नई दिल्ली: सूरज की तपिश और लू की भयावहता ने देशभर में त्राहि-त्राहि मचा दी है। यह भीषण गर्मी केवल त्वचा को झुलसाने वाली नहीं, बल्कि जनजीवन को पूरी तरह थाम देने वाली है। मैदानों से लेकर पहाड़ों तक, हर कोना इस प्रचंड तपन की चपेट में है। लोग हाय-हाय कर रहे हैं, घरों में कैद हैं, और सड़कों पर सन्नाटा पसरा है। दिन का तापमान जानलेवा बना हुआ है, और रातें भी अब चैन की नींद नहीं दे रहीं। लू, जिसे हीटवेव भी कहते हैं, की तीव्रता और घातकता दिन-ब-दिन बढ़ रही है, जो हजारों-लाखों लोगों को गर्मी जनित बीमारियों की चपेट में धकेल रही है। आंकड़े दिल दहला देते हैं—हर साल दुनिया भर में एक लाख तिरेपन हजार से अधिक लोग लू के कारण असमय काल के गाल में समा रहे हैं। भारतीय नीति मूल्यांकन ग्लोबल और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्ययन की मानें, 2030 तक दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, सूरत, ठाणे, भुवनेश्वर, हैदराबाद और पटना जैसे शहरों में लू के दिन दोगुने हो जाएंगे। देश के उनसठ फीसदी तटीय जिले जून से सितंबर तक लंबे समय तक इस भीषण गर्मी की मार झेलेंगे। क्या यह प्रलयकारी तपन अब हमारी नियति बन जाएगी?
राजधानी दिल्ली पिछले पांच दिनों से ऐसी भट्टी बनी है, मानो आग बरस रही हो। 1945 में जून का रिकॉर्ड तापमान छियालिस दशमलव सात डिग्री सेल्सियस था, लेकिन अब पारा पैंतालीस डिग्री के पार है, और तपिश चौवन डिग्री सेल्सियस जैसी महसूस हो रही है। दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हालात बद से बदतर हैं। राजस्थान का गंगानगर और पंजाब का बठिंडा अड़तालीस डिग्री को पार कर चुके हैं। पंजाब के अमृतसर और लुधियाना में पारा पैंतालीस डिग्री के करीब पहुंच गया है। चंडीगढ़, गुरदासपुर, पटियाला और फरीदकोट में तापमान चवालीस डिग्री सेल्सियस तक है। हिमाचल प्रदेश के ऊना, कुल्लू, बिलासपुर, कांगड़ा और मंडी जिले तैंतालीस दशमलव पांच डिग्री की तपन में लू के थपेड़ों से त्रस्त हैं। हिमाचल के छह जिले हाई अलर्ट पर हैं। जम्मू के सांबा, जम्मू, कठुआ, रामबन, ऊधमपुर और रियासी भी इस भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं। उत्तर प्रदेश का एक तिहाई हिस्सा, यानी चौबीस जिले, इस तपन की चपेट में हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्यों के चौरासी फीसदी जिले चरम लू की स्थिति से जूझ रहे हैं। सड़कें सुनसान हैं, बाजार वीरान हैं, और लोग घरों में कैद होकर इस तपिश से बचने की जुगत में हैं। क्या यह गर्मी हमारा नया सच बन चुकी है?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक चिंताजनक रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, दिल्ली समेत ग्यारह राज्यों को तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। यह रिपोर्ट गर्मी और लू से होने वाली मौतों को रेखांकित करती है, जो विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर, बाहरी कामगारों, बुजुर्गों, बच्चों और बेघर लोगों को शिकार बना रही है। ये लोग पर्याप्त आश्रय और संसाधनों की कमी के कारण सबसे अधिक जोखिम में हैं। अध्ययनों से खुलासा हुआ है कि बीते बाईस महीनों में इक्कीस महीने धरती का तापमान 1850 से 1900 के औसत से एक दशमलव पांच डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। 2024 से मई 2025 तक यह तापमान एक दशमलव पांच सात डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहा। बर्लिन के मर्केटर अनुसंधान संस्थान और ग्लोबल कामन्स एंड क्लाइमेट चेंज ने चेतावनी दी है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी न हुई तो तापमान एक दशमलव सात डिग्री तक और बढ़ सकता है। यह बढ़ता तापमान नित नए कीर्तिमान बना रहा है। बीते दस सालों ने धरती के सबसे गर्म वर्षों का रिकॉर्ड कायम किया है, और हर साल तापमान के रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहे हैं। चिंता की बात यह है कि भविष्य में इस पर अंकुश की कोई उम्मीद नहीं दिखती। तापमान नियंत्रण के सारे प्रयास अब तक नाकाम रहे हैं। क्या हम इस खतरे को नजरअंदाज कर सकते हैं?
यह गर्मी केवल थकान और चक्कर तक सीमित नहीं। चिकित्सकों की चेतावनी है कि लापरवाही जानलेवा हो सकती है। गर्मी में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी से तीव्र गुर्दा चोट के मामले बढ़ रहे हैं, जिनमें कई बार डायलिसिस तक की जरूरत पड़ती है। जब शरीर का तापमान एक सौ चार डिग्री फारेनहाइट, यानी चालीस डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाता है, तो यह बाहरी गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पाता। खास तौर पर बुजुर्ग, शिशु, बाहरी कामगार, मानसिक रोगी, मोटापे से ग्रस्त, मधुमेह के मरीज, खराब रक्त संचार वाले और अत्यधिक दवा लेने वाले लोग सबसे अधिक संवेदनशील हैं। मौसम विज्ञान विभाग ने लोगों को सतर्क रहने, गर्मी से बचने, और शरीर में पानी की कमी से बचने की सलाह दी है। जरूरी हो तभी बाहर निकलें, मुंह पर कपड़ा बांधें, और दिन में कम से कम आठ से दस गिलास पानी पिएं। चिकित्सकों के अनुसार, गर्मी से किडनी फेल होने का खतरा बढ़ रहा है। हर साल गर्मियों में तीव्र गुर्दा चोट के मामले बढ़ते हैं, और अधिकांश में डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। क्या हम इन चेतावनियों को गंभीरता से लेंगे, या लापरवाही में अपनी जान जोखिम में डालेंगे?
अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक अत्यधिक गर्मी से डेढ़ करोड़ लोगों की जान जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों में लू ने दुनिया के हर महाद्वीप को प्रभावित किया है। जंगल की आग से हजारों लोगों की जान गई, और यूरोप में साठ हजार से अधिक मौतें दर्ज हुईं। जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक तापमान एक दशमलव पांच डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ेगा, जिससे बाढ़, विनाशकारी गर्मी और भयंकर तूफान बढ़ेंगे। फ्रांस के नीति अनुसंधान संस्थान के चिकित्सक हेनरी वाइसमैन चेतावनी देते हैं कि तीन डिग्री तापमान बढ़ने पर कई शहर समुद्र में डूब जाएंगे। समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म होने से चक्रवात और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगी। समुद्र का अमलीकरण बढ़ेगा, जिससे मूंगे की चट्टानें, खोल वाले जीव और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकते हैं। समुद्री जैव विविधता और मछलियों पर खतरा मंडराएगा। क्या हम इस तबाही को रोकने के लिए तैयार हैं?
पृथ्वी आयोग, नानजिंग विश्वविद्यालय और एक्सेटर विश्वविद्यालय के ग्लोबल सिस्टम संस्थान के शोध से खुलासा हुआ है कि बढ़ती गर्मी से दुनिया में दो अरब और भारत में साठ करोड़ लोग खतरे में हैं। विश्व की बाईस से उनतालीस फीसदी आबादी गर्मी के दुष्प्रभाव झेलेगी। यदि तापमान में दो दशमलव सात डिग्री की वृद्धि होती है, तो भारत सबसे अधिक प्रभावित होगा। छह करोड़ लोग पहले ही खतरनाक गर्मी के संपर्क में हैं, और यह आंकड़ा भविष्य में बढ़ेगा। इस दशक के अंत तक औसत वार्षिक तापमान उनतीस डिग्री सेल्सियस को पार करेगा, और दो अरब लोग भीषण गर्मी का सामना करेंगे। इससे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, गुर्दे और हार्मोनल प्रणाली प्रभावित होगी, जिससे अकाल मृत्यु और विकलांगता का खतरा बढ़ेगा। हर साल पचास लाख से अधिक लोग अत्यधिक तापमान के कारण असमय मर रहे हैं। गर्मी से वाष्पीकरण की दर बढ़ रही है, मिट्टी की नमी कम हो रही है, और कई क्षेत्र सूखे की चपेट में आ रहे हैं। इससे फसलों की पैदावार घटेगी, खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी, और गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। जलाशयों में पानी का भंडारण कम होने और भूजल का स्तर गिरने से जल संकट गहराएगा।
इस संकट के मूल में ग्लोबल वार्मिंग, अलनीनो, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा, वनों का तेजी से विनाश, कार्बन फ्लोरोकार्बन गैसों का उत्सर्जन, और जीवाश्म ईंधन का दहन जैसे कारण हैं। इन पर अंकुश लगाए बिना गर्मी को नियंत्रित करना असंभव है। हमें सादा जीवन अपनाना होगा। अधिकाधिक वृक्षारोपण, प्लास्टिक के उपयोग में कमी, अक्षय ऊर्जा का उपयोग, और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा। प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना और उसके संसाधनों की रक्षा करना हमारा ध्येय बनना चाहिए। यदि हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो हमारी धरती का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रहने योग्य ग्रह छोड़ पाएंगे?
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

