कोटा: राजस्थान के भीलवाड़ा एवं बूंदी जिले में 40 किलोमीटर बहने वाली चम्बल की सहायक एरू नदी खनन प्रभावित क्षेत्र में मलबे के नीचे दबकर मर गई थी।
पर्यावरणविद एवं की स्वयं सेवी संस्था बूंदी जल बिरादरी के अध्यक्ष विट्ठल कुमार सनाढ्य के अनुसार यह नदी भीलवाड़ा जिले के तिलस्वा महादेव नामक स्थान से 6 गांव के बाद बूंदी के लामाखोह से तीन गांव में गुजरती हुई अम्बारानी ब्लॉक में चंबल नदी जो मुकुंदरा टाइगर रिजर्व का हिस्सा है वहां जाकर मिल जाती थी।
इस नदी को पुनर्जीवित करने के लिए विट्ठल कुमार सनाढ्य ने जलपुरुष के नाम से विख्यात एवं स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज तथा मग्सय्सय पुरस्कार विजेता जल विशेषज्ञ डॉ राजेंद्र सिंह की प्रेरणा से राजस्थान उच्च न्यायालय में 2018 में जनहित याचिका दायर की थी।
तदोपरांत 5 साल बाद 2023 में राजस्थान उच्च न्यायालय के डबल बेंच का इस जनहित याचिका पर फैसला आया कि नदी से मलबा हटाया जाए। बूंदी जिला कलेक्टर ने भी विषय की गहराई को समझते हुए खान विभाग के जिला खनन फाउंडेशन ट्रस्ट से इस कार्य के लिए 10 करोड़ रुपए जारी करने की स्वीकृति प्रदान की और मलबा हटाने का काम शुरू हो गया।
अब जब एरू नदी को पुनर्जीवित करने का काम शुरू हो गया है, लगभग ढाई किलोमीटर क्षेत्र में मलबा हटाते ही एरू नदी ने दर्शन देना शुरू कर दिया है और इन दिनों मलबा हटाने का काम जारी है।
जहां से मलबा हटाने का काम हो रहा है वहां नदी ऐसे झांक रही है जैसे कब्र में सोया हुआ मनुष्य जीवित हो उठा हो। उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने भी गंगा नदी को जीवित इकाई माना है था परन्तु उच्चतम न्यायालय ने उसके इस फैसले को निरस्त कर दिया था।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं संयोजक चम्बल संसद