– स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती*
गौसेवा और पंचगव्य से जीवन और समाज पवित्र बनता है
गौमाता में विराजमान पवित्रता ही जीवन की सच्ची पूंजी है। जैसे प्रकाश के अभाव में अंधकार फैल जाता है, वैसे ही पवित्रता के बिना मनुष्य अपवित्र हो जाता है। गौमाता पूर्णतः पवित्र हैं, और उनके प्रत्येक अंग, यहां तक कि उनका मल-मूत्र भी, शुद्धता का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि उनके संरक्षण और सेवा में जीवन, समाज और वातावरण की शुद्धता बनी रहती है। मानव जीवन अस्थिर है—स्नान, पूजा और भक्ति के क्षणों में पवित्र रहना संभव होता है, पर गौमाता की पवित्रता स्थायी और अविचलित है।
गौमाता न केवल जीवनदायिनी हैं, बल्कि ज्ञान, आयुष्य और पोषण की प्रतिमूर्ति भी हैं। जैसे सूर्य की किरणों में प्रकाश, पोषण और आयुष्य के तीन पहलू होते हैं, वैसे ही गौमाता अपने ककुद से दूध, दही और घृत प्रदान करती हैं। प्राचीन काल में भोजन से पहले गौघृत ग्रहण करना नियम था, क्योंकि पंचगव्य के सेवन से पाप और रोग दोनों से मुक्ति संभव है। गौमाता जहां रहती हैं, वहां नकारात्मकता का प्रवेश नहीं होता।
सतयुग में राजा गय की कथा गौमाता और पवित्रता के महत्व को स्पष्ट करती है। राजा गय ने भगवान विष्णु की भक्ति की और पूरी तरह पवित्र बन गए। उनकी भक्ति और शुद्धता के कारण उनके आस-पास के दुष्ट भी पवित्र हो गए। यमराज का दरबार खाली होने लगा। देवताओं ने गयासुर से यज्ञ के लिए उनका शरीर मांग लिया, और उस भूमि पर यज्ञ संपन्न हुआ। भगवान ने वरदान दिया कि जो भी इस भूमि पर आकर तर्पण करेगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी। यही कारण है कि गया और गौमाता दोनों को पवित्र माना गया है।
गौमाता के मूल स्थान बिहार में तीन गौप्रजातियां—बछौर, पूर्णिया और गंगातिरी—धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर हैं। छह वर्ष पहले इनकी संख्या मात्र 1500 थी। वर्तमान समय में गौमाता की स्थिति अत्यंत चिंतनीय है। मानव जीवन केवल सत्कर्मों का परिणाम नहीं है, बल्कि भगवत्कृपा का भी फल है। 84 लाख योनियों में भटकते जीव को मानव शरीर केवल धर्मानुसार जीवन व्यतीत करने और गुरु-गौसेवा हेतु मिलता है।
गौमाता के महत्व को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि 33 कोटी देवी-देवताओं की आश्रय स्थली उनके मूत्र में गंगा और गोबर में लक्ष्मी का वास करता है। गौमाता केवल दूध के लिए नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और जीवन की सार्थकता का केंद्र हैं। उनके संरक्षण में ही जीवन, समाज और संस्कृति की पवित्रता बनी रहती है। देशी गायों का विनाश और हानिकारक दूध का प्रसार आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर खतरा है।
ब्रह्मा जी ने मानव को सहज जीवन यापन हेतु गौमाता प्रदान की थी। गौमाता हमारे समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति में समर्थ हैं। उनके विनाश से न केवल स्वास्थ्य प्रभावित होगा, बल्कि संस्कृति और धर्म भी संकट में आएगा। कंपनियों ने पारंपरिक अमृत गौदुग्ध के मार्ग को बाधित कर हानिकारक दूध का प्रसार शुरू कर दिया है, ठीक उसी तरह जैसे पहले पानी की कंपनियों ने गंगा और गांवों के जल स्रोतों को दूषित किया था।
इतिहास में गौरक्षा का संघर्ष स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। मंगल पांडेय और मातादीन भंगी ने ब्रिटिशों के खिलाफ गौहत्या के विरोध में अपने प्राण न्योछावर किए थे। स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत गौभक्तों ने ही की थी, और यही गौरक्षा का संदेश आज भी प्रासंगिक है।
स्वतंत्र भारत में गौहत्या भारतीयों के माथे पर सबसे बड़ा कलंक बन चुकी है। इसके बावजूद कई राजनीतिक दल गौहत्या के उद्योग को बढ़ावा दे रहे हैं, बूचड़खानों को लाइसेंस और सब्सिडी दे रहे हैं। यह न केवल धर्मनिष्ठ सनातनधर्मियों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि समाज और भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी गंभीर खतरा है। इस समय, मतदान का प्रयोग ही इस कलंक को दूर करने का सबसे प्रभावी उपाय बनता है।
गौमतदाता संकल्प यात्रा में गया, बांका, जमुई और नवादा में विशाल सभाएं आयोजित हुईं। गया में भगवद्भक्तों द्वारा चरणपादुका पूजन और रामानुज मठ में रात्रि विश्राम का आयोजन हुआ। बांका में हजारों भक्तों ने भाग लिया, जमुई और नवादा में शोभायात्राएं निकाली गईं। नवादा में बंधन पैलेस में सभा में यह भी बताया गया कि गौमूत्र में गंगा और गोबर में लक्ष्मी का वास होता है, जो गौमाता के महात्म्य को दर्शाता है। महापूजा और कन्या, बटुक, सुवासिनी, दंपति पूजन सहित अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए।
यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण प्रभारियों की नियुक्ति भी की गई। मिथिला क्षेत्र के प्रभारी के रूप में श्री सुजीत चौधरी और अंग क्षेत्र के प्रभारी के रूप में श्री दीपक खेतान की घोषणा की गई। उन्हें माला और उपवस्त्र प्रदान कर आशीर्वाद दिया गया। यात्रा में स्वामी प्रत्यक्चैतन्यमुकुंदानंद गिरी जी महाराज, देवेंद्र पाण्डेय, स्वामी श्रीनिधिरव्ययानंद सागर, शैलेन्द्र योगी और भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
गौमाता की पवित्रता और संरक्षण पर जोर देते हुए यह स्पष्ट हुआ कि यह केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि हर हिन्दू का परम धर्म है। गौरक्षा के माध्यम से ही सनातन धर्मियों को एकजुट होकर सशक्त होना संभव है। पंचगव्य का सेवन, गौसेवा, और उनके संरक्षण के प्रयास ही जीवन और समाज को पवित्र और सुरक्षित बनाए रख सकते हैं।
गौमतदाता संकल्प यात्रा का संदेश स्पष्ट है: गौमाता का संरक्षण, धर्म और संस्कृति की रक्षा, और समाज में पवित्रता का प्रवाह बनाए रखना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। यही मार्ग आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी धर्म, संस्कृति और जीवन की पवित्रता सुनिश्चित करता है।
*यह लेख ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के उन भाषणों का संकलन है, जो उन्होंने 21–24 सितंबर, 2025, के दौरान गया, बांका, जमुई, और नवादा की अपनी गौमतदाता संकल्प यात्रा सभाओं में दिए।
प्रस्तुति: संजय पाण्डेय, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के मीडिया प्रभारी।

