– डॉ राजेंद्र सिंह*
कवियों से अपील: पर्वतों के दर्द को शब्द दो
कविता से जुटेगी जनता पर्वत रक्षा में
नयी दिल्ली: दिल्ली के एल.टी.जी. सभागार में ११ दिसंबर २०२५ की शाम विश्व पर्वत दिवस पर कुछ ऐसा हुआ जो दिल को छू गया। अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशताब्दी के अंतर्गत आयोजित ‘भारत गौरवगाथा’ और राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में हिमालय तथा अरावली की रक्षा की पुकार गूंज उठी। वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में शुरू हुए इस समारोह में उनकी आवाज में गहरी चिंता झलक रही थी। उन्होंने कवियों और साहित्यकारों से दिल से अपील की—अपनी कविताओं और रचनाओं में ‘हिमालय है तो हम हैं’ का भाव जगाओ, अरावली के दर्द को शब्द दो। इससे देश की जनता जागेगी, एकजुट होगी और इन महान पर्वत श्रृंखलाओं को फिर से हरा-भरा बनाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो जाएगी।

अटल जी को याद करते हुए मन भावुक हो उठता है। वे दूसरों की बात को पूरे मन से सुनते थे, चाहे वह उनके विचारों से कितना भी विपरीत क्यों न हो। आज के नेताओं को उनसे सीखना चाहिए कि सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए भी लोकतंत्र की आत्मा को कैसे जीया जाता है। २४ दलों की गठबंधन सरकार चलाकर उन्होंने साबित किया कि विरोधी विचारों को सम्मान देना ही सच्ची राजनीति की ताकत है। १९७२ से १९७७ के उस तूफानी दौर में युवा उनके ओजस्वी भाषणों से मंत्रमुग्ध हो जाते थे—भारत का युवा उन्हें अपना आदर्श मानता था। आज उनकी जन्मशताब्दी पर युवाओं को समझना चाहिए कि अटल जी की सोच हिमालय जैसी ऊँची थी और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा अरावली जैसी गहरी। वे भारत की आत्मा को पढ़ते थे, सद्भावना, समरसता और समभाव से लबरेज राजनेता तथा कूटनीतिज्ञ थे। जीवनभर उन्होंने प्रकृति और संस्कृति के पवित्र योग से एक गौरवशाली भारत की नींव रखी।
अटल जी भारतीय संस्कृति के अटल स्तंभ थे, विनम्रता की जीती-जागती मूर्ति। उनकी कथनी और करनी में कभी फर्क नहीं रहा। प्रधानमंत्री बनते ही नदी जोड़ का नारा दिया, लेकिन जब जल संरक्षण के अनुभव की बात सुनी तो तुरंत रुख बदला। अपने सहयोगी मंत्री सुरेश प्रभु को कहा—इनकी बात सुनो, समझो और उसी राह पर चलो। राजस्थान में स्थानीय लोगों के साथ जोहड़, चेकडैम, पोखर और तालाब बनवाकर नदियों से जुड़ाव कराया—नतीजा यह कि नदियाँ खुद शुद्ध होकर सदानीरा बहने लगीं। अटल जी ने खुद लखनऊ बुलाकर घंटों चर्चा की। वे विरोधी मत को दुश्मनी नहीं मानते थे, निर्भीक होकर सुनते और जनहित में योजनाएँ बदल देते थे। वर्षाजल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर नदी जोड़ परियोजना का पूरा स्वरूप ही बदलवा दिया।
उनका कवित्व प्रधानमंत्री की व्यस्तता में भी फूट पड़ता था। सभी को साथ लेकर चलने की कला में वे अद्वितीय थे। सामुदायिक विकेन्द्रीकृत जल संरक्षण को बढ़ावा देकर वे सच्चे भारतरत्न बने। विरोध के बाद भी राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए विरोधी की बात स्वीकार करते थे, क्योंकि मानवता उनके लिए सबसे ऊपर थी।

आज मुरली मनोहर जोशी ने अटल जी की लोकतांत्रिक समुद्र जैसी गहराई को फिर से उजागर किया और पूरे भारत को हिमालय व अरावली के पर्यावरणीय महत्व की याद दिलाई। अरावली वह प्राकृतिक ढाल है जो पश्चिम से आने वाली धूल भरी गर्म हवाओं को रोककर राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को बचाती है। नए संकटों—खनन, अतिक्रमण—से उत्पन्न खतरे को देखते हुए इसे तत्काल बचाना होगा। अरावली बचेगा तो इन क्षेत्रों की उपजाऊ खेती, वन्यजीव, अभयारण्य, दुर्लभ औषधीय वनस्पतियाँ, प्राकृतिक संतुलन और सदियों की परंपराएँ भी जीवित रहेंगी। हिमालय और अरावली हमारी सांस्कृतिक व पर्यावरणीय धरोहर के जीते-जागते प्रतीक हैं। इनकी रक्षा के लिए समाज के हर तबके को आगे आना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनकी छाँव में साँस ले सकें और इनकी महिमा को महसूस कर सकें।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं।
