– सुरेश भाई*
समाज कई स्तरों पर अपने जल निकायों को बचाने के लिए प्रयास करता रहता है। लेकिन भारत के गांव, नगर आदि स्थानों पर जल स्रोतों की क्या स्थिति है इसका अध्ययन अभी भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया गया है। निश्चित ही यह जल निकायों की पहली गणना के रूप में देखा जा रहा है। जिसमें ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक व मानव निर्मित जल संरचनाओं के आकार, स्थिति, उपयोग, जल भंडारण क्षमता का आदि का उल्लेख किया गया है।
जल निकायों की गणना में चौंकाने वाली बात है कि इसमें 78 फ़ीसदी मानव निर्मित है और 22 फ़ीसदी यानी 5,34,077 जल निकाय प्राकृतिक है। इसका अर्थ है कि प्राकृतिक स्रोत तेजी से गायब हो गए हैं। और मानव निर्मित जल संरचनाओं में यदि सीमेंट का इस्तेमाल अधिक किया गया होगा तो वहां पर भी जल स्रोतों के सूखने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
हम जल संकट का सामना कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि लगभग 100 मिलियन लोग जल की कमी की सीमा पर खड़े हैं। कई बड़े शहर और गांव में पानी की भारी समस्या देखने को मिल रही है। संयुक्त राष्ट्र और नीति आयोग के अनुसार बताया जा रहा है कि पानी की मांग उपलब्धता आपूर्ति से दुगना हो सकती है। इसी आधार पर सचेत किया जा रहा है कि भारत की 40 फ़ीसदी आबादी को 2030 तक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होगा।
देश में कुल 24,24,540 जल निकायों की गणना हुई है। इसमें सबसे अधिक 7.47 लाख तालाब और जलाशय पश्चिम बंगाल में हैं और सबसे कम 134 सिक्किम में, 188 चंडीगढ़, 893 दिल्ली, 993 अरुणाचल में हैं।
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में 2,45,08, आंध्र प्रदेश में 1,90,777, उड़ीसा में 1,81,837, असम में 1,72,492, झारखंड में 1,07,598, तमिलनाडु में 1,06,957 जल निकाय हैं।आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक टैंक हैं।तमिलनाडु में सबसे अधिक झीले हैं। जिसमें देश के कुल जल निकायों का 63 प्रतिशत भाग है।
गणना में महाराष्ट्र जल संरक्षण योजनाओं में अब्बल बताया गया है। इस गणना में तालाब 59.5 प्रतिशत, टैंक 15.7 ,जलाशय 12.1 और जल सरंक्षण योजनाएं, लीकेज टैंक, चेक डैम 9.3 प्रतिशत, झीलें 0.9 और अन्य संरचनाएं 2.5 प्रतिशत हैं। इसमें पाया गया कि निजी संस्थाओं के पास 55.2 प्रतिशत जिसकी कुल संख्या 13,38,735 है।शेष सार्वजनिक स्वामित्व में 44.8 प्रतिशत जल निकाय हैं।
भारत के उपरोक्त कुल जल निकायों में से 97.1 प्रतिशत यानी 23,55,055 ग्रामीण क्षेत्रों में हैं । 2.9 प्रतिशत यानी 69,485 शहरी क्षेत्र में हैं। इसके साथ ही 9.6 प्रतिशत जिसकी संख्या 2,32,637 आदिवासी क्षेत्रों में और 2 प्रतिशत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हैं।
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परन्तु यह भी चिंता का विषय है कि जल निकायों की कुल गणना में से 16.3 फ़ीसदी यानी 3,94,500 जल स्रोत ऐसे हैं जिन्हें उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह जल्द खत्म हो जाएंगे या इसमें जिस तेजी से अवसाद भर रहा है उससे यह विलुप्ति के कगार पर खड़े हैं। 1.7 फ़ीसदी ऐसे जल स्रोत हैं जो 50 हजार या उससे अधिक लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। इसी में 90 फ़ीसदी से अधिक ऐसे भी जल निकाय हैं जो 100 लोगों की जरूरत को ही पूरा करते हैं।
शोषण और प्रदूषण से प्रभावित 1.6 प्रतिशत जिसकी कुल संख्या 38,496 जल निकाय अतिक्रमण के शिकार हो गये हैं। इसमें भी 75 प्रतिशत जलाशयों पर सबसे अधिक अतिक्रमण किया गया है। बताया जा रहा है अतिक्रमण के कुल आंकड़े में से 95.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में है और 4.6 प्रतिशत नगरीय क्षेत्रों में है। इस संबंध में यह भी आंकड़ा है कि कुल अतिक्रमण 38,496 में से 62.8 फ़ीसदी जल निकायों में 25 फ़ीसदी से कम हिस्से पर अतिक्रमण हुआ है और 11.8 फीसदी जल निकायों में 75 फ़ीसदी तक अतिक्रमण हो चुका है ।अनेकों झीलें अतिक्रमण का सामना कर रही है। जिस पर ऊपरी अदालतें कई बार राज्य सरकारों को अतिक्रमण रोकने का आदेश देती है। लेकिन उस दिशा में बड़ी मुश्किल से कदम भी आगे नहीं बढ़ते हैं।
जल निकायों की गणना में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में 15,301, तमिलनाडु में 8,366, आंध्र प्रदेश में 3,920 जलाशय व झीलें अतिक्रमण से प्रभावित है। इसका कारण है कि बढ़ती लापरवाही और अनियंत्रित दोहन के चलते जल स्रोतों को बचाना चुनौतीपूर्ण बन गया है। इसका उदाहरण हमारे देश में है कि सन् 1960 में बेंगलुरु में 262 झीले थीं जो अब 10 ही रह गई हैं। इसी तरह 2001 में अहमदाबाद की137 झीलें कम हो गई है। उत्तराखंड का एक उदाहरण है कि तेजी से प्राकृतिक जलस्रोत सूख रहे हैं 461 जलस्रोत ऐसे जिसमें 76 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है 1290 जल स्रोत ऐसे हैं जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है और 2873 जल स्रोत ऐसे हैं जिसमें 50 प्रतिशत पानी कम हो चुका है। दिनोंदिन बढ़ती इस गंभीर स्थिति के बारे में नीति आयोग पहले से ही कह चुका है कि हिमालय क्षेत्र के राज्यों में लगभग 60 प्रतिशत से अधिक जलस्रोत सूख गए हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों में भी बताया गया है कि देश के 700 जिलों में से 256 ऐसे हैं जहां भूजल का स्तर अतिशोषित हो चुका है। तीन चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास पीने योग्य पानी की पहुंच नहीं है उन्हें असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल दोहन करने वाला देश बन गया है जो कुल जल का 25 प्रतिशत है। देश में 70 प्रतिशत जल स्रोत दूषित है। जिसके कारण लोग तरह-तरह के रोगों से ग्रसित हैं।प्रमुख नदियां प्रदूषण के कारण मृतप्राय: हो चुकी है।
हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्रों में रह रहे अनेकों गांव व शहरों में जल विहीन होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। कुल जल निकायों की क्षमता के संबंध में बताया गया है कि 50 फ़ीसदी जल निकायों की भंडारण क्षमता 1000 से 10,000 क्यूबिक मीटर के बीच है। वही 12.7 फ़ीसदी यानी 3,06,960 की भंडारण क्षमता 10,000 क्यूबिक मीटर से ज्यादा है। रिपोर्ट कहती है कि 3.1 फीसदी का क्षेत्रफल 5 हेक्टेयर से ज्यादा है।जबकि 72.5 फ़ीसदी का विस्तार 0.5 हेक्टेयर से कम है।
जल निकायों की इस गणना के बाद यह सुनिश्चित होना चाहिए कि देश के नीति निर्माताओं को उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भविष्य में जल संसाधनों के सही नियोजन, विकास व उपयोग की दिशा मे कदम बढ़ाने पड़ेंगे। जल, जंगल, जमीन की एकीकृत नीतियां बनानी पड़ेगी। चुनावी घोषणा पत्रों में स्वच्छ जल वापसी का मुद्दा शामिल किया जाए। राज समाज के बीच ऐसी जीवनशैली बने कि जिस में जल सरंक्षण के लिए पर्याप्त स्थान हो। ऐसी योजनाएं बिल्कुल न चलाई जाए जहां जल का अधिक शोषण है और बाजार के द्वारा बंद बोतलों का पानी गांव तक पहुंच रहा है।प्रकृति और मानव के बीच में जल ही जीवन के रिश्ते की डोर बनी रहे।इस प्रयास को इस गणना के बाद राज- समाज को मिलकर करना होगा।
जल स्रोत स्वच्छ जल का एक महत्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन ध्यान रहे कि दुनिया की 18 फ़ीसदी आबादी भारत में है जहां केवल 4 फ़ीसदी साफ पानी है। इसमें भी 80 फ़ीसदी पानी कृषि के लिए उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में यदि जल निकायों का उचित प्रबंध नहीं होता है तो साफ पानी को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
*लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।