अंतरिक्ष में मलबा, धरती पर कहर: जलवायु की मार
जलवायु परिवर्तन जल्दी ही ग्रह के चारों ओर की कक्षा में अव्यवस्था भी पैदा करेगा। वह यह कि कोयले, तेल और गैस के जलने से होने वाली वैश्विक तापमान बढ़ोतरी जारी रहने के कारण सदी के आखिर तक धरती की निचली कक्षा में उपग्रहों के लिए उपलब्ध स्थान एक तिहाई से लेकर 82 फीसदी तक कम हो जायेगा। यह कार्बन प्रदूषण की फैलने की मात्रा पर निर्भर करेगा। यह इसलिए भी होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति द्वारा इसे साफ करने के तरीके कम होने के कारण अंतरिक्ष मलबे से और अधिक अटा-पड़ा होगा। गौरतलब है कि धरती की सतह के पास हवा को गर्म करने वाले ग्रीनहाउस प्रभाव का एक हिस्सा वायुमंडल के ऊपरी हिस्सों को भी ठंडा करता है, जहां से अंतरिक्ष शुरू होता है और उपग्रह निचली कक्षा में चक्कर लगाते हैं। यह ठंडापन ऊपरी वायुमंडल को कम घना भी बनाता है। यही मानव निर्मित मलबे को और उपग्रहों के लाखों टुकड़ों पर खिंचाव को कम करता है। एम आई टी के शोध अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि यह खिंचाव अंतरिक्ष के मलबे को धरती की ओर खींचता है जो रास्ते में जलकर नष्ट हो जाता है। लेकिन ऊपरी वायुमंडल ठंडा और घना होने का अर्थ है कि अंतरिक्ष द्वारा खुद को साफ करना अब उतना आसान नहीं रहा। यह इस बात का जीता जागता सबूत है कि अंतरिक्ष में भीड़ भाड़ बढ़ रही है। असलियत यह है कि हम अपने मलबे को साफ करने के लिए वायुमंडल पर निर्भर हैं। अंतरिक्ष में फैले इस मलबे के लाखों टुकड़े हैं। इस मलबे को हटाने का कोई और तरीका नहीं है।
दि एयरोस्पेस कारपोरेशन के अनुसार धरती की परिक्रमा करने वाले मलबे के लाखों टुकड़े तकरीबन इंच के नौंवे हिस्से यानी तीन मिलीमीटर और उससे बड़े हैं जो एक गोली की ऊर्जा से टकराते हैं। अंतरिक्ष में फैले मलबे में बेर के आकार के हजारों टुकड़े हैं जो दुर्घटनाग्रस्त बस की ताकत से टकराते हैं। उसमें पहले अंतरिक्ष में हुई दुर्घटनाओं और राकेट के लाखों हिस्से शामिल हैं। ट्रैकिंग वेबसाइट आर्बिटिंग नाउ की मानें तो धरती की परिक्रमा करने वाले 11,905 उपग्रह हैं जिनमें से 7356 निचली कक्षा में हैं जो संचार, नेविगेशन, मौसम के पूर्वानुमान और पर्यावरण व सुरक्षा जैसे मुद्दों की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण हैं। गौरतलब है कि 2009 में अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के आपस में टकराने से मलबे के हजारों टुकड़े फैले हुए हैं। इस बारे में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण में अंतरिक्ष मौसम वैज्ञानिक इंग्रिड नोमेन कहते हैं कि इसके चलते धरती से 250 मील यानी 400 किलोमीटर ऊपर घनत्व एक दशक में लगभग दो फीसदी कम हो रहा है। वातावरण में अधिक ग्रीनहाउस गैस जमा होने की वजह से इसके तीव्र होने की उम्मीद है। यही वह अहम कारण है जिसकी वजह से अंतरिक्ष विज्ञानी जलवायु परिवर्तन के कक्षीय प्रभावों व उसकी दीर्घकालिक स्थिरता को निश्चित किये जाने के उचित उपाय किये जाने के बारे में चिंतित हैं। क्योंकि नासा के अंतरिक्ष मापन ड्रैग में दिखाई दे रही कमी जो जलवायु परिवर्तन घटक में महत्वपूर्ण है। यही धरती की कक्षा में अव्यवस्था का अहम कारक है जो सब कुछ बिगाड़ कर रख देगा।
जलवायु परिवर्तन समूची दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। यह पहले से ही धरती पर ज्यादातर समस्याओं का कारण बन गया है। असलियत में मानवीय गतिविधियां मौसम पर भारी पड़ रही हैं और मौसमी घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश भारत है जो दुनिया में छठवें नम्बर पर है। इसके अलावा प्रभावितों में डोमिनिका, चीन, होंडुरास, म्यांमार, इटली, ग्रीस, स्पेन, फिलीपींस और वानुअतु प्रमुख हैं। इसके चलते 1993 से 2022 तक देश में 400 से अधिक घटनाओं में 80 हजार लोगों की जान गयी है और लगभग 180 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुक़सान हुआ है। जबकि दुनिया में आठ लाख लोग मौत के मुंह में चले गये। इससे भारत में तकरीबन पांच करोड़ लोग प्रभावित हैं और यहां जलवायु से जुड़ी आपदाओं में साल दर साल भयावह स्तर पर बढ़ोतरी हो रही है। इस दौरान भारत में बाढ़, लू और चक्रवात से भारी नुक़सान हुआ है। इससे हर साल 2675 जिंदगियां मौत के मुंह में चली जाती हैं। विश्व आर्थिक मंच ने जलवायु परिवर्तन की वजह से चरम मौसमी घटनाओं को सशस्त्र संघर्ष और युद्ध के बाद दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक जोखिम बताया है।
दरअसल इसके लिए प्रकृति प्रदत्त मानव संसाधनों का बेतहाशा उपयोग और जंगलों का निर्ममता से किया गया अत्याधिक कटान तो जिम्मेदार है ही, इसमें भौतिक सुख-संसाधनों के सुख की मानवीय चाहत और विभिन्न क्षेत्रों के प्रदूषण के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। बढ़ता वैश्विक तापमान और उसके चलते मौसम में आये अप्रत्याशित बदलाव का दुष्प्रभाव जीवन के हर पक्ष पर पड़ रहा है। इससे हमारा पर्यावरण, जीवन, रहन-सहन, भोजन, पानी, और स्वास्थ्य पर स्पष्ट रूप से प्रभाव देखा जा सकता है। तात्पर्य यह कि जीवन का कोई भी पक्ष इसके दुष्प्रभाव से अछूता नहीं है। इससे पशुओं के जीवन की लय भी बिगड़ गयी है। इससे बाड़ी क्लाक भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है। सिडनी यूनिवर्सिटी के शोध में यह खुलासा हुआ है। असलियत में धरती पर मौजूद सभी जीवों के शरीर में एक घड़ी होती है जिसे बाड़ी क्लाक, जैविक घड़ी या सरकेडियम रिद्म कहते हैं। सोना, जगना, भूख लगने जैसे काम इसी घड़ी से संचालित होते हैं। इससे सभी प्रकार के पशुओं का व्यवहार भी तय होता है। इस सरकेडियन रिद्म की बिगड़ती लय से पशुओं के जीने का पैटर्न भी बिगड़ रहा है। इसलिए इसे संरक्षण प्रदान किए जाने की जरूरत है।
असलियत में जलवायु परिवर्तन से बदलता मौसम भोजन, स्वास्थ्य और प्रकृति को जो नुकसान पहुंचा रहा है, उसकी भरपायी फिलहाल तो आसान नहीं दिखाई देती। हाँ इसके चलते प्राकृतिक असंतुलन के कारण जन्मी आपदायें भयावह रूप जरूर अख्तियार करती जा रही हैं जो तबाही का सबब बन रही हैं। पिछले सात दशकों में जलवायु परिवर्तन के चलते आयी आपदाओं में आठ गुणा की बढ़ोतरी हुती है। धरती के लिए यह चेतावनी भी है कि अब भी समय है, संभल जाओ, यदि अब नहीं संभले, तो यह संकट लगातार गहराता चला जायेगा। तब इसका मुकाबला कर पाना बहुत मुश्किल होगा। इस बारे में दो राय नहीं है कि समूची दुनिया में जलवायु संकट तेजी से खतरनाक होता जा रहा है। पिछले तीन दशक सबूत हैं कि ग्लोबल साउथ के देश विशेष रूप से चरम मौसमी घटनाओं से जूझ रहे हैं। हम जलवायु संकट के अप्रत्याशित और महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर रहे हैं। यह समाज को अस्थिर करने में अहम भूमिका निभाएगा।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

