केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज दिल्ली में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर बैठक की जिसमें नक्सल प्रभावित 8 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए। गृह मंत्री ने आंकड़े पेश करते हुए बताया कि जनवरी 2024 से अब तक छत्तीसगढ़ में कुल 237 नक्सली मारे गए हैं, 812 गिरफ्तार हुए हैं और 723 ने आत्मसमर्पण किया है। उन्होंने नक्सलियों से अपील की कि वे हथियार छोड़ें और साथ ही नॉर्थ-ईस्ट और जम्मू-कश्मीर के 13 हजार युवाओं का उदाहरण दिया, जिन्होंने नक्सलवाद छोड़ा है।
केंद्रीय गृह मंत्री ने नक्सलवाद खत्म करने की कोशिशों को लेकर छत्तीसगढ़ की तारीफ की। शाह ने कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ छत्तीसगढ़ में मिली सफलता सभी को प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित सभी जिलों में विकास की नई मुहिम शुरू की है। व्यक्तिगत एवं पारिवारिक कल्याण हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकार की लगभग 300 योजनाओं को शत-प्रतिशत संतृप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि इन योजनाओं के कारण सस्ती दरों पर अनाज और दवाइयां, स्कूल, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र आदि अब गांवों तक पहुंच गए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए इस खतरे को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए अंतिम प्रयास करना जरूरी है। उन्होंने सभी प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से महीने में कम से कम एक बार विकास और नक्सल विरोधी अभियानों की प्रगति की समीक्षा करने का आग्रह किया, और पुलिस महानिदेशकों से हर 15 दिनों में कम से कम एक बार ऐसी समीक्षा करने का अनुरोध किया। शाह ने कहा कि नक्सलियों द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंगों से हजारों निर्दोष आदिवासी मारे जाते हैं और नक्सलवाद के कारण ही इन क्षेत्रों में विकास रुका हुआ है।
शाह ने उल्लेख किया कि 45 पुलिस स्टेशनों के माध्यम से सुरक्षा रिक्तियों को भरना, राज्य खुफिया शाखाओं को मजबूत करना और राज्य विशेष बलों के उत्कृष्ट प्रदर्शन ने रणनीति की सफलता में योगदान दिया।
यह तो समझ में आता है कि सरकार नक्सलवाद को मिटाना चाहती है जो स्वागत योग्य है। परन्तु हिंसा को हिंसा से ठीक कभी नहीं किया जा सकता। नक्सलवाद को हिंसा से ठीक कभी नहीं किया जा सकता। यह लोकतंत्र में भी उचित नहीं है। यह तरीका सनातन या स्थायी तरीका नहीं है।
सरकार यदि ऐसे 30-40 नक्सलियों को मार भी देगी, तो उसमें से और हजारों नये नक्सली बनते जाएँगे। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि एक राक्षस को मारने से और बहुत सारे राक्षस बन जाते हैं। नक्सलवाद को खत्म करने का तरीका उनको मारना नहीं है, बल्कि सबसे पहले वहां के गरीब लोगों का नक्सली बनने के कारणों को समझना जरूरी है।
छत्तीसगढ़ का नक्सलवाद यदि खत्म करना है तो वहां जल संरक्षण का काम करके वहाँ के फसल-चक्र को बदलने और खेती को बढ़ाकर रोजगार बढ़ाने की जरूरत है। इस समय छत्तीसगढ की लाचारी, बेकारी और बीमारी नक्सलवाद को जन्म दे रही है।
आप जानते हैं कि तरुण भारत संघ ने चम्बल में उन लोगों के लिए भी पानी का काम किया, जो बंदूक लिए लूट-पाट करते रहते थे। चम्बल का बाग़ीपन और छत्तीसगढ़ का नक्सलवाद दोनों के साध्य में लाचारी, बेकारी और अपमान है। इन सबके कारण ही ये लोग बाग़ी या नक्सली बनते हैं।
छत्तीसगढ़ के नक्सलवादी भी लाचारी, बेकारी और अपमान के कारण ही नक्सलवादी बन रहे हैं। जब जीवन को चलाने के लिए जीविका के साधन नहीं होते, तब वह ‘मरता क्या नहीं करता’, ऐसी परिस्थिति में उसके जीवन में हिंसा आ जाती हैं। यहाँ के लोगों ने यह मान लिया है कि जीवन की लाचारी, बेकारी, बीमारी और अपमान का समाधान यह हिंसा है। जबकि हिंसा उसका समाधान कभी नहीं हो सकता; इसका समाधान तो स्नेह से होगा। जब यह समझ में आने लगता है, तो फिर नक्सलवाद सनातन तौर पर मिट जाता है। स्थायी तौर पर इसका समाधान है सबको समान रूप से जीविका के साधन मिलना तथा व्यक्ति के जीवन को सम्मान सहित रहने के लिए समान वातावरण का मिलना।
जब व्यक्ति के जीवन को चलाने के साधन सुलभ होते हैं, तो वह व्यक्ति निर्भय-निडर होकर अपने जीवन के कामों में लगा रहता है; लेकिन जब उसके पास जीवन जीने के साधन नहीं होते, तब वह डरता-डराता और मरता-मारता है।
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से शांति का समाधान बिल्कुल वैसा ही है, जैसा चम्बल के करौली और धौलपुर में। यह क्षेत्र 50 साल पहले डकैतों के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र में तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण करके उनके जीवन को चलाने के लिए खेती में रोज़गार उपलब्ध कराए। यह सब कुछ तरुण भारत संघ ने नहीं किया, बल्कि लोगों ने खुद से शुरू किया है।
यहाँ की महिलाओं ने अपने बच्चों और पति को इस पानी के काम में तरुण भारत संघ के साथ जोड़ने में अग्रणी भूमिका निभायी है। जब दोनों को समझ आया कि, हमें इस संकट से मुक्ति जल संरक्षण और हथियार छोड़कर खेती से ही मिल सकती है, तो बाग़ियों को भी किसानी समझ में आने लगी।
जिस तरह चंबल का बागी किसानी में बदला है, वैसे ही छत्तीसगढ़ का नक्सलवादी भी बदल सकता है। इसे रोजगार, खेती और अपने गांव के अच्छे कामों में लगाया जाए, इस हेतु जमीनी बुनियादी काम शुरू करना चाहिए। ये काम केवल सरकारी उत्सवों और जलसों से नहीं होगा।
तरुण भारत संघ ने अपना बिना कुछ प्रचार-प्रसार किये बाग़ियों को किसान बनाया और उनको ‘‘विश्व शांति जल-दूत सम्मान’’ देकर सम्मानित किया है। ये ऐसे लोग हैं, जिनके मुकद्दमे समाप्त हुए और वे साधारण जिंदगी जीने लगे। उन्होंने अपनी सच्चाई सबके सामने रखी है, जिसमें न्यायपालिका और कार्यपालिका ने भी मदद की है।
हमारी न्यायपालिका, कार्यपालिका और वहाँ के सामाजिक कार्यकर्ताओं को छत्तीसगढ़ में मिलकर नक्सली लोगों को प्यार और समान से रोजगार के लिए खेती के काम में लगाने का काम करना चाहिए तथा उनके लिए रोज़गार के अवसर बढ़ाने चाहिए। छत्तीसगढ़ के साथी उनके साथ मिलकर ऐसा काम करेंगे, तो फिर यह नक्सलवाद खत्म हो जाएगा।
नक्सलवाद और बागीपन हिंसा है लेकिन हिंसा को हिंसा से ठीक कभी नहीं किया जा सकता। हिंसा को प्यार और सम्मान देकर अहिंसामय बदला जा सकता है; इसलिए राज-समाज को इन नक्सलवादियों के साथ रहकर रोजगार के अवसर व जीवन जीने के लिए अहिंसक काम में लगाना चाहिए जैसे- तरुण भारत संघ ने चंबल में कार्य किया है। इस प्रकार के कार्य से नक्सली हिंसामय जीवन छोड़कर, अहिंसामय जीवन जीने लगेंगे।
*लेखक विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।