन के दलों के नेताओं ने इसका काट ढूंढने की रणनीति बनानी शुरू कर दी। इसके चलते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद के सिर्फ नेता पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने जातीय जनगणना का मुद्दा जोर शोर से ना सिर्फ उठाया बल्कि बिहार में जाति जनगणना शुरू करवा दी और उसकी रिपोर्ट बनवाई। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अपनी सरकार आने पर जातीय जनगणना करवाने की बात हर मंच से कही। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी, तेलंगाना के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने भी जातीय जनगणना की करने की बात का खुलकर समर्थन किया। देश में जब यह मुद्दा गर्मा गया कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गाँधी ने ओबीसी को शासन प्रशासन द्वारा उचित महत्व न दिए जाने का मुद्दा आंकड़े देकर उठाया तो भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व को इससे खतरा महसूस होने लगा।इसी के चलते गहन मंथन के बाद भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व में देश के पांच विधानसभाओं के चुनाव के पूर्व जातीय जनगणना को लेकर जमीनी स्तर पर ऐसी गोपनीय रणनीति बनाई जिसका परिणाम लोगों को इन राज्यों के चुनाव के बाद देखने को मिला है।
मुख्यमंत्री के चयन के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह और संघ नेतृत्व में लये गए निर्णय उत्तर प्रदेश के जन आधार वाले मजबूत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी शायद एक झटका है क्योंकि जिस तरह से पिछले दिनों उन्होंने केंद्र सरकार के एक मंत्री के करीबी माने जाने वाले संजय शेरपुरिया को कुछ एसटीएफ के माध्यम से गिरफ्तार करवाया था उससे उनसे केंद्रीय नेतृत्व नाराज तो था ही यह भी डर था कि 2024 के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद कहीं उत्तर प्रदेश में भी तो फिर बदल नहीं करेंगे। हालांकि 2024 तक के चुनाव तक उत्तर प्रदेश में कोई फेरबदल हो इसकी संभावना बहुत कम है।
*वरिष्ठ पत्रकार