भीकमपुरा (अलवर): राजस्थान के अलवर जिले के छोटे से गाँव भीकमपुरा में 30 मई 2025 को एक ऐसी कहानी गूँजी, जो पचास साल पहले एक छोटे से सपने से शुरू हुई थी। तरुण भारत संघ ने अपने स्वर्ण जयंती समारोह में न केवल अपने पचास साल के सफर को याद किया, बल्कि उन लोगों की मेहनत को भी प्रशस्ति पत्र एवं दुपट्टा ओढ़ा कर सम्मानित किया, जिन्होंने सूखे, बाढ़ और आग से जूझते इस देश को जल, जंगल और जमीन की नई उम्मीद दी। यहाँ तरुण आश्रम में देश-विदेश से आए 500 से अधिक लोग एकत्र हुए, जिनके चेहरों पर गर्व और उत्साह की चमक साफ दिखाई दे रही थी।

यह उत्सव केवल एक समारोह नहीं था, बल्कि एक ऐसी यात्रा का जश्न था, जिसने राजस्थान की बंजर भूमि को हरियाली से भर दिया और चंबल जैसे हिंसक क्षेत्र को अहिंसा की मिसाल बना दिया। गाँधी साधक रमेश शर्मा की कविताओं ने समारोह की शुरुआत की, जिनमें तरुण भारत संघ की शुरुआत से लेकर आज की उपलब्धियों तक का दर्शन था। उनकी पंक्तियों ने हर उस व्यक्ति को छुआ, जो इस यात्रा का हिस्सा रहा। वे इस मिशन के शुरू से एक अहम् हिस्सा रहे हैं और इस समारोह में उन्हें जीवन रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जल संरक्षक और भारत के जलपुरुष के नाम से विख्यात तरुण भारत संघ के चेयरमैन राजेंद्र सिंह ने जब मंच से 30 मई 1975 का जिक्र किया, जब इस गैर सरकारी समाजसेवी संस्था तरुण भारत संघ को राजस्थान सरकार ने पंजीकृत किया था, तो सभागार में बैठे कई लोग उस दिन को याद करने लगे जब एक छोटी सी टोली ने बिना किसी बड़े संसाधन के, केवल हौसले के बल पर काम शुरू किया था।
राजेंद्र सिंह ने कहा, “यह यात्रा एक रेल की तरह है। कुछ लोग चढ़ते हैं, कुछ उतर जाते हैं, लेकिन कुछ साथी शुरू से आखिरी स्टेशन तक साथ चलते हैं। तरुण भारत संघ सौभाग्यशाली है कि इसके डिब्बे में बैठे मुसाफिरों ने कभी हार नहीं मानी।” उनकी बातों में एक गहरी सादगी थी, जो यह बताती थी कि यह संगठन केवल जल संरक्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने समाज के सबसे कमजोर तबकों को सशक्त बनाया। डोला गाँव की बाढ़ मुक्ति, गोपालपुरा का सुखाड़ से छुटकारा और जयपुर विश्वविद्यालय की आग में राहत कार्य—ये वो बीज थे, जिन्होंने तरुण भारत संघ को दुनिया भर में एक मिसाल बना दिया।
इस मौके पर दो किताबों का विमोचन हुआ—मराठी अखबार ‘सकाल’ के पूर्व संपादक श्रीराम पवार की निसर्ग आणि माणूस’ और दैनिक भास्कर के पत्रकार राजेश रवि की बागी से किसानी । दोनों किताबें चंबल के बदलाव की कहानी कहती हैं, जहाँ कभी डकैतों का डर था, वहाँ अब खेती और जल संरक्षण की बात होती है। श्रीराम पवार ने कहा, “चंबल की हिंसा को अहिंसा में बदलने का यह चमत्कार पूरी दुनिया के लिए सीख है।” उनकी बातों में चंबल घाटी के उस ऐतिहासिक परिवर्तन का जिक्र था, जहाँ 1,000 से अधिक पूर्व डकैतों ने हथियार छोड़कर खेती और जल संरक्षण को अपनाया।

समारोह में 110 लोगों को सम्मानित किया गया। जीवन रत्न, निष्ठा-विभूषण, कर्म-भूषण, नदी प्रहारी जैसे सम्मानों ने उन नायकों को गौरवान्वित किया, जिन्होंने नदियों को पुनर्जनन दिया और प्रकृति के साथ एक नया रिश्ता गढ़ा। चंबल संसद के संयोजक और स्वतंत्र पत्रकार बृजेश विजयवर्गीय, यज्ञदत्त हाडा और विट्ठल कुमार सनाढ्य जैसे पर्यावरणविदों को नदी प्रहारी पुरस्कार से नवाजा गया। जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने कहा, “तरुण भारत संघ ने भारतीय विरासत और ज्ञान को सहेजकर नदियों की सभ्यता को फिर से जीवित किया है।”
सर्वोदय कार्यकर्ता रामधीरज सिंह ने तरुण भारत संघ की कृतज्ञता की भावना की तारीफ की। उन्होंने कहा, “यह एकमात्र संस्था है, जो अपने साथियों के योगदान को चित्रों और पत्थरों पर उकेरती है।”

यह उत्सव केवल अतीत का जश्न नहीं था, बल्कि भविष्य की राह भी दिखा रहा था। राजेंद्र सिंह ने कहा, “स्वर्णिम वर्ष अंतिम पड़ाव नहीं, बल्कि अनुभवों के विस्तार का समय है।” तरुण भारत संघ ने जोहड़ों के निर्माण से लेकर अरावली की रक्षा, सरिस्का में अवैध खनन के खिलाफ लड़ाई, और गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिलाने तक, हर कदम पर समाज को साथ लिया। संघ के निदेशक मौलिक सिसोदिया ने संगठन की यात्रा का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे 1985 में भीकमपुरा में जल संकट से जूझते हुए शुरू हुआ यह सफर आज 3,500 से अधिक जोहड़ों और पुनर्जनन हुई नदियों की कहानी बन चुका है।
वर्ष 1975 में जयपुर, राजस्थान में तरुण भारत संघ की स्थापना भारत में सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। पाँच वर्ष पश्चात्, 1980 में राजेन्द्र सिंह ने संगठन के महासचिव का दायित्व संभाला। वर्ष 1985 में राजस्थान के अलवर जिले के भीकमपुरा गाँव में इस संगठन को स्थानांतरित किया गया। इस क्षेत्र में भीषण जल संकट के कारण जल संरक्षण पर संगठन का विशेष रूप से ध्यान केंद्रित रहा।
अलवर में तरुण भारत संघ द्वारा पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणालियों का पुनरुद्धार, जोहड़ों का निर्माण तथा लुप्त होती नदियों का पुनर्जीवन जैसे प्रयास किए गए, जिन्होंने आगे चलकर न केवल पर्यावरणीय संतुलन बहाल किया, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाया। वर्ष 1986 में, तरुण भारत संघ ने राजस्थान के गोपालपुरा गाँव में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी से पहला जोहड़ निर्माण कर जल संरक्षण की दिशा में अपने प्रयासों की शुरुआत की। जल संरक्षण के साथ-साथ संगठन ने मातृ एवं शिशु विकास, वयस्क शिक्षा, स्वास्थ्य क्लिनिक, ग्राम स्वच्छता, जैविक खेती, सुरक्षित अनाज भंडारण, और शराय निषेध जैसे अनेक सामाजिक कार्यक्रम भी प्रारंभ किए।
समय के साथ इन प्रयासों ने व्यापक रुप लिया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक जोहड़ों का निर्माण हुआ। वर्ष 1990 में, सामुदायिक सहभागिता से निर्मित 100वाँ जोहड़ इस यात्रा की एक ऐतिहासिक उपलब्धि बन गया। 1991 में, सरिस्का टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में हो रही अवैध खनन गतिविधियों के विरुद्ध तरुण भारत संघ ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। यह एक साहसिक पहल थी, जिसने पर्यावरणीय अन्याय के विरुद्ध सामूहिक आवाज़ को स्वर प्रदान किया। 7 मई 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने तरुण भारत संघ के पक्ष में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसके परिणामस्वरूप सरिस्का क्षेत्र की 465 अवैध खदानें बंद कर दी गई। इस फैसले ने न केवल क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की, बल्कि अरावली पर्वतमाला के संरक्षण की दिशा में भी एक मील का पत्थर साबित हुआ। 1994 में पर्यावरण जागरुकता को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से ‘अरावली बचाओ चेतना पदयात्रा’ की शुरुआत हुई।
वर्ष 1996 में तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की, जब उसके प्रयासों के फलस्वरूप भारत सरकार ने राजस्थान के थानागाज़ी ब्लॉक को ’डार्क जोन“ से “व्हाइट ज़ोन“ में परिवर्तित किया। यह परिवर्तन जल संकटग्रस्त क्षेत्र में समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों की अभूतपूर्व सफलता का प्रमाण था। इसी अवधि में, तरुण भारत संघ की पहल पर अरवरी, सरसा, भगानी, टिलदेह और जहाजवाली जैसी कई लुप्तप्राय नदियाँ और नाले पुनर्जीवित हुए। 1998 में “अरवरी संसद“ की स्थापना की एक अभिनव और लोकतांत्रिक मंच जो स्थानीय जल प्रबंधन में समुदाय की भूमिका को सशक्त बनाता है। अप्रैल 1999 में जयपुर के नीमी गाँव में आयोजित राष्ट्रीय जल सम्मेलन में “जल बिरादरी“ के गठन का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसने जल संरक्षण के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। इसी वर्ष, सामुदायिक प्रयासों से 3000वाँ जोहड़ निर्मित हुआ, जिससे अभियान को और अधिक गति मिली। सन् 2000 में, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय श्री के. आर. नारायणन ने पुनर्जीवित अरवरी नदी का दौरा किया, जो संगठन के कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता का प्रतीक बना।

जल बिरादरी के कार्यकर्ताओं ने भी समारोह में अपने अनुभव साझा किए। जलबिरादरी के राष्ट्रीय समन्व्यक सत्यानाराण बुल्लीसेट्टी, सुनील रहाणे, नरेन्द्र चुघ, विनिता आपटे, रामाकांत कुलकर्णी, आशुतोष रामगिर, प्रवीण महाजन, अनिकेत लोहिया ने कहा कि वे तरुण भारत संघ से सीखकर प्रकृति और नदी की चेतना बढ़ाने का काम देशभर में कर रहे हैं।
जैसा कि सूरज भीकमपुरा की पहाड़ियों के पीछे ढल रहा था, तरुण आश्रम में गूँज रही तालियों और कविताओं ने एक बात साफ कर दी—तरुण भारत संघ की यह यात्रा केवल जल संरक्षण की नहीं, बल्कि इंसानियत, समुदाय और प्रकृति के बीच एक अटूट रिश्ते की कहानी है। यहाँ आए हर व्यक्ति ने अपने दिल में एक संकल्प लिया कि यह रेल अपनी पटरी पर और भी दूर तक जाएगी, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरा-भरा, जल-सुरक्षित भविष्य छोड़ेगी।
