धीरेन्द्र मजूमदार
पुण्यतिथि पर विशेष
– रमेश चंद शर्मा*
धीरेन्द्र मजूमदार: एक इंजीनियर जो गांव का शास्त्री-मिस्त्री बना
धीरेन्द्र मजूमदार
जन्म – 10 सितम्बर, 1900
मृत्यु – 21 नवम्बर, 1978
धीरेन्द्र मजूमदार जिन्हें उनके हम उम्र साथी धीरेन्द्र भाई तथा युवा पीढ़ी धीरेन्द्र दा के नाम से पुकारते थे। उन्हें शास्त्री और मिस्त्री दोनों का खिताब प्राप्त रहा। साधारण से साधारण, विशेषज्ञों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ से वरिष्ठ जन को अपनी बात समझाने की क्षमता रखते थे। श्रम, श्रमिक, श्रमजीवी, श्रम संस्कार के प्रति विशेष रुचि, सक्रियता, कुशलता, समझदारी रखते थे। वे एक ऐसे समाज का सपना रखते थे कि हर हाथ को काम, हर शरीर को आराम और मन को आनन्द प्राप्त हो।
अपनी जवानी में ही गांधीजी के सिपाही बनकर विचार के प्रति अपने आपको समर्पित कर दिया। आजादी के राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग प्राप्त कर 1920 के आस-पास आचार्य कृपलानी के साथ कालेज की शिक्षा छोड़कर आजादी के राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। आचार्य कृपलानी द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा जो आगे चलकर काशी विद्यापीठ में परिणत हो गया। रचनात्मक सोच-विचार, चिंतन-मनन, ज्ञान, कर्मठता, संवाद, संपर्क, संवेदना उनके जीवन का अभिन्न अंग रहा। राष्ट्रीय आंदोलन में रचनात्मक कार्यों में लोगों को विशेषकर युवा पीढ़ी को जोड़ना, शामिल करना। उनका उपयोगी, आवश्यकतानुसार सही सटीक सार्थक शिक्षण-प्रशिक्षण करना।
इसी दौरान खादी कार्य के केन्द्र वर्तमान गांधी आश्रम उत्तरप्रदेश की स्थापना फैजाबाद के रणीवा, बनारस की सेवापुरी, इलाहाबाद के बरनपुर, बिहार के मुंगेर के पास खादी ग्राम में, पूर्णिया तथा दरभंगा जिलों में समग्र ग्राम सेवा तथा श्रम भारती प्रयोग केन्द्र चलाये। समग्र ग्राम सेवा के तो दादा विशेषज्ञों के भी विशेषज्ञ थे। इसलिए उन्हें समग्र ग्राम सेवा का शास्त्री और मिस्त्री दोनों ही माना जाता था। समग्र ग्राम सेवा पर उन्होंने सरस साहित्य तैयार किया। समग्र ग्राम सेवा पर उनकी पुस्तकें आज भी उतनी ही मार्गदर्शक, उपयोगी, प्रासंगिक है। कितने ही लोगों ने दादा से इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर इस क्षेत्र में शानदार कार्यों, प्रयोगों को अंजाम दिया। दादा के योगदान को सदैव याद रखा जाएगा।
गांधीजी के निर्वाण के बाद प्रसिद्ध संस्था अखिल भारतीय चरखा संघ का अध्यक्ष पद दादा धीरेन्द्र मजूमदार को सौंपा गया। 1948 में गांधी जनों का एक विशेष मिलन गांधीजी के बाद क्या हो का आयोजन सेवा ग्राम आश्रम में हुआ जिसमें देश के जाने-माने व्यक्ति शामिल रहे। सभी ने अपनी-अपनी बातें रखीं। विनोबा भावे की सलाह पर अनेक रचनात्मक संस्थाओं का विलयन कर जब सर्व सेवा संघ बना जिसे अखिल भारतीय सर्वोदय मंडल भी कहा जाता है। उसके पहले अध्यक्ष के लिए आदरणीय श्री धीरेन्द्र मजूमदार को जिम्मेदारी सौंपी गई। वे विचार, शिक्षण-प्रशिक्षण, रचना-सृजन, संगठन और संघर्ष की दृष्टि से क्रांतिकारी आचार्य थे।
60 साल की अवस्था पार करते ही दादा ने संस्था मुक्त हो लोक गंगा यात्रा प्रारम्भ कर दी। धीरेन्द्र दा जहां पहुंचते वहां स्थानीय लोक शक्ति का उभार शुरू हो जाता। कार्यकर्ता निर्माण में तो उनका मुकाबला ही नहीं था। धीरेन्द्र दा की लोक गंगा यात्रा राजस्थान पहुंची तो वहां जोधपुर के आगे जैसलमेर के रास्ते पर सुचेता कृपलानी केन्द्र की स्थापना का कदम उठाया। जिसे प्रारंभ में राजस्थान की पहली महिला सरपंच छगन बहन एवं त्रिलोक चंद गोल्छा ने प्रारंभ किया। लक्ष्मी चंद त्यागी एवं शशी बहन युगल ने इसे आगे बढ़ाया। आज कल भी वहां कार्य चल रहा है, चाहे स्वरुप बदल गया है। देश भर में गांधी विचार की ज्योति प्रज्ज्वलित करने का अद्भुत पराक्रम किया। जिसका उनकी देह मुक्ति के साथ ही समापन हुआ।
विनोबा भावे जी के भूदान अभियान के बाद बिहार के सहरसा में राष्ट्रीय स्तर का ग्राम स्वराज्य अभियान चलाया गया था। जिसमें देश भर से गांधी जी को मानने वाले, सर्वोदय, भूदान से जुड़े, सर्व सेवा संघ से जुड़े लोगों की भागीदारी रही। मैं अपना सौभाग्य समझता हूं कि इस राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में लंबे समय तक मुझे भी शामिल होने का सुअवसर मिला। जहां देश के नामी-गिरामी हस्तियों से परिचय एवं नजदीकी बनी। इसके दस्तावेज वितरण का कार्य मेरे जैसे युवा के जिम्मे सौंपा गया। वहां पर सर्व श्री आदरणीय धीरेन्द्र दा, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, सिद्धराज ढड्ढा, मनमोहन चौधरी, ठाकुरदास बंग, वैद्यनाथ बाबू, आचार्य राममूर्ति, चुन्नी काका, राजा बाबू, गोविन्दराव देशपांडे, जगन्नाथन, कृष्णाम्मा, निर्मला देशपांडे, शिवानंद भाई, सरला बहन, कांति भाई, कांता बहन, हरविलास बहन, टीके सौमैया, नरेन्द्रभाई, विद्या बहन, हरिवल्लभ परीख, नारायण देसाई, महेन्द्र भाई सप्रैस, नरेंद्र भाई, सुंदरलाल बहुगुणा, विमला बहन, कृष्ण चंद सहाय, महेन्द्र भाई संतजी, तपेश्वर भाई के साथ साथ अनेक युवा साथियों से संपर्क-संवाद बना।
स्वतंत्र विचारक, लोकशक्ति के उन्नायक, सर्वोदय जगत के प्रेरणास्रोत। वे खुलेआम घोषणा करते रहे कि संस्था वाद, जमात वाद, व्यक्ति वाद के बजाय सर्व की शक्ति उभरेगी तभी क्रांति का सही, सटीक, सार्थक प्रयास सफल होगा। हमारी क्रांति का लक्ष्य दंड शक्ति के स्थान पर शिक्षण शक्ति का अधिष्ठान है। त तंत्र मुक्त स्वतंत्र लोकशक्ति के लिए योग्य साधन की तलाश जरुरी है। खादी ग्रामोद्योग संघ की वृत्ति स्वतंत्र लोकशक्ति के अधिष्ठान की बनायी जा सके। “हमारी संस्थाओं के कार्यक्रम की गतिविधि इस ढंग से संयोजित की जाय कि कार्यक्रम की प्रक्रिया ही अपने को विघटित करने की व्यूह रचना बन जाय।” वह क्रांति के लिए एक नमूना बन सकता है। सर्वोदय कार्यकर्ताओं को ललकारता हूं कि उन्हें स्वावलंबी बनकर स्वतंत्र लोकसेवक के नाते अपने को खड़ा करना चाहिए। जब सर्वोदय मंडल और सर्व सेवा संघ इस प्रकार के स्वाधारित लोकसेवकों का संघ बनेगा, तभी वह इस क्रांति का वाहक बन सकेगा। उन्हें हर प्रखंड और हर पंचायत में एक-एक केन्द्र बनाकर बैठना होगा। तभी ग्राम स्वराज्य की क्रांति के लिए वे आलोक स्तम्भ का काम कर सकेंगे। क्रांति चाहे धार्मिक हो या सामाजिक, आर्थिक हो या चाहे राजनीतिक, उसकी प्रक्रिया में हमेशा स्वार्थ घुस ही जाता है। क्रांति में पद्धति और प्रक्रिया की चूक निहित स्वार्थ की सामग्री बन जाती है। फलस्वरूप आज के लोकतंत्र का लोक पूंजीपतियों के शोषण और अमलातंत्र तथा सैनिकतंत्र के दमन से त्रस्त है। लोकतंत्र की पद्धति लोकमूलक ही बन सकती है। जिसकी प्रक्रिया संचालित समाज की न होकर सहकारी समाज की होनी आवश्यक है। हमें सर्व की शक्ति खोजनी है, जमात की शक्ति नहीं।
आज के माहौल में जब देश, समाज, नागरिक किंकर्तव्यविमूढ़ जैसी स्थिति में नजर आ रहा है। संस्थाएं भी सुरक्षित, सुदृढ़ नहीं रह पा रही है। ऐसे में धीरेन्द्र दा जैसों की कमी विशेषकर खल रही है। यह वर्ष दादा की 125वीं जयंती का वर्ष चल रहा है। इस वर्ष में उनके विचारों पर आधारित विशेष कार्यक्रम व्यापक स्तर पर आयोजित होने चाहिए। उनके साहित्य को ऐसे मौके पर पुनः प्रकाशित करना चाहिए। जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। गोष्ठी, पदयात्रा, नाहक मिलन, व्याख्यान, सम्मेलन, बैठक, सभा, शिविरों का आयोजन किया जाना चाहिए।
दादा धीरेन्द्र को जानने, जांचने, समझने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इन शब्दों को दृष्टि में रखने की आवश्यकता है कि ग्राम सेवक कैसा हो? “ग्राम सेवक साहित्यिक या ज्ञान-विलासी जीवन बिताकर ग्रामवासियों को असली शिक्षा-ज्ञान नहीं दे सकता। उसके पास तो बसूला, हथौड़ा और फावड़ा होगा — किताबें तो थोड़ी सी ही होंगी। किताबें पढ़ने में वह कम-से-कम समय लगायेगा। लोग उससे मिलने आयें, तो उसे पड़े-पड़े किताबों के पन्ने उलटते न पायें, उन्हें तो वह औजार चलाता हुआ ही मिले। लोगों से वह कहेगा कि मैं आपकी सेवा करने आया हूं, पेट के लिए आप मुझे दो रोटियां दे दें। संभव है कि लोग उसका तिरस्कार करें, तथापि उसे अपने गांव में टिका तो रहने देंगे ही। और रोटी न दें, तो हरिजन भाई तो देंगे ही। उसे यदि भोजन मिल जाय, तो वह अपनी पैदा की हुई चीजों के बेचने आदि के झंझट में न पड़े, पर जहां लोगों का सहयोग न मिलता हो, वहां वह स्वयं कोई भी उद्योग करके उससे अपना गुजारा कर ले। शुरू-शुरू में तो जहां तक हो सके, किसी सामाजिक संस्था के कोष से थोड़ा सा पैसा लेकर वह अपना निर्वाह कर सकता है।” धीरेन्द्र दा इस पर खरे ही नहीं उतरते बल्कि इसको मांजते, तराशते, संवारते हुए सक्रियता, कुशलता, समझदारी से अपनाते हुए आगे बढ़ते हुए समाज के सामने प्रस्तुत करते रहे। उन्होंने अलग-अलग अनेकानेक प्रयोग भी किए।
आचार्य दादा प्रोफेसर कृपलानी एवं उत्तर प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री एवं निर्भीक होकर सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती सुचेता कृपलानी जैसे महत्वपूर्ण नेताओं से पारिवारिक संबंध होते हुए भी सहजता-सरलता, सादगी का शानदार जीवन जीया। कहने को बंगाली, जन्म से बिहारी, लंबे निवास से उत्तर प्रदेशी और श्रद्धा से सर्व भारत का कहने में कोई चूक नहीं है। दादा धीरेन्द्र में भावुकता, सहृदयता और यथार्थता कूट-कूट कर भरी हुई थी। इन सबके बावजूद पहली बार मिलने पर बहुत ही रूखे नजर आते थे। आपने सब्र से काम लिया तो कुछ समय बाद ही लगता कि शहद से भी ज्यादा मीठे और अपनेपन से भरपूर व्यक्तित्व है। सृष्टि की समझ और दृष्टि की सफाई के भंडार से भरे हुए थे धीरेन्द्र दा।
दादा कहते थे कि ग्रामीण विकास की योजनाएं बनाने वाले, चलाने वालों का भरपूर विकास हो रहा है। जिनके लिए बनाई है उनका दिनों-दिन शोषण, दोहन बढ़ता जा रहा है। पूंजीवाद और नौकरशाही का चारों ओर हर प्रकार से पैमाना बढ़ता जा रहा है। आजादी के आंदोलन में जनता में जो निर्भयता का निर्माण हुआ था, वह समाप्त ही नहीं हुआ है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा संत्रस्त हो रहा है। आज खंड में नहीं समग्रता में सर्वांगीण दृष्टि से काम की आवश्यकता है। योजनाएं ऊपर से थोपने के स्थान पर धरातल से बनानी होगी। गांव की शक्ति और साधन का उपयोग बढ़ाना होगा। हमारे देश में कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है, पर सच्चे, आत्मनिष्ठ कार्यकर्ता इने-गिने है, जो गांव में रहते है। आज अगर गिनती की जाय, तो नेताओं की संख्या उनसे कई गुना अधिक होगी।
इन्जिनियरिंग की शिक्षा पढ़ने वाला आजादी के आंदोलन में शामिल हो, गांधी मार्ग, सर्वोदय रचनात्मक समाज का सफल शिल्पी, शास्त्री और मिस्त्री बना।
आदरणीय दादा धीरेन्द्र मजूमदार की स्मृति को हार्दिक सादर जय जगत।
*लेखक विख्यात गांधी साधक हैं।

प्रिय श्री दीपक भाई,
हार्दिक सादर जय जगत।
आभार धन्यवाद शुक्रिया साधुवाद।
ग्लोबल बिहारी परिवार के सभी साथियों को शुभकामनाओं सहित हार्दिक सादर जय जगत।
रमेश चंद शर्मा