– ज्ञानेन्द्र रावत*
गौ वंश आधारित अर्थ व्यवस्था पर संगोष्ठी दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज में संपन्न
दिल्ली: गाय हमारे आध्यात्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक,आर्थिक और सामाजिक जीवन की आधार शिला है। पंचगव्य हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। इनके प्रयोग की हमारे देश में लम्बी परंपरा रही है।इसका संरक्षण राष्ट्रीय हित और पर्यावरणीय,पारिस्थितिक व सामाजिक न्याय के अनुरूप है। यह देश के सामाजिक-आर्थिक-पारिस्थितिक विकास का महत्वपूर्ण स्रोत है।
गौ ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की धुरी है। युगों-युगों से यह हमारे अर्थतंत्र का आधार रही है। संविधान के अनुच्छेद 48 के तहत गौहत्या प्रतिबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी वैधता को स्वीकारा है। लेकिन हालात इसके विपरीत हैं और गौहत्या देश में आज भी जारी है। इस पर पूरी तरह पाबंदी समय की मांग है अन्यथा गौसंरक्षण बेमानी है। जबकि गौ शक्ति हकीकत में एक खुशहाल और संपोषित भारत का आधार है।
पर्यावरणीय दृष्टि से देखें तो जहांतक गाय के गोबर का सवाल है, इसमें एन्टीसैप्टिक, एन्टी रेडियोएक्टिव और एन्टी थर्मल तत्व पाये जाते हैं। गाय के गोबर के उपले कहें या कण्डे जलाने से जहां खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं, वहीं तापमान एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ता है। जरूरत गाय के महत्व को पहचानने की है। लेकिन कृषि प्रधान देश भारत में गाय और गौ वंश आज भी उस अधिकार से वंचित है।
विगत दिवस नयी पीढी़ को भारत की परंपरागत अर्थ व्यवस्था से परिचित कराने के उद्देश्य से दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर स्थित हंसराज कालेज के सेमिनार हाल में संभव इंटर नेशनल फाउण्डेशन की सह संस्थापिका साध्वी प्रज्ञा भारती और हंसराज कालेज की प्राचार्या डा. रमा के सहयोग से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसके आयोजन में भारत सरकार के पूर्व सचिव और वरिष्ठ आई ए एस डा० कमल टावरी व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया शिक्षिका संघ के संस्थापक डा० रामजीलाल जांगिड की भूमिका उल्लेखनीय रही। संगोष्ठी में देश के जाने-माने शिक्षाविदों, विचारकों, समाज शास्त्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाजसेवियों और संचार माध्यमों के विशेषज्ञों की मौजूदगी विशेष रूप से उल्लेखनीय थी।
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एम एम एच कालेज, गाजियाबाद के प्रोफेसर समाज विज्ञानी डा० राकेश राणा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गाय का महत्वपूर्ण स्थान है। शास्त्र, पुराण और धर्मग्रंथ इसके जीवंत प्रमाण हैं। बीते दस हजार वर्षों का इतिहास प्रमाण है कि गाय का महत्व केवल उसके पौष्टिक दूध के कारण ही नहीं है, उसके बैलों से मिलने वाली शक्ति और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बनाये रखने के कारण भी है। कृषि और उससे जुडी़ गतिविधियां गाय पर ही निर्भर हैं। जहांतक ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का सवाल है, उसका भविष्य जितना गाय पर निर्भर है, सिंचाई को छोड़कर उतना किसी अन्य पर नहीं है। गांधीजी भी देश की सुख-समृद्धि गाय से जुडी़ ही मानते थे।
विश्व शांति और अहिंसा को प्रोत्साहन देने के क्षेत्र में अग्रणी और दिल्ली के प्रख्यात चिकित्सा विशेषज्ञ व सफदरजंग अस्पताल के पूर्व विभागाध्यक्ष डा० दीपचंद्र जैन ने कहा कि गाय के दूध के औषधीय महत्व को नकारा नहीं जा सकता। वह जगजाहिर है। यह भी कि इसमें मौजूद ए 2 नामक औषधीय तत्व न केवल आर्थराइटिस व मानसिक तनाव रोकने में सहायक हैं बल्कि मधुमेह (शुगर) को प्रभाव को कम करने में भी प्रभावी भूमिका निबाहते हैं।
हंसराज कालेज की प्राचार्या डा. रमा ने वर्तमान में गौ संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि हमें जीवन में गौ उत्पादों के सेवन को प्राथमिकता देनी चाहिए तभी गौ आधारित अर्थ व्यवस्था में सुधार व उसके उत्तरोत्तर विकास की आशा की जा सकती है। अंत में संगोष्ठी के आयोजक व अंतरराष्ट्रीय मीडिया शिक्षक संघ के संस्थापक अध्यक्ष डा. रामजीलाल जांगिड ने अपने आशीर्वचन में संगोष्ठी की आवश्यकता-उपयोगिता पर प्रकाश डाला और उन परिस्थितियों की चर्चा की जिनमें इस संगोष्ठी के आयोजन की रूपरेखा बनी और भूमिका का निर्धारण किया गया। उन्होंने सभी वक्ताओं, अतिथियों व उपस्थित जनों के साध आयोजन में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाले सहयोगियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि इसी भांति हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी हमें आपका स्नेह व सहयोग मिलता रहेगा।
पूर्व आई ए एस व केन्द्र सरकार में सचिव रहे और पंचगव्य विद्यापीठम के उपकुलपति डा. कमल टावरी ने अपने सम्बोधन में गौवंश के पुनर्मूल्यांकन व इस संदर्भ में जागरूकता पर बल देते हुए कहा कि आज समय की मांग है कि इस दिशा में स्वयंसेवक तैयार किये जायें और गौ उत्पादों का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाये। उसी हालत में गौ वंश आधारित अर्थ व्यवस्था की गति में सुधार लाया जा सकता है।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद