पुणे: 21वीं शताब्दी में पूरी दुनिया की धरती पर जिस तरह का निर्माण कार्य किया जा रहा है, उससे नदी भू-जल, सतही जल व हरियाली सब संकट ग्रस्त हैं। आज माँ धरती को समझे बिना हमने क्रूर बनकर विकास के नाम पर जिस तरह का औद्योगीकरण और शहरीकरण बढ़ाया है उससे धरती पर बोझ एवं लाल गर्मी बढ़ी है। लाल गर्मी ने जलवायु परिवर्तन कर दिया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण लोग लाचार ,बेकार, बीमार होकर विस्थापित हो रहे है। विस्थापित लोग जिस अन्य देश में जा रहे है, वहां के प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक संसाधनों पर दवाब बढ़ रहा है। इस विस्थापन की मुख्य वजह पूरी दुनिया बढ़ रहा सुखाड़ – बाढ़ है। आज पूरी दुनिया इस संकट से जूझ रही है।
आज हम नदियों की भूमि पर बहुमंजिला शहर बसा रहे हैं। उद्योगों और शहरों का गंदा पानी भी नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। सतही प्रदूषित जल ने भू-जल को भी दूषित कर दिया है। इस कारण खाद्यशृंखला में से जीव जगत की बहुत सी जातियां-प्रजातियां बीच-बीच में नष्ट हो रही हैं। बदले में मानव संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसलिए धरती पर मानव जरूरत का दबाव विनाश का कारण बन रहा है।
अब प्रकृति मानवीय जरूरत को पूरा करने में सक्षम नहीं है, फिर भी मानव और मानव की बनाई हुई मशीन धरती माँ को रौंधती जा रही है। जिस कारण हमारी माँ धरती आज क्षतिग्रस्त है और धरती को अब सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। धरती की इस मुश्किल के कारण अब पूरे के पूरे देश उजड़ रहे हैं। मध्य एशिया और अफ्रीका के देशों में बहुत तेजी से नये तरह का पलायन शुरू हुआ है।
पुराने जमाने का पलायन व्यक्ति की जरूरत पूरी करने के लिए स्थान परिवर्तन होता था और कालचक्र के अनुसार अस्थाई व्यक्ति को पोषक करने की ताकत देता था। वह स्वैच्छिक पलायन था। आजकल का पलायन दबाव में मजबूरी का पलायन है। प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में ’मरता क्या न करता!’ आत्महत्या करे या देश छोड़कर बाहर जाये। ऐसे लोग पूरे परिवार के साथ देश छोड़कर बाहर जाते हैं। और फिर वापिस नहीं आते हैं।
अब दुनिया को समझना होगा कि, इस संकट से मुक्ति की युक्ति भारत में मौजूद है। भारत में जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और उन्मूलन के प्रत्यक्ष उदाहरण है। दुनिया को इससे सीख लेने की जरूरत है, क्योंकि, भारतीय ज्ञान तंत्र में प्रकृति के प्रति प्रेम, सम्मान बचा हुआ है। इससे हम इस संकट का समाधान कर सकते है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ। सी – 20 सम्मेलन में सम्बोधन के अंश।