नयी दिल्ली: सूर्य पुत्री यमुना आज अपने ताड़नहार की प्रतीक्षा में है। इस बार ज्ञात इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना किनारे छठ पर्व मनाने की इजाज़त नहीं दी पर दिल्ली में यमुना किनारे व्रतियों ने सूर्य को अर्ध्य दिया। यमुना में भीषण प्रदूषण के चलते दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना किनारे छठ पर्व मनाने की इजाज़त नहीं दी थी। अपने आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा था कि यमुना नदी का पानी बेहद प्रदूषित और जहरीला है कि इसमें डुबकी लगाने से लोगों की सेहत बिगड़ सकती है।
दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला यमुना में प्रदूषण की वजह से सतह पर सफेद झाग की परत दिखाई देने के बाद आया था। पीठ का यह फैसला उसके हाल के आदेश के मद्देनजर दिया गया था जिसमें उल्लेख किया गया था कि यमुना में प्रदूषण अबतक के उच्चतम स्तर पर है। ऐसे में पीठ द्वारा किसी भी तरह का आदेश देने से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। जहरीले पानी में स्नान करने से लोग बीमार पड़ सकते हैं।
यह भी सच है कि यमुना में डुबकी लगाने से लोगों की सेहत खराब हुयी है और तो और उन्हें अस्पताल में भर्ती भी कराना पड़ा है। देखा जाये तो असलियत में आज यमुना की चिंता किसी को नहीं है। न दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार को, न केन्द्र की भाजपा सरकार को और न ही दिल्ली और केन्द्र की सत्ता से बाहर हो चुकी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को। दुखदायी बात तो यह है कि मौजूदा दौर में यमुना में प्रदूषण उच्चतम स्तर पर होने के बावजूद सब मौन हैं। यह राजनीतिक दलों की यमुना के प्रति संवेदनहीनता का जीता जागता सबूत है।
दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीशों ने हालिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा भी है कि नदी में फीकल कोलिफार्म का स्तर स्वीकार्य सीमा से 1959 गुणा और वांछित सीमा से 9800 गुणा ज्यादा है। गौरतलब है कि भले दिल्ली-हरियाणा की जीवनदायिनी यमुना मर रही हो, वह जहरीली हो गयी हो, उसमें लैड, कापर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे सेहत के लिए हानिकारक तत्व मौजूद हों और तो और यमुना में रसायन के चलते बजबजाते झाग को रोकने के लिए समूचे सीवेज के ट्रीटमेंट की जरूरत हो, के अलावा बरसों से वह अपने उद्धार के लिए तरस रही हो, इस बाबत कोई भी कुछ करता नजर नहीं आता। हां उसकी बदहाली पर आये-दिन अखबारों में घड़ियाली आंसू जरूर बहाते, बयान देते नजर जरूर आते हैं। तो फिर कौन होगा यमुना का ताड़नहार? इस बार छठ पर्व से तो यही लगा कि कोर्ट भी यमुना का ताड़नहार नहीं बन पाया
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दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी तो यमुना में प्रदूषण के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। पता नहीं वह किस भूगोल के तहत इन दोनों राज्यों को यमुना के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगा रही हैं जबकि यमुना जब पल्ला गांव में प्रवेश करती है तब साफ होती है और उत्तर प्रदेश तो दिल्ली के बाद पड़ता है। जबकि निकट भविष्य में दिल्ली में सत्ता पर काबिज आप को पुनः सत्ता में वापसी के लिए विधान सभा चुनाव का भी सामना भी करना है। उस हालत में शासन कर रही आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव से पहले यह कहते नहीं थकते थे कि यमुना शुद्ध होने पर सबसे पहले उसमें मैं खुद ही स्नान करूंगा। वह दावा कहें या वायदा थोथा ही साबित हुआ। विडम्बना यह कि आप सरकार के दस साल होने के बाद भी यमुना आज पहले से ज्यादा मैली है और अपने ताड़नहार की प्रतीक्षा में है।
मौजूदा दौर में तो नदी के आसपास का किनारा सफेद झागों से पटा हुआ नजर आता है। जबकि छठ पर्व के वक्त पूर्वांचल सहित बिहार के लाखों लोग जो दिल्ली में रहते हैं, यमुना में स्नान कर खुद को धन्य मानते हैं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
प्रिय भाई रावत जी,
ताड़नहार तो बहुत रहे है, रहेंगे, मगर तारणहार नहीं बन पाया अभी तक कोई। वैसे प्रयास अनेक कर रहे है, लेकिन वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति है।
सत्ता, प्रशासन, व्यवस्था, न्यायपालिका, अधिकारी, संत-साधु समाज, नागरिक समाज, लेखक, कार्यकर्ताओं ने कुछ कहा, किया, आवाज बुलंद की, पैसा खूब खर्च हुआ, दस्तावेज बने, यात्रा, आंदोलन हुए।
प्रयास जारी रहे, बढ़ते रहे। छोटा-मोटा, खरा- खोटा, ऐसा-वैसा, जैसा-तैसा, अच्छा-बुरा, अधूरा-पूरा, नगद हो चाहे उधार, कौन करेगा बेड़ा पार।
इंतजार है, रहेगा। आओ मिलकर सोचें-समझें, विचारें, प्रयास जारी रखें। कारखाने में तूती की आवाज ही सही।
सतत जारी रहें प्रयास, मन में रखें पूरी आश, नहीं होना है निराश, सफल होगा अपना प्रयास।
समस्त शुभकामनाओं सहित सादर जय जगत।
रमेश चंद शर्मा
Excellent post.