दो टूक: छात्रों की आत्महत्याओं पर ये कैसा मौन?
कोटा: नामी इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन हेतु कोचिंग के लिए विख्यात कोटा शहर में बढ़ रही छात्रों की आत्महत्या शायद बहुत बड़ी चिंता का विषय नहीं है। चिंताओं और घड़ियाली आंसू से हम कब ऊपर उठेंगे? कभी किसी माननीय को इस बारे में बोलते या बैठकर चर्चा करते देखा न सुना।
आत्म हत्या केवल मनोवैज्ञानिक कारण होता तो कोई डाक्टर दवा दे देता! एक चीज जो छूट रही है उस की ओर ध्यान आकर्षित करने का मेरा प्रयास है जिसे शायद जिला प्रशासन और कोचिंग संचालक अभिभावक सभी भूल रहे हैं। पढ़ाने की हैसियत नहीं होने के बावजूद या योग्यता कम होने के बावजूद डॉक्टर, इंजीनियर बनाने का नकलची स्वप्न, फाइनेंस कंपनियों की लोन देने के नाम पर लूट के केंद्र हर कोचिंग संस्थान में बैठे हैं। जबरन कर्जदार बनाने के प्रयासों, किश्त नहीं चुकी तो धमकियां ये सब कारण है आत्महत्याओं के पीछे।
अभिभावक अपनी खेती की उपजाऊ जमीन को बेचकर , जेवरात गिरवी रख कर क्यों डाक्टर, इंजीनियर बनाने का प्रयास कर रहे हैं? ये सवाल कोई क्यों नहीं पूछ रहा?
कर्जदार पिता की भावनाओं को बच्चे समझकर सहन नहीं कर पा रहे हैं । कृपया फाइनेंस कंपनियों की लूट को कोचिंग संस्थानों में प्रवेश से रोका जाए ।ऐसे कुछ केस हमारी जानकारी में आए हैं जब अभिभावकों को जबरन कर्जदार बना दिया गया बच्चे कैसे पढ़ेंगे।
उद्देश्य सिर्फ यही बताना है कि आत्महत्या की समस्या के समाधान का प्रयास तेज गति से होना चाहिए जो अभी हो नहीं रहे।
हम पत्रकारगण भी शायद बाजारवाद की निर्मम व्यवस्था के शिकार हैं कोचिंग या कोई भी व्यवसाय सही तरीके से चले उस पर किसी को आपत्ति नहीं है सकती, लेकिन यदि पढ़ने वाला युवा आए दिन आत्महत्या कर रहा है तो गहरी चिंता का विषय है इस पर कोई भी राजनीतिक दल , प्रशासन सामाजिक संगठन आध्यात्मिक संस्थाएं सभी मौन है। आत्महत्याओं का समाधान मनोवैज्ञानिक के पास नहीं है, समाधान राजनैतिक, सरकारी और सामाजिक स्तर पर होना चाहिए। केवल घड़ियाली आंसू ही बहाए जा रहे हैं।
– स्वतंत्र पत्रकार