
कोटा: हाडोती के बारां जिले के शाहबाद और सोरसन (संरक्षण संरक्षित जंगल) कंजर्वेशन रिजर्व का विकास करने का निर्णय लिया गया है, लेकिन वन संपदा को विकास की नहीं संरक्षण की बहुत जरूरत है।
अनियोजित विकास विनाश का कारण बनता है। संतुलित विकास सनातन या सतत् विकास कहलाता है इस अंतर को शासन में बैठे जिम्मेदार लोगों को समझना जरूरी है।इसीलिए वन विभाग के अधिकारी संरक्षक कहलाते हैं न कि विकास अधिकारी। मुख्य वन संरक्षक,वन संरक्षक,उप वन संरक्षक, सहायक वन संरक्षक,वन रक्षक आदि। जब संरक्षण का भाव लुप्त हो जाता है वो संपदा भी लुप्त हो जाती है जिसका विकास करना चाहते हैं।
राजस्थान सरकार का यह निर्णय ऐसे समय आया जब शाहबाद के जंगल अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं और जनता जंगल बचाने के लिए आंदोलित है। राजस्थान की गत सरकार ने निजी कंपनी के हाइड्रो पावर प्लांट के 400 हेक्टेयर से अधिक के जंगल को काटकर यह आत्मघाती योजना बनाई और दुर्भाग्य से राजस्थान में बनी नई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने भी उस पर पुनर्विचार नहीं किया और उसे लागू करने पर आमादा हो गई। यह भी विचार नहीं किया गया कि उन्होंने नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा चीता को बसाने की परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है और कूनो नदी के किनारे शाहाबाद का जंगल चीता जैसे दुर्लभ प्राणी के विचरण का स्थल बन सकता है। कूनो नेशनल पार्क से निकल कर चीते शाहबाद में आ रहे हैं तो यह बड़ी खुशखबरी है और मोदी के नाम पर बनी सरकार को तो ख़ुश होना चाहिए।
राजस्थान के बारां जिले में ऐतिहासिक विरासत शाहबाद का जंगल प्राकृतिक संपदा से भरपूर है जो आजकल चीता जैसे दुर्लभ प्राणी के लिए पसंदीदा जगह बन गई है कूनो नेशनल पार्क से तीन बार चीते पैदल चलकर पहुंच चुके हैं। रियासत काल में ग्वालियर के सिंधिया महाराजा बाघ छोड़ते तो शिवपुरी के रास्ते शाहबाद के जंगल में पहुंच जाया करते थे। आज के दौर में भी शाहबाद का जंगल सांगवान, अर्जुन, सेमल,अमलताश समेत 400 से ज्यादा औषधीय वनस्पतियों का खजाना है। तेंदुए, रींछ, सेही, हरिण, मोर , प्रवासी पक्षियों समेत दो दर्जन दुर्लभ प्रजातियों के वन्यजीव विचरण करते है। बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के खतरों पर नियंत्रण भी यह जंगल करता है।
यहां पर्यावरणीय आपत्ति को समझते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दिया। जनता और जनप्रतिनिधियों ने पर्यावरणविदों की पीड़ा को समझा और बारां के जंगल को संरक्षित रखने का वादा किया।
हमारी सरकारों को विकास और पर्यावरण में संतुलन कायम करना होगा अन्यथा प्राणि जगत के लिए बहुत ही घातक होगा। सत्ता के मद में पर्यावरण का विनाश करके विकास कर भी लिया तो कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इस विनाश को आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी। भुगत भी रही है।सुखाड़, बाढ़, प्रदूषण, बढ़ता तापमान,जलवायु परिवर्तन, महामारियां, भूकंप आदि के रूप में परिणाम सामने है।
शाहाबाद और सोरसन को विकास से ज्यादा संरक्षण की आवश्यकता है विकास भी केवल इतना ही चाहिए कि उसे संरक्षण में मदद मिले बस!
– स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद्