मां बनना एक महिला के लिए जीवन का सबसे सुखद अनुभव है, जिसका वर्णन शब्दों में करना असंभव है, लेकिन धरती का बढ़ता तापमान मां की कोख में पल रही जिंदगी के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी अब गर्भवती महिलाओं के लिए जानलेवा भी साबित हो रही है।
गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई बदलाव होते हैं। जैसे-जैसे गर्भ में बच्चा बढ़ता है, वह फेफड़ों और रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालता है, जिससे गहरी सांस लेना और रक्त प्रवाह बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इस दौरान शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है, जिससे मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है और अंदरूनी गर्मी अधिक उत्पन्न होती है। गर्मी के कारण अत्यधिक पसीना आने से डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है, जिससे चक्कर आना, अत्यधिक थकान, और गंभीर मामलों में समयपूर्व प्रसव की स्थिति पैदा हो सकती है। पिछले पांच सालों में दुनिया के 90% देशों में गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है।
क्लाइमेट सेंट्रल की ताजा रिपोर्ट में 2020 से 2024 के बीच 247 देशों और 940 शहरों के तापमान का विश्लेषण किया गया। इस विश्लेषण से पता चला कि हर साल कुछ ऐसे दिन होते हैं जब तापमान अपने इतिहास के 95% से अधिक होता है। इन “हीट रिस्क डे” को गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक माना जाता है। शोध विशेषज्ञ डा. ब्रूस बेक्कर बताते हैं कि इन दिनों में अस्थमा, सांस की बीमारियां, हाई ब्लड प्रेशर, जेस्टेशनल डायबिटीज, भ्रूण के विकास में रुकावट, अत्यधिक थकान, और अचानक अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ सकती है। गंभीर मामलों में गर्भ में शिशु की मृत्यु तक हो सकती है। यदि गर्भवती महिला प्रदूषित हवा में सांस लेती है, तो हवा में मौजूद बारीक कण फेफड़ों और हृदय पर गंभीर प्रभाव डालते हैं, जिससे गर्भस्थ शिशु का दिमागी विकास प्रभावित हो सकता है। इसका असर महिला के स्वास्थ्य पर जिंदगीभर रह सकता है। अगर गर्भवती महिला का शरीर का तापमान 10 मिनट से अधिक 102 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता है, तो हीट स्ट्रोक और हीट थकावट का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे सीधी धूप से बचें, अधिक समय घर में ठंडे स्थान पर रहें, कूलर या एयर कंडीशनर का उपयोग करें, ढीले और हल्के कपड़े पहनें, और धीमी गति से चलें। डिहाइड्रेशन से बचने के लिए खूब पानी, नारियल पानी, और नींबू पानी पिएं। पौष्टिक और हल्का भोजन करें, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे। लेकिन यह समस्या केवल व्यक्तिगत सावधानियों से हल नहीं होगी। उच्च तापमान का सबसे अधिक असर उन क्षेत्रों पर पड़ता है, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से कमजोर हैं, जैसे कैरेबियाई देश, दक्षिण अमेरिका, पैसिफिक द्वीप, सब-सहारा अफ्रीका, और दक्षिण-पूर्व एशिया। डा. ब्रूस बेक्कर चेतावनी देते हैं कि चरम गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। डा. क्रिस्टीना डाल कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान एक दिन की भीषण गर्मी भी बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है।
यह केवल मौसमी बदलाव नहीं, बल्कि हमारी नीतियों, ऊर्जा स्रोतों, और लापरवाही का नतीजा है। कोयला, तेल, और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग इस गर्मी की सबसे बड़ी वजह है। कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की उप निदेशक सामंथा बर्गेस का कहना है कि धरती को बचाने के लिए जलवायु प्रणाली में हो रहे बदलावों को समझना और उनका माकूल जवाब देना जरूरी है। अगर हम अपनी आने वाली नस्लों को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद करना होगा।
धरती का बढ़ता तापमान न केवल पेड़-पौधों, फसलों, और पशु-पक्षियों के लिए संकट का सबब बन रहा है, बल्कि इंसान का चैन छीन रहा है, उसकी नींद उड़ा रहा है, और तनाव बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है। बीते दो दशकों में तापमान में वृद्धि ने हर व्यक्ति की औसतन 44 घंटे की सालाना नींद छीन ली है। डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के शोध से खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते शहरीकरण के कारण तापमान में हो रही बढ़ोतरी इंसान की नींद में खलल डाल रही है। अध्ययन में पाया गया कि तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण 10,000 से अधिक लोगों ने पर्याप्त नींद की कमी महसूस की। यह स्थिति अमेरिका, यूरोप जैसे उच्च आय वाले देशों के अलावा एशिया महाद्वीप में भी बड़े पैमाने पर देखी गई है।
इंसान का दिमाग गर्मी के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, दिमाग शरीर का तापमान नियंत्रित करने की प्रक्रिया को तेज करता है और तनाव के तंत्र को जल्दी सक्रिय कर देता है। यह स्थिति अच्छी नींद के लिए अनुकूल नहीं है और स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित होती है। कम समय तक ऐसा होने पर थकान और दुर्घटना का जोखिम बढ़ता है, जबकि लंबे समय तक नींद की कमी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, रिकवरी तंत्र में बाधा आती है, और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, वजन बढ़ने, मधुमेह, हृदय रोग, और अल्जाइमर जैसी न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। शोधकर्ता वैज्ञानिक कैल्टन माइनर के अनुसार, शरीर के तापमान को नियंत्रित करने वाले न्यूरॉन्स और नींद का गहरा संबंध है। गर्मी में अत्यधिक पसीना आने से शरीर को अतिरिक्त पानी की जरूरत होती है। लू की स्थिति में हालात और बिगड़ जाते हैं, जिससे नींद और स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। शहरी वातावरण में बढ़ती गर्मी में शरीर का तापमान नियंत्रित करना आसान नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी चुनौती है। अभी भी समय है, लेकिन अगर अब कदम नहीं उठाए गए, तो हालात और बिगड़ेंगे, और तब उन पर काबू पाना आसान नहीं होगा।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

