गाय के संवर्द्धन के लिए खुली गौ चराई की जमीन और ओरण अत्यंत आवश्यक है। मैं पिछले कुछ दिनों से गायों को चरा रहा हूँ। इस दौरान देखा कि गाय चराई से बहुत आनंदित होती है और दूध भी अधिक देती है। गाय खुली चराई से ही सबसे अधिक आनंदित लगती है। आज कल लोग मशीन से बनी हुई बहुत सारी चीजें गाय को खिलाते हैं। जिससे थोड़ा दूध जरूर बढ़ जाता है, लेकिन गाय का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। खुली चराई वाली गाय का दूध बहुत विशिष्ट गुण वाला पोषक होता है।
मुझे बचपन से ही खेती और गौ-पालन में रुचि रही है, इसलिए अब भी जब कभी अवसर मिलता है, तो गौ पालन, खेती का काम, तुलसी रोपण-संरक्षण करता हूँ। इससे मुझे तो बहुत आनंद आता ही है, पर उससे भी ज्यादा आनंद गाय को खुली चराई में आता है।
गाय के खुले चरने से उसके शरीर पर रहने वाले परजीवियों को पक्षी उनके पास बैठकर, चुन चुन कर खाते रहते है। प्राकृतिक जीवन के क्रम में गाय के साथ हमारा बहुत गहरा रिश्ता था, लेकिन गाय के लिए बने कानूनों ने गाय के जीवन को अधिक जटिल बना दिया है। कानूनों की आवश्यकता वहाँ होती है, जहाँ मनुष्य लालची होकर बहुत जटिलता से जीवन जीता है। कई बार जिसके संरक्षण के लिए कानून बनता है, उसी के लिए घातक हो जाता है, इसलिए गाय पालन के लिए गोचर की जमीन और ओरण चाहिए जिससे गाय अपनी आजादी से चर सके।
राजस्थान में हमारे तरुण आश्रम में पहले खेती की जमीन नहीं थी, लेकिन 40 साल के बाद अब थोड़ी खेती की जमीन बन गई है, क्योंकि पहले दिन से ही गाय हमारे आश्रम में रहती थी। गाय के गोबर से भी मिट्टी बनी हैं। तरुण आश्रम के कार्यकर्ताओं ने जहां मिट्टी नहीं थी, केवल पत्थर थे, वहाँ के पत्थरों को निकालकर, बनाने में ढेंचा, अरहर, सरसों, तरा ,तिल, मूंग , उड़द आदि की फसल की है, जिसकी मिट्टी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इस मिट्टी को बनाने में आश्रम की ऋषि खेती और वृक्ष खेती की भी अहम भूमिका रही है। यह मिट्टी दूसरों के खेतो जैसी तो नहीं हैं लेकिन फिर भी अब छोटे छोटे पत्थरों के साथ मिट्टी जैसी दिखती है। यह अत्यंत कम पानी का क्षेत्र है।
पहले जब यहां मैंने काम शुरू किया था तो भैसें नहीं थीं और गाय भी बहुत कम थी , बकरी और कुछ ऊंट ही दिखते थे। आज कल तो गाय की जगह भैंस ने ले ली है। भैंस भी ठीक है, लेकिन गाय कठिन परिस्थिति में भी हमारे पोषण के लिए अतिगुणकारी बनी रहती है, इसलिए गाय का पालन आजादी से उसकी चराई के साथ जुड़ा है। यह जलवायु परिवर्तन के संकट में भी अपने आपको टिकाए रखने वाली, करुणामय प्राणी है। इसका पालन अहिंसामय है। इसलिए इसे अभी भी पालने और पोषण करने की अत्यंत आवश्यकता है।
मैं गाय चराते हुए बहुत आनंदित होता हूँ, क्योंकि गाय खुले में चर कर बहुत आनंदित होती है। अतः खुली चराई गाय के आनंद और संवर्द्धन के लिए जरूरी है। जब तक गायों को खुली चराई थी, ओरण थे, तब तक गाय हमारी माता के समान हम से कुछ भी लिए बिना अपना सब कुछ देती रहती थी। क्योंकि उसे चरने की जगह तथा पेड़ों के पत्ते खाने के पर्याप्त अवसर मिलते थे। विविध प्रकार की वनस्पतियां खाकर, हमारे लिए औषधिमय दूध देती थी।
अब हमें गाय के पोषण के लिए बाजार चाहिए और हमारे पोषण के लिए भी बाजार जरूरी हो गया है। बाजार तो सदेव ही हिंसक और लुटेरा होता है। भारत में गौ वध रोकने के लिए बड़ा कानून है, लेकिन गो-मांस का बड़ा व्यापारी भारत देश ही है। कानून से तो हमारी गाय बाजार मुक्त है लेकिन व्यवहार में गाय के सभी अंगों प्रत्यंगो का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली के चारों तरफ नई तकनीक के बूचर खाने दिन प्रतिदान बढ़ते जा रहे है और गाय के गोचर और ओरण सुकुड़ते जा रहे हैं। यह कुछ गांवों में तो बिलकुल खत्म हो गए हैं। अब गाय के लिए आनंद और चराई दूर – दूर तक नजर नही आती।
*प्रख्यात जल संरक्षक और पर्यावरणविद